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ऑनलाइन गेम का बच्चों के मस्तिष्क पर पड़ रहा कुप्रभाव, उठा रहे आत्मघाती कदम

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लखनऊः राजधानी लखनऊ में एक किशोर ने अपनी मां की हत्या इस वजह से कर दी थी कि उसे ऑनलाइन गेम पबजी खेलने से मना करती थी। यह पहली वारदात नहीं है बल्कि इससे पहले जनपद बुलंदशहर में 11वीं के छात्र ने खुद को गोली मार ली थी। मथुरा में मां द्वारा मोबाइल तोड़ने पर 19 वर्षीय युवक ने खुदकुशी कर ली थी। आज के इस भागदौड़ के जीवन में माता-पिता की ओर से ध्यान न दिये जाने पर बच्चे अधिक समय मोबाइल पर देते है और वह इस तरह के गेम के लती हो जाते हैं। परिवार को जब इसकी जानकारी होती है तो उन्हें इस लत से छुड़ाने के लिए उन पर दबाव डालते हैं तो बच्चे खुदकुशी, हत्या जैसे आत्मघाती कदम उठाते हैं। ऐसे बच्चों को किस तरह से नियंत्रित किया जाए। विषेषज्ञों का मानना है कि यह तो जग जाहिर है, मोबाइल का अधिक उपयोग मस्तिष्क पर कुप्रभाव डालता है। बहुत सारी स्टडी में इस बात का भी जिक्र हुआ है। चाहे बड़े हों या बच्चे मोबाइल का अत्यधिक उपयोग दिमाग पर प्रभाव डालता है, जिससे कि व्यक्ति या बच्चा सोचने-समझने की शक्ति खो बैठता है। वह कुछ भी करने को तैयार हो जाता है।

छोटे बच्चों को मोबाइल से रखें दूर
स्टडीज बताती है कि छोटे बच्चों को तो मोबाइल देना ही नहीं चाहिए। लेकिन बीते दिनों हम जिस दौर से गुजरे हैं, कोरोना काल में हमारी सारी चीजें ऑनलाइन हो गईं। बच्चों की भी पढ़ाई ऑनलाइन शुरू हुईं तो परिवार की यह मजबूरी बन गई कि अपने बच्चों को मोबाइल देना पड़ा। मोबाइल का जो उपयोग है वह हमारे न्यूरोजिकल सिस्टम पर इम्पैक्ट डालता है, चूंकि ब्रेन हमारा बहुत ही सॉफ्ट होता है। जब बड़ों के दिमाग पर मोबाइल का उपयोग करने में इम्पैक्ट पड़ता है तो बच्चों पर इसका असर और भी तेजी से होता है। न्यूरोजिकल डिसऑर्डर से बहुत सारे डेवलप हुए, जिसमें से हर उम्र के लोगों अलग-अलग समस्या है। जैसे तीन साल से पांच व आठ साल के बच्चों में कम्युनिकेशन का समस्या उत्पन्न हुई है। उन्हें वन टू वन बात करनी नहीं आती है। उनको बोलने की समस्या हुई, भाषा समझ में नहीं आती है। जैसे कि कोई कविता रट ली, लेकिन उन्हें उनका अर्थ नहीं पता है। आज के दिनों में इस तरह के केस बहुत बढ़े हैं। आंखों से लेकर न्यूरो तक के मरीज बढ़े हैं। मोबाइल हमारे लिए किसी खजाने से कम नहीं है, लेकिन इसमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों चीजें है। अब यहां पर यह बात आती है कि लखनऊ में जो केस हुआ है, वह एक दिन में नहीं हुआ है। यह एक लम्बी सतत प्रक्रिया होगी कि बच्चा अनवरत मोबाइल गेम खेल रहा होगा। मां ने पहले इसे नजरअंदाज किया, फिर धीरे-धीरे उस पर दबाव डालना शुरू किया तो उसने यह वारदात कर दी।

अकेलापन बना देता है मोबाइल पर आश्रित
चिकित्सकों का मानना है कि आज की भागदौड़ के जीवन में माता-पिता अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते। परिवार में उन्हे प्रेम और बाहर भी नकारात्मक चीजें मिलती है तो वह अपने को व्यस्त करने के लिए मोबाइल का सहारा ले लेते हैं। मोबाइल आनलाइन गेम में ज्यादा समय देने वाले बच्चे इसके लती हो जाते हैं। गेमिंग की लत का शिकार केवल बच्चे ही नहीं, बड़े भी होते हैं। अगर बच्चे अपने काम पर ध्यान नहीं दे रहे है तो सकता है वह गेमिंग डिसऑर्डर से जूझ रहे हों।

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बच्चों को बनाएं दोस्त
ऐसे दौर में बच्चों को इमोशनल सपोर्ट की बहुत ज्यादा जरूरत होती है। क्योंकि जब बच्चों को अपने परिवार व दोस्तों से सपोर्ट नहीं मिलता तो मोबाइल इनके लिए सबसे बड़ा साधन बन जाता है। ऐसे में हमें उन्हें एक दोस्त की तरह समझाना चाहिए । बच्चे को यह अहसास कराएं कि चाहे वो सही करें या गलत, हम उनके साथ हैं। हम उसके साथ खेलें और समय दें ताकि बच्चे खुलकर अपनी गलतियों पर माता-पिता से बात कर सकें।

बच्चों की हर गतिविधियों पर रखें नजर
परिवार अगर अपने बच्चों को उपयोग के लिए मोबाइल देना चाहते हों तो एक घंटे का समय निर्धारित करें। इसके बाद बच्चे की हर गतिविधियों पर नजर रखें कि वह क्या कर रहा है। क्या देख रहा है। बच्चे को मोबाइल गेम कम से कम खेलने दें और उसके साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं। बच्चों के साथ परिवार बाहर खेलने जाएं। योग कराएं। अगर बच्चे में आपके प्रति व्यवहार में कुछ बदलाव होता नजर आता है तो ठीक वरना फौरन बच्चे का इलाज मनोचिकित्सक से कराएं।

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