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4 साल की मासूम बेटी के पिता शहीद जवान रमेश के लिए सभी की आँखें नम

BSF personnel carry of martyr BSF Sub Inspector Paotinsat Guite during a wreath-laying ceremony

रायपुर: बीजापुर की तरेम इलाके में शनिवार दोपहर नक्सली हमले में शहीद हुए जवानों की सूची में कांकेर जिले के चारामा ब्लॉक के पंडरीपानी का जांबाज सिपाही रमेश जुर्री भी शामिल हैं। 10 दिनों के अंदर दूसरे बड़े नक्सली हमले में जिले का तीसरा जवान शहीद हुआ है। इसके पहले 23 मार्च को नारायणपुर में डीआरजी की बस को नक्सलियों ने ब्लास्ट कर उड़ा दिया था। जिसमें जिले के 2 जवान समेत 5 जवान शहीद हो गए थे।

जबकि बीजापुर नक्सल हमले में शहीद होने वाला रमेश कांकेर जिले का एकलौता जवान है। रमेश 2010 से बीजापुर डीआरजी में पदस्थ था। 2 महीने पहले ही रमेश का आरक्षक से प्रधान आरक्षक पद पर प्रमोशन हुआ था।

रमेश के शहीद होने की खबर मिलते ही उनके गांव समेत पूरे क्षेत्र में मातम पसर गया। हर किसी की आंख अपने गांव के बहादुर बेटे के लिए नम है। वही शहीद की मां को अबतक इस बात की जानकारी नहीं दी गई है कि उनका बेटा अब कभी लौटकर नहीं आएगा। जवान के शहीद होने की खबर मिलने के बाद से क्षेत्रवासी उसके पार्थिव शरीर का इंतजार करते रहे लेकिन नक्सलियों ने जिस क्रूरता से हत्या की है, उससे शहीद जवानों के पार्थिव शरीर को बाहर निकालने में फोर्स को भारी मशक्कत करनी पड़ी। मिली जानकारी के अनुसार शहीद रमेश का पार्थिव शरीर आज दोपहर तक उनके गृह ग्राम लाया जाएगा। जिसके बाद शहीद का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा।

मिली जानकारी के अनुसार रमेश 2010 से बीजापुर डीआरजी में पदस्थ था। दो महीने पहले ही रमेश का आरक्षक से प्रधान आरक्षक पद पर प्रमोशन हुआ था। रमेश की शादी 2015 में हुई थी और उनकी एक 4 साल की मासूम बेटी है, उसके सिर से पिता का साया उठ गया। नक्सलियों की कायराना करतूत के चलते आज फिर बस्तर की धरती खून से रंग गई है। रमेश जुर्री आखिरी बार दीपावली में अपने गांव पंडरीपानी आया था। जहां पूरे परिवार के साथ उन्होने दीपावली मनाई थी। लेकिन परिवार के लोगों को क्या पता था कि रमेश के साथ उनकी आखिरी दीपावली होगी।

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रमेश ने दो दिन पहले अपने छोटे भाई को वीडियो कॉल कर घर का हालचाल लिया था। यह भाई और मां से उनकी आखिरी बातचीत थी। शहीद रमेश अपनी पत्नी और 4 साल की बेटी के साथ बीजापुर में ही रहते थे। 3 दिनों पहले ही उनकी मां अपने बेटे से मिलकर गांव लौटी थी। इसके बाद रमेश अपने साथी जवानों के साथ गश्त पर निकल गए और इसी बीच नक्सलियों की कायराना करतूत के चलते शहीद हो गए।