सनातन धर्मानुसार कलियुग में जो मानव श्रीकृष्ण की महिमा सुनते और पढ़ते हैं, उनका यमलोक में निवास नहीं होता। जिन्हें सदा श्रीकृष्ण की कथा प्राणों से भी प्रिय है, उसके लिए इस लोक और परलोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है। स्कन्ध पुराण के अनुसार कलियुग में यदि चाण्डाल भी द्वारकापुरी में भक्तिभाव से निवास करता है, तो वह सन्यासियों की गति पाता है। जो द्वारकापुरी की यात्रा करता है, उसे मार्ग में प्रतिदिन कुरुक्षेत्र-सेवन का फल प्राप्त होता है। द्वारका के क्षेत्र में श्रीकृष्ण के समीप एक ब्राह्मण को भोजन कराने पर दस राजसूय-यज्ञ का फल मिलता है, जिन्होंने द्वारकापुरी जाने वाले यात्रियों को अन्नदान किया है, उन्होंने लाखों बार गया-श्राद्ध कर लिया। महाविष्णु की प्रसन्नता के लिए जो कुछ भी दान किया जाता है, वह सब मनोरथों की सिद्धि करने वाला होता है। कलियुग में जिनकी बुद्धि द्वारका की यात्रा और श्रीकृष्ण का दर्शन करने में संलग्न होती है, ये मानव धन्य हैं और उनका वह मनोरथ भी धन्य है। जिन्होंने करोड़ो पापों का नाश करने वाले श्रीकृष्ण का दर्शन किया है, वे धन्य हैं, कृतकृत्य हैं। जो मानव श्रीकृष्ण के मस्तक पर दूध से स्नान कराते हैं उन्हें सौ अश्वमेध यज्ञों का पुण्य प्राप्त होता है।
जो मनुष्य निष्काम भाव से श्रीकृष्ण को स्नान कराता है, वह मोक्ष पाता है। जो स्नान से भीगे हुए श्री कृष्ण विग्रह को वस्त्र से पोंछता है, उसका जन्मभर का पाप नष्ट हो जाता है। जो जगदीश्वर श्रीकृष्ण को स्नान कराकर उन्हें फूलों की माला पहनाता है, जो उनके स्नानकाल में शंख बजाता है अथवा सहस्रनामों का पाठ करता है, उसे एक-एक अक्षर पर कपिला गौ के दान का फल प्राप्त होता है। भगवान उनके समीप आते हैं और उनकी सम्पूर्ण कामनाएं पूर्ण करते हैं। जो श्रीकृष्ण के स्नानकाल में नृत्य और गान करता है, ताली बजाता है और जय-जयकार करता है, वह जन्म-मृत्यु के बंधन से छुटकारा पा जाता है। जो मानव कलियुग में श्रीकृष्ण के गुणों का वर्णन करता है, वह पितरों सहित बैकुण्ठ धाम में निवास करता है। जो मानव कोमल तुलसी दलों से और शुद्ध वस्त्रों से देवकीनन्दन श्रीकृष्ण की पूजा करता है, उसे यज्ञकत्ताओं, दानवीरों, तीर्थ सेवियों, मातृभक्तों को प्राप्त होने वाला फल मिलता है। कलियुग में जहां कहीं भी तुलसी की माला से भगवान विष्णु का पूजन होत है, वहां द्वारका का समग्र पुण्य प्राप्त होता है। जो श्रीकृष्ण मंदिर के द्वार पर प्रतिदिन दीपमाला जगाता है, वह सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी का सम्राट होता है।
जो श्रीकृष्ण के आगे सुगन्धित नैवेद्य निवेदन करता है, उसके पितर कल्पपर्यन्त नित्य तृप्त रहते हैं। जो कपूर और सुपारी के साथ ताम्बूल निवेदन करता है, उसे देवपद की प्राप्ति होती है। जो भगवान श्रीकृष्ण के आगे जल से भरा हुआ कलश और कमण्डल निवेदन करता है, उसके पितर एक कल्प तक तृप्त रहते है। जो भगवान श्रीकृष्ण को मनोहर फल भेंट करता है, उसके कुल में किसी को यमलोक का दण्ड नहीं भोगना पड़ता। जो श्रीकृष्ण के मंदिर में सुन्दर पुष्प-मण्डप बनाता है, वह कोटि-कोटि पुष्पक विमानों द्वारा दिव्यलोक में क्रीडा करता है। जो श्वेत चँवर की हवा देकर श्रीकृष्ण को प्रसन्न करता है, देवेश्वर श्रीकृष्ण उसके मस्तक को अपने मुंह से चूमते हैं। जो श्रीकृष्ण के मंदिर को केले के खंभों से सुशोभित करता है, इसका स्वागत देवराज स्वयं करते हैं। जो मनुष्य श्रीकृष्ण मंदिर को ध्वजा-पताकाओं से सजाता है, वह सदा सूर्य लोक में निवास करता है। जो श्री कृष्ण मंदिर के ऊपर ध्वजारोहण करता है, उसका ब्रह्मलोक में निवास होता है। जो मानव शंख में जल लेकर भगवान श्रीकृष्ण के ऊपर घुमाता है, वह पूरे कल्पभर क्षीर सागर में भगवान विष्णु के समीप निवास करता है। जो विष्णुसहस्रनाम अथवा अन्य स्तोत्रों का पाठ करते हुए भगवान श्रीकृष्ण की परिक्रमा कारता है, उसे पग-पग पर सातों द्वीपों वाली पृथ्वी की परिक्रमा का पुण्य प्राप्त होता है।
जो श्रीकृष्ण को साष्टांग दण्डवत प्रणाम करता है, उसे दस हजार अश्वमेध यज्ञों का फल प्राप्त होता है। जो मीठे स्वरवाले उत्तम गीतों से भगवान श्री कृष्ण को सन्तुष्ट करता है, उसे सामवेद के पाठ का फल प्राप्त होता है। जो प्रसन्नचित्त होकर भक्तिभाव से श्रीकृष्ण के सम्मुख नृत्य करता है, वह अपने समस्त पापों को भस्म कर देता है। जो श्रीकृष्ण के समीप आकर भक्तिभाव से स्तुति करता है उसे एक-एक अक्षर में सौ कपिला गोदान का पुण्य मिलता है। श्रीमद्भगवत गीता, विष्णुसहस्रनाम, भीष्मस्तवराज, अनुस्मृति और गजेन्द्र मोक्ष-ये पाँचों स्तोत्र श्रीकृष्ण को अत्यन्त प्रिय लगते हैं। जो श्रीकृष्ण के समीप श्रीमद्भागवत महापुराण, रामायण, महाभारत और पुराणों का पाठ करता है, उसे भक्ति एवं गोक्ष प्राप्त होता है। जो कलियुग में द्वारकापुरी जाकर गोमती और समुद्र संगम में देवताओं और पितरों का तर्पण करते हैं, वे हरिद्वार, प्रयाग, गया, कुरुक्षेत्र, पुष्कर, प्रभास, सेवन का तथा सहस्रों चान्द्रायण व्रत का फल पाते है।
जहाँ गोमती के जल से मिला हुआ समुद्र जाग रहा है, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण विराजमान हैं और जहाँ पूजन करने पर मोक्ष देने वाली चक्रांकित शिलाएँ (गोमती चक्र शिला) उपलब्ध होती है, जहाँ की मिट्टी भी चक्र से चिन्हित होकर कलियुग में पाप का नाश करने के लिए स्थित है। जो पुरी दैत्य, दानव राक्षस तथा देवताओं को भी शरण देनेवाली है, जिसे देवकीनन्दन श्रीकृष्ण कलिकाल में कभी नहीं छोड़ते है, वह द्वारकापुरी इस पृथ्वी पर दुर्लभ है। भक्तियुक्त जो मनुष्य द्वारका में श्रीकृष्णचन्द्र भगवान के तीनों समय दर्शन करते हैं, उनकी करोड़ो कल्पों में भी पुनरावृत्ति नहीं होती। जो विधवा स्त्री द्वारका में भक्तिपूर्वक सेवा भाव से निवास करती है, वह परमपद को प्राप्त होती है।
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श्रीकृष्ण की द्वारकापुरी में जाकर जो तुलसीदलों से उनकी पूजा करता है, उसने जन्म का फल पा लिया और पितरों को तार दिया। जो श्रीकृष्ण के श्रीविग्रह से उतारी हुई प्रसाद-स्वरूपा तुलसीमाला धारण करता है, वह एक-एक पत्ते में दस अश्वमेध यज्ञों का फल पाता है। जो कलियुग में तुलसीकाष्ठ माला से विभूषित होकर पुण्य कर्म करता है तथा देवताओं और पितरों का पूजन करता है उसका वह सत्कर्म कोटि-गुना हो जाता है। द्वारकापुरी की यात्रा कर रहे मनुष्यों को शान्त, जितेन्द्रिय, पवित्र, बह्मचर्यपालन तथा भूमिशायी होना चाहिए। द्वारकापुरी के यात्री को पग-पग पर उसकी पग धूलि की संख्या के अनुसार सहस्रों यज्ञों का पुण्य प्राप्त होता है।
ज्योतिर्विद लोकेन्द्र चतुर्वेदी