नई दिल्लीः इंडियन पल्स एंड ग्रेन्स एसोसिएशन (आईपीजीए) के उपाध्यक्ष बिमल कोठारी का कहना है कि भारत में सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाये जाने पर ही जोर नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि अंतत: इससे उपभोक्ताओं को ही नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि एमएसपी बढ़ाये जाने के साथ उत्पादन में बढ़ोतरी करने के उपायों पर भी जोर देना चाहिये।
कोठारी ने कहा, वर्तमान में वैश्विक स्तर की तुलना में हमारी उत्पादकता काफी कम है। उन्होंने कहा, उत्पादकता बढ़ाकर किसानों की आय भी दोगुनी की जा सकती है। दलहन और तिलहन जैसी फसलों पर विशेष ध्यान दिये जाने की जरूरत है क्योंकि भारत में इनका मुख्य रूप से आयात होता है। हाल में दलहन को बढ़ावा दिया गया है, लेकिन फिर भी भारत में हर साल करीब ढाई मिलियन टन दालों का आयात किया जा रहा है। भारत में दाल की मांग करीब 30 से 33 मिलियन टन है।
उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में ड्रोन के इस्तेमाल से उत्पादन के आंकलन में मदद मिलेगी तथा इससे फसल के नुकसान को सटीक रूप से जाना जा सकेगा। इससे खेतों में कीटनाशक का छिड़काव भी किया जा सकेगा। उन्होंने कहा, इस ड्रोन योजना से न सिर्फ किसानों को बल्कि सरकार को भी लाभ होगा। अधिकतर बार हम फसल उत्पादन का सही आंकड़ा नहीं जान पाते जबकि सरकार की नीतियां मुख्य रूप से इन्हीं आंकड़ों पर निर्भर है। फसल उत्पादन और नुकसान का सही आंकड़ा मिलने से सरकार, व्यापार संगठनों और किसानों को काफी लाभ होगा।
आईपीजीए ने एमएसपी पर अधिकाधिक फसल की खरीद की सरकार की घोषणा का स्वागत करते हुए दलहन और तिलहन की खरीद पर विशेष ध्यान दिये जाने की सिफारिश की है। आईपीजीए का कहना है कि गत तीन-चार साल के दौरान दलहनों की खरीद बढ़ी है लेकिन इसे और बढ़ाये जाने तथा बफर स्टॉक बनाने की जरूरत है, जैसा धान और गेहूं की फसल के लिए किया जाता है। खरीद अधिक करने से सरकार उत्पादन प्रभावित होने की दिशा में उत्पाद की कीमत को नियंत्रित कर पायेगी। दलहन के लिए यह और भी अधिक महत्वपूर्ण है।
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भारत में एक बड़ी आबादी शाकाहारी है और उनके लिए दाल प्रोटीन का मुख्य स्रोत है। सरकार ने हाल में दलहन और तिलहन के उत्पादन को बढ़ाने के प्रति रूचि दिखायी है। दलहन और तिलहन का बड़ा उत्पादक होने के बावजूद यहां की घरेलू खपत उत्पादन से अधिक है।
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