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Lucknow: खेती के लिए मुसीबत बन रहे कारखाने, चुआन से बंजर हो रही जमीन

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लखनऊः किसानों पर संकट कम होने का नाम नही ले रहा है। जब तक उनके खेतों की उपज बढ़ाने के उपायों को पूरा नहीं कर लिया जाता है, तब तक किसान सम्पन्नता की ओर नहीं जा सकता है। वैसे भी कभी भट्ठे वाले खेतों की मिट्टी निकाल कर तो कभी खनन करने वाले उपयोगी और उपजाऊ मिट्टी को कम कर रहे हैं। अब एक और नया संकट यह है कि नादरगंज और ट्रांसपोर्ट नगर में लगे छोटे-बडे़ कारखाने खेतों के लिए मुसीबत बने हुए हैं। यहां से निकलने वाली मिट्टी बेहद नुकसानदेय है और इससे इस इलाके के खेतों की उर्वरकता कम होती जा रही है।

नारदगंज में लोहे के कई कारखाने हैं और यहां इसे पिघलाया जाता है। पिघलते समय इसका काफी अवशेष भट्ठियों के पास गिर जाता है। इसके बड़े टुकड़े तो हाथ से उठा लिए जाते हैं, लेकिन छोटे टुकड़े काफी छोटे होते हैं, जिसे उठा पाना मुश्किल होता है। इसको उठाने के लिए सूखी मिट्टी में कचरे के साथ गिरे चुआन को फैला दिया जाता है। जब यह ठंडा हो जाता है, तब एक चुम्बकीय उपकरण से इसे उठाने की कोशिश की जाती है। इस दौरान धातु के गिरे हुए अवशेष जिनको चुआन कहते हैं, यह सभी उपकरण में चिपक जाते हैं।

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इनको कारीगर एक स्थान पर एकत्रित कर लेते हैं। यह काफी कीमती अवशेष होते हैं। जिस मिट्टी में चुआन गिराया जाता है, उसमें पिसा हुआ अवशेष भी होता है और यह मिट्टी में मिल जाता है। यह वह अवशेष होता है, जो अन्य प्रकार की धातु होती है और उपकरण में नहीं चिपकती है। इसकी मात्रा लगातार कारखाने में बढ़ती रहती है। जब इससे काम में रूकावट होने लगती है तो कारखाने से इसे हटा दिया जाता है। नादरगंज में जगह-जगह पर इसके ढेर लगे हुए हैं। हालांकि, इसके केवल डम्पिंग की इजाजत है, लेकिन कुछ लोग इसको इधर-उधर फैला देते हैं। यह फेंके गए गोबर के साथ खेतों में पहुंच जाता है और खेतों की उर्वरकता को कम कर रहा है।

कैसे होता है गोबर के साथ मिश्रित -

किसान अपने पाले गए पशु के गोबर को आस-पास के गड्ढों में सड़ने के लिए फेंक देते हैं। बारिश में खेत जोतते समय इसे उठाया जाता है। यही कचरा युक्त अवशेष गोबर की खाद के साथ-साथ खेतों तक पहुंच जाता है। इसमें कई केमिकल भी मिले होते हैं और खेतों में लगातार इसकी मात्रा भी बढ़ रही है। वैसे भी लखनऊ की खेती युक्त भूमि में कमी आ रही है और जो भूमि बची हुई है, उसकी गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। ऐसे में दोगुनी उपज की कल्पना करना भी मुश्किल है।

·  शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट

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