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सफला एकादशी का व्रत करने से होता है सफलता का मार्ग प्रशस्त, जानें पूजा-विधि और व्रत कथा

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नई दिल्लीः पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है। 12 माह के साल में 24 एकादशी तिथि होती हैं। एकादशी तिथि पूर्णतया भगवान श्रीहरि को समर्पित होती है। एकादशी के दिन व्रत कर भगवान विष्णु की आराधना करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है और जैसा कि नाम से ज्ञात होता है कि सफला एकादशी का व्रत करने से हर कार्य में सफलता अवश्य ही मिलती है। इस बार सफला एकादशी गुरूवार के दिन पड़ी है। इसलिए इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया है क्योंकि गुरूवार को भगवान विष्णु की पूजा आराधना का विधान है। वैष्णव संप्रदाय के लोग एकादशी पर्व को उत्सव की तरह मनाते हैं।

एकादशी व्रत एवं पूजन की विधि
एकादशी का व्रत करने वालों मनुष्य को एक दिन पूर्व ही तामसिक भोजन का त्याग कर देना चाहिए। इसके बाद अगले एकादशी का व्रत का संकल्प लेकर प्रातःकाल उठे और दैनिक कार्यो से निवृत्त होने के बाद स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर मंदिर अथवा घर पर ही भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को स्नान कराकर चौकी पर स्थापित करें। चौकी पर पीला कपड़ा बिछायें। इसके बाद भगवान श्रीहरि को फल, फूल, धूप, मिष्ठान, पुष्प और दीप अर्पित करें। इसके बाद सफला एकादशी की व्रत कथा सुनने के बाद आरती अवष्य ही करें।

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सफला एकादशी की व्रत कथा
बहुत समय पहले चंपावती राज्य में महिष्मान नामक राजा राज्य करते थे। उनका पुत्र लुंपक अत्यंत निर्दयी था। वह प्रजा की भलाई के लिए कोई भी कार्य नहीं करता था बल्कि प्रजा पर अत्याचार ही करता है। इससे प्रजा बेहद दुखी थी। एक दिन राज्य के सभी लोगों की राजा महिष्मान से उनके पुत्र लुंपक की शिकायत की। जिस पर क्रोधित राजा महिष्मान ने अपने पुत्र लुंपक को देश निकाला का दंड सुना दिया और उसे राज्य से बाहर कर निकाल दिया गया। राज्य से बाहर निकाले जाने के बाद भी राजकुमार लुंपक की आदतों में कोई सुधार नहीं आया और उसने एक दिन अपने ही राज्य में चोरी करने की सोची और रात्रि के समय अंधेरे में चोरी के उद्देश्य से नगर में घुस गया। लेकिन दुर्भाग्य से लुंपक पकड़ा गया। लोगों ने अंधेरे में उसकी पिटाई भी कर दी। लेकिन बाद में भीड़ में से एक लोग ने कहा कि यह तो राजा महिष्मान के पुत्र हैं और इन्हें छोड़ देना चाहिए। प्रजा के परोपकार से राजकुमार लुंपक को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसे लोगों से क्षमा याचना की। इसके बाद लुंपक अपना जीवन बड़ी कठिनता के साथ व्यतीत करने लगा। जिसके चलते वह काफी कमजोर और बीमार हो गया। एक दिन लुंपक कार्य करते-करते मूर्छित भी हो गया। उसके अगले दिन लुंपक ने प्रातःकाल पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु की आराधना की। इस दौरान उसने न अन्न ग्रहण किया और न ही जल पीया। सूर्यास्त के पश्चात लुंपक ने ईश्वर को याद कर फल ग्रहण किया। इस तरह लुंपक से अनजाने में सफला एकादशी का व्रत हो गया। इस व्रत से प्रभाव से लुंपक शीघ्र ही स्वस्थ हो गया और उसके सभी कष्ट भी दूर हो गये।

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