खेतों में जैविक खाद तैयार कर किसान बढ़ा सकते हैं फसलों की आमदनी

कानपुरः रबी की फसल के बाद जो किसान अपने खेतों में जायद की फसल नहीं करना चाहते हैं तो फसलों की आमदनी बढ़ाने के लिए खेतों में जैविक खाद तैयार कर सकते हैं। जैविक खाद के लिए ढैंचा, लोबिया, उड़द, मूंग, ज्वार एवं बरसीम की फसलें उपयुक्त हैं। इन फसलों को तैयार कर खेत की जुताई करने से एक हेक्टेयर में करीब 15 से 20 टन जैविक खाद तैयार की जा सकती है। यह बातें सीएसए के मृदा वैज्ञानिक डा. रविन्द्र कुमार ने कही।

चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीआर सिंह के निर्देश पर मृदा विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डा. रविंद्र कुमार ने किसानों को खेतों में हरी खाद प्रयोग पर एडवाइजरी जारी की है। उन्होंने कहा कि किसानों को मृदा की उपजाऊ शक्ति बनाए रखने के लिए हरी खाद एक सबसे सस्ता विकल्प है। उन्होंने किसानों को हरी खाद बनाने के लिए अनुकूल फसलों के बारे में बताया कि ढैंचा, लोबिया, उड़द, मूंग, ग्वार, एवं बरसीम मुख्य फसलें हैं जो हरी खाद बनाने में प्रयोग की जाती हैं। डा. कुमार ने बताया कि ढैंचा की मुख्य किस्में सस्बेनिया अजिप्टिका,सस्बेनिया रोस्ट्रेटा, सस्बेनिया अकुलेता अपने त्वरित खनिजिकरण पैटर्न, उच्च नाइट्रोजन मात्रा के कारण बाद में बोई गई मुख्य फसल की उत्पादकता पर उल्लेखनीय प्रभाव डालने में सक्षम है।

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इस तरह बनायें जैविक खाद
विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. देवेंद्र सिंह ने बताया कि अप्रैल- मई महीने में गेहूं की कटाई के बाद खेत की सिंचाई कर दें। खेत में खड़े पानी में 30 से 35 किलोग्राम ढैंचा का बीज प्रति हेक्टेयर की दर से फैला दें तथा जरूरत पड़ने पर 15 से 20 दिन में ढैंचा फसल की हल्की सिंचाई कर दें। इसके साथ ही 20 दिन की अवस्था पर 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से यूरिया को खेत में फैला देते हैं, जिससे जड़ ग्रंथियां बनने में सहायता मिलती है। ढैंचा की 40 से 45 दिन की अवस्था में हल चलाकर हरी खाद को खेत में मिला दिया जाता है। इस तरह लगभग 15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर की दर से हरी खाद उपलब्ध हो जाती है। मीडिया प्रभारी एवं मृदा वैज्ञानिक डा. खलील खान ने बताया कि हरी खाद केवल नत्रजन व कार्बनिक पदार्थों का ही साधन नहीं है, बल्कि इससे मिट्टी में कई पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं।