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आज भी चटख हैं गांव के रंग, शहरी बच्चों की पसंद बन रहे मिट्टी के खिलौने

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बेगूसरायः देश प्रगति के पथ पर तेजी से अग्रसर है। सरकार ने गांव-गांव के हर घर में बिजली पहुंचा दी है। लोग डिजिटल होकर आधुनिकता की दौड़ में आगे पीछे कर रहे हैं। लेकिन सारी कवायद के बावजूद भारत गांव का देश है और यहां के रंग आज भी चटख हैं, इसका नजारा स्पष्ट रूप से दिखता है पर्व-त्योहार में। लक्ष्मी-गणेश पूजन और दीपों के पर्व दीपावली में मात्र दो दिन शेष रह गए हैं तो गांव के इस चटख रंग का जादू शहरों में भी बोलने लगा है। इस चटख लाल-हरा-नीला-पीला रंग का जादू ना सिर्फ शहर में बोल रहा है, बल्कि शहर वासियों को अपनी ओर आकर्षित करते हुए आत्म निर्भरता का सशक्त उदाहरण पेश कर रहा है।

बात हो रही है दीपावली में मिट्टी के बने दीप, कलश और आकर्षक खिलौनों की। गांव में बने खिलौने लाल, हरे, पीले, नीले रंगों से रंग कर बाजार पहुंच चुके हैं। बाजार में हर ओर गांव के खिलौने और दीपों की भरमार लगी हुई है। हालांकि इसमें प्रधानमंत्री द्वारा लगातार किए जा रहे अपील, विभिन्न मंत्रियों और प्रशासन के प्रयास से लोग एक बार फिर गांव के उत्पादों के प्रति जागरूक हुए हैं। बेगूसराय के सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी अपील किया है कि आइए इस दिवाली हम दीये, लाइट्स, कपड़े सहित सभी वस्तुएं स्वदेशी खरीदने का संकल्प लें और आत्मनिर्भर भारत का संकल्प दोहराएं।

मिट्टी के दीप और रंग-बिरंगे कलश की बढ़ी डिमांड

पिछले कुछ वर्षों में चाइनीज लाइट और बाहरी दीपों की चमक धमक में ग्रामीण कुंभकारों की प्रतिभा कुंठित होती जा रही थी। मजबूरी में बस कुछ लोग ही गांव में बने दीप और खिलौने लेकर बाजार पहुंचते थे। लेकिन इस बार चीन के सीमा पर हुए विवाद के बाद चाइनीज सामानों के बहिष्कार एवं बिक्री पर लगी रोक, कोरोना के कारण स्थानीय निर्भरता, प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए लोकल फॉर वोकल के मंत्र और आत्मनिर्भरता के नारों के प्रभाव से इस वर्ष स्थानीय स्तर पर डिमांड काफी बढ़ गई। इसके कारण कुंभकार परिवारों ने पिछले 15-20 दिनों में जी जान लगा दी और मिट्टी के बने दीप, एक से एक डिजाइन के कलश और खिलौने बाजार में पहुंच गए हैं।

बच्चों की पसंद बने मिट्टी के रंग बिरंगे खिलौने

आधुनिकता की दौड़ में गांव से लेकर शहर तक के बच्चों में चाइनीज कंपनी, विदेशी कंपनी और बड़ी-बड़ी कंपनियों के खिलौने की भारी डिमांड है। लेकिन अब जब दीपावली को लेकर स्थानीय बाजार सज गया है और बाजार में प्राकृतिक रूप से मिट्टी के बने खिलौना, चूल्हे, गुल्लक, जाता, प्रतिमाएं और विभिन्न आकार के बने खिलौनों ने शहरी बच्चों को अपनी ओर आकर्षित कर लिया है। अभिभावक के साथ बाजार निकल रहे बच्चे लाल, हरे, पीले रंगों में रंगे और रंगे जा रहे खिलौनों को देखकर काफी आकर्षित हो रहे हैं। सस्ता होने के कारण अभिभावक भी खरीदने से परहेज नहीं कर रहे हैं। बाजार में जो प्लास्टिक का किचन सेट दो-ढ़ाई सौ तक में मिलता है, उससे बेहतर साइज में बड़ा किचन सेट ग्रामीण कुंभकार 50 से 60 रुपया में उपलब्ध करवा रहे हैं।

प्लास्टिक का गुल्लक एक सौ, मिट्टी का मिल रहा है दस में-

कुछ वर्ष पूर्व तक दुर्गा पूजा और दीपावली के समय स्थानीय खिलौना उत्पाद में गुल्लक की अधिक डिमांड रहती थी। बच्चे मेला देखे जाने के दौरान दो रुपया में गुल्लक खरीदकर घर ले आते थे और छुट्टे पैसे उस में जमा किया करते थे। काफी अधिक जरूरत होने पर गुल्लक को फोड़ दिया जाता था। बाद के दिनों में प्लास्टिक के बने गुल्लक आ गए तो इसकी डिमांड बढ़ गई। लेकिन अभी भी दीपावली के समय मिट्टी के गुल्लक की बहुत अधिक बिक्री होती है। मिट्टी के बने रंग-बिरंगे गुल्लक मात्र दस से बीस रुपये में उपलब्ध हैं।