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Election 2024 : क्या भाजपा इस बार ढहा पाएगी मैनपुरी का किला ! सपा की राह भी कठिन

Election, लखनऊः उत्तर प्रदेश की 80 में से एक सीट ऐसी है, जहां अब तक एक बार भी कमल नहीं खिला है। यह सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ मानी जाती है। 2014 के आम चुनाव में मोदी लहर में बीजेपी ने अपने सहयोगी अपना दल सोनेलाल के साथ मिलकर 80 में से 73 सीटें जीतीं। उन सात सीटों में से एक जहां कमल नहीं खिला, उनमें से एक मैनपुरी भी थी।

पिछले आम चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगियों ने मिलकर 64 सीटें जीती थीं। इस बार बीजेपी ने 2014 में हारी हुई सात सीटों में से चार पर जीत हासिल की-कन्नौज, बदांयू, अमेठी और फिरोजाबाद। इस बार भी उसे तीन सीटों-मैनपुरी, आज़मगढ़ और रायबरेली पर हार मिली। 2022 में आज़मगढ़ सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी ने आज़मगढ़ सीट सपा से छीन ली।

नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ मानी जाने वाली रायबरेली सीट पर 1996 और 1998 के चुनाव में बीजेपी ने जीत हासिल की है। ऐसे में मैनपुरी ही एकमात्र ऐसी सीट है जहां बीजेपी अपनी स्थापना के बाद से 2019 के आम चुनाव तक एक बार भी नहीं जीत पाई है।

सबसे ज्यादा बार सपा ने जीत हासिल की

मैनपुरी लोकसभा सीट को सपा का गढ़ कहा जाता है। वैसे तो सपा का गठन वर्ष 1992 में हुआ था, लेकिन राजनीति में मुलायम सिंह यादव के उदय के साथ ही वह यहां प्रभावी हो गयी। उनके समर्थन या पार्टी वाले उम्मीदवार ही सांसद बनते रहे। फिर सपा के गठन के बाद साल 1996 में मुलायम सिंह यादव खुद चुनाव लड़े और सांसद बने। तब से सपा यहां अजेय है।

1996 में मुलायम सिंह पहली बार इस सीट से जीते थे। मुलायम ने बीजेपी के उपदेश सिंह चौहान को हराया था। 1998 में सपा के बलराम यादव ने बीजेपी के अशोक यादव को हराया। 1999 में सपा के बलराम यादव और भाजपा के अशोक यादव के बीच मुकाबले में सपा का दबदबा रहा। 2004 और 2009 का चुनाव मुलायम सिंह ने जीता। दोनों बार बीएसपी दूसरे नंबर पर रही। 2014 और 2019 के आम चुनाव में मुलायम सिंह यादव यहां से सपा का चेहरा थे। दोनों चुनावों में मुलायम सिंह ने बीजेपी उम्मीदवारों को हराया। हालांकि, पिछले चुनाव में सपा और बीजेपी प्रत्याशियों के बीच हार का अंतर पहले से काफी कम था।

पहले आम चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की

1952 में हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस के बादशाह गुप्ता ने मैनपुरी संसदीय सीट से भारतीय जनसंघ के रघुबर सहाय को हराया। 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार बंसी दास धनगर, 1962 में कांग्रेस के बादशाह गुप्ता और 1967 और 1971 के चुनाव में कांग्रेस के महाराज सिंह ने जीत हासिल की। 1977 में भारतीय लोकदल के रघुनाथ सिंह वर्मा यहां से जीते। 1980 में जनता पार्टी सेक्युलर के रघुनाथ सिंह वर्मा जीते, 1984 में कांग्रेस के बलराम सिंह यादव जीते। 1989 और 1991 में जनता दल के उदय प्रताप सिंह यहां से सांसद रहे। 1996 के बाद से यहां से हर चुनाव में सपा जीतती रही है।

उपचुनाव में डिंपल यादव जीत गईं

सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद 2022 में हुए उपचुनाव में उनकी बहू डिंपल यादव (618128) ने बीजेपी प्रत्याशी रघुराज सिंह शाक्य (329659) को 288461 वोटों के अंतर से हराया। जीत के साथ ही डिंपल यादव ने लोकसभा सीट में शामिल सभी पांच विधानसभाओं में बढ़त हासिल करने का नया रिकॉर्ड भी बनाया। इससे पहले इस गढ़ में भी पांचों विधानसभा क्षेत्रों में सपा कभी बढ़त नहीं ले पाई थी।

सहानुभूति लहर के कारण उपचुनाव में जीत

प्रदेश की राजनीति को करीब से जानने वालों के मुताबिक 2022 में होने वाले उपचुनाव में डिपंल यादव की जीत के पीछे कई कारण थे। जिनमें मुलायम सिंह यादव के निधन से मिली सहानुभूति भी शामिल थी। -शिवपाल यादव और अखिलेश यादव का एक साथ आना। अखिलेश यादव और उनके पूरे परिवार का गांव-गांव प्रचार। हर जाति एवं वर्ग के मतदाताओं से संपर्क एवं संवाद। वोट के रूप में नेताजी को श्रद्धांजलि देने की अपील ने जीत-हार का अंतर बढ़ा दिया। डिपल यादव ने बीजेपी प्रत्याशी को 288461 वोटों से हराया। जबकि 2019 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव (524926) और बीजेपी प्रत्याशी प्रेम सिंह शाक्य (430537) के बीच जीत-हार का अंतर 94 हजार वोटों का था।

पांचों विधानसभाओं में किसका पलड़ा भारी?

मैनपुरी लोकसभा में पांच विधानसभाएं हैं, जिनमें से मैनपुरी सदर, जसवन्त नगर, करहल, किशनी, भोगांव विधानसभाएं हैं। करहल, किशनी और जसवन्त नगर सपा के खाते में हैं और दो विधानसभा क्षेत्र मैनपुरी सदन और भोगांव भाजपा के खाते में हैं। करहल से सपा प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और जसवन्त नगर से वरिष्ठ सपा नेता और अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह विधायक हैं।

मैनपुरी सीट का समीकरण

इस सीट पर 4.25 लाख यादव, 3.25 लाख शाक्य, 2 लाख ठाकुर और करीब 1 लाख ब्राह्मण मतदाता हैं। वहीं, दलित दो लाख हैं, जिनमें से 1.20 लाख जाटव और बाकी धोबी और कटारिया समुदाय के हैं। एक लाख लोधी, 70 हजार वैश्य और एक लाख मतदाता मुस्लिम हैं। मैनपुरी सीट पर सपा को यादवों और मुसलमानों का एकतरफा वोट मिलता रहा है।

2024 में सपा ने डिपंल यादव पर लगाया दांव!

समाजवादी पार्टी ने यादव परिवार की मजबूत सीट मानीपुर से डिंपल यादव को मैदान में उतारा है। बीजेपी और बहुजन समाज पार्टी ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है। मैनपुरी में तीसरे चरण में 7 मई को मतदान होगा।

बीजेपी ने दिखाई ताकत

इस बार बीजेपी ने सपा को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी अपर्णा यादव को मैनपुरी लोकसभा सीट से मैदान में उतारेगी। अगर ऐसा हुआ तो मैनपुरी लोकसभा सीट पर ननद-भाभी के बीच मुकाबला होगा। हालांकि पूरी तस्वीर उम्मीदवारों की घोषणा के बाद ही साफ होगी।

सपा की राह आसान नहीं

पिछले लोकसभा उपचुनाव को छोड़ दें तो 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद से बीजेपी का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है। सपा के लिए अपने वोट प्रतिशत के बढ़ते ग्राफ को बरकरार रखना भी आसान नहीं होगा। वहीं, 2019 के चुनाव में एसपी का बीएसपी से गठबंधन था। ऐसे में सीधी लड़ाई बीजेपी से थी, लेकिन इस बार बीएसपी भी चुनाव मैदान में होगी। त्रिकोणीय मुकाबले में सपा की मुश्किलें बढ़ना तय है। ऐसे में गढ़ बचाने के लिए सपा पूरी ताकत लगा रही है।

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