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एंटी ड्रोन सिस्टम को लेकर DRDO ने लिए बड़ा फैसला, इन तीन कंपनियों ने मिलाया हाथ

नई दिल्लीः जम्मू के एयरफोर्स स्टेशन पर ‘ड्रोन अटैक’ होने के बाद डीआरडीओ ने तीनों सशस्त्र बलों के लिए अपने एंटी-ड्रोन सिस्टम का उत्पादन बढ़ाने का फैसला लिया है। डीआरडीओ टाटा, एलएंडटी, अडानी जैसे उद्योग समूहों को ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी (टीओटी) के रूप में भागीदार बनाकर प्रौद्योगिकी का स्थानांतरण करके एंटी-ड्रोन सिस्टम का उत्पादन करवाएगा। यह सिस्टम तीन किलोमीटर के दायरे में आने वाले छोटे ड्रोन का पता लगाकर उसे जाम कर देता है। इसके साथ ही यह सिस्टम 1 से 2.5 किमी. के दायरे में आए ड्रोन को अपनी लेजर बीम से निशाना बनाते हुए उसे नीचे गिरा देता है।

डीआरडीओ इस एंटी-ड्रोन सिस्टम पर पिछले तीन साल से काम कर रहा है। इस सिस्टम को प्रयोग के तौर पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम के दौरे के समय, स्वतंत्रता दिवस 2020 और गणतंत्र दिवस 2021 के दौरान वीवीआईपी सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था। डीआरडीओ ने जनवरी, 2020 में हिंडन एयरफोर्स स्टेशन पर और अगस्त, 2020 और जनवरी, 2021 में मानेसर में राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड परिसर में विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के लिए अपनी काउंटर-ड्रोन टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन किया था। इसके बाद डीआरडीओ ने अपने एंटी-ड्रोन सिस्टम का उत्पादन भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड (बीईएल) को सौंपा था।

अब जम्मू के एयरफोर्स स्टेशन पर 26/27 जून की रात को ‘ड्रोन अटैक’ होने के बाद डीआरडीओ ने तीनों सशस्त्र बलों के लिए अपने एंटी-ड्रोन सिस्टम का उत्पादन बढ़ाने की योजना बनाई है। इसलिए टाटा, एलएंडटी, अडानी जैसे उद्योग समूहों को ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी (टीओटी) के रूप में भागीदार बनाने का फैसला लिया गया है। इसके लिए निजी कंपनियों को डीआरडीओ से लाइसेंस लेना होगा। इसके बाद डीआरडीओ एंटी-ड्रोन सिस्टम की प्रौद्योगिकी का स्थानांतरण इन उद्योग समूहों को करेगा। टीओटी भागीदार के रूप में टाटा, एलएंडटी और अडानी उद्योग समूह एंटी-ड्रोन सिस्टम का उत्पादन करेंगे। अगले 6 महीनों में ये एंटी-ड्रोन सिस्टम तीनों सेनाओं को मिल सकते हैं। काउंटर-ड्रोन टेक्नोलॉजी सशस्त्र बलों को सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाले छोटे ड्रोनों का तेजी से पता लगाने, उन्हें रोकने और खत्म करने की ताकत दे सकती है।

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डीआरडीओ के एक अधिकारी का कहना है कि यह एंटी ड्रोन सिस्टम हवाई खतरे से निपटने के लिए ‘सॉफ्ट किल’ यानी ड्रोन को जाम करने और ‘हार्ड किल’ यानी लेजर बीम से मार गिराने जैसे दोनों ऑप्शन देगा। अधिकारियों ने बताया कि इस सिस्टम में एक रडार है जो 4 किमी. दूर तक माइक्रो ड्रोन का पता लगाने के साथ 360-डिग्री कवरेज देता है। इसमें लगे इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल/इन्फ्रारेड सेंसर 2 किमी. तक के माइक्रो ड्रोन का पता लगा सकते हैं। रेडियो फ्रीक्वेंसी डिटेक्टर 3 किमी. तक इस तरह के किसी भी कम्यूनिकेशन का पता लगा सकती है। रडार माइक्रो ड्रोन का पता लगाता है और सेंसर के वेरिफिकेशन के बाद सॉफ्ट किल और हार्ड किल के लिए आगे बढ़ा देता है। एक बार पुष्टि होने के बाद दुश्मन के ड्रोन का सिग्नल जाम करने या लेजर हथियारों के जरिए उस पर अटैक करने के लिए एंटी ड्रोन सिस्टम तैयार होता है। लेजर आधारित हार्ड किल सिस्टम 150 मीटर से 1 किमी. के बीच की दूरी पर माइक्रो ड्रोन को बेअसर कर सकता है।

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