लखनऊः ग्रहों के राजा सूर्य देव 14 जनवरी को दोपहर 2 बजकर 28 मिनट पर अपने पुत्र शनि की स्वामित्व वाली मकर राशि में आ रहे हैं। जबकि रात 12 बजकर 15 मिनट तक इसी राशि में रहेंगे। वहीं, शनि देव पहले से ही मकर राशि में है। बुध ने पिछले साल दिसम्बर 2021 को मकर राशि में गोचर किया था। शनि, बुध और सूर्य की मौजूदगी से मकर राशि में त्रिग्रही योग बन रहा है। इस पर्व पर ब्रह्म योग व आनंदादि योग भी बन रहे हैं। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक ब्रह्य योग को शांतिपूर्ण कार्यों को प्रारंभ करने के लिए शुभ माना जाता है। आनंदादि योग सभी प्रकार की असुविधाओं को दूर करता है एवं नाम के अनुसार आनंद भी प्रदान करता है। इस योग में संपन्न कार्यों से हर काम की बाधा और चिंता दूर होती है। किसी भी काम को शुरू करने के लिए आनंदादि योग बेहद शुभ माना जाता है। संक्रांति पर इस योग के आने से पर्व का महत्व बहुत बढ़ गया है।
मकर संक्रांति के दो दिवस को लेकर नहीं करें असमंजस
मकर संक्रांति पर इस साल लोग दो तिथियों को लेकर असमंजस में हैं। अपने संशय को दूर करने के लिए यह जान लें कि मकर संक्रांति तब शुरू होती है। जब सूर्य देव राशि परिवर्तन कर मकर राशि में पहुंचते हैं। इस बार सूर्य देव 14 जनवरी की दोपहर 2 बजकर 27 मिनट पर गोचर कर रहें हैं। ज्योतिष के अनुसार सूर्य अस्त से पहले यदि मकर राशि में सूर्य प्रवेश करते हैं। तो इसी दिन पुण्यकाल रहेगा। 16 घटी पहले और 16 घटी बाद का पुण्यकाल विशेष महत्व रखता है। मकर संक्रांति का पुण्यकाल मुहूर्त सूर्य के संक्रांति समय से 16 घटी पहले और 16 घटी बाद का पुण्यकाल होता है। इस बार पुण्यकाल 14 जनवरी को सुबह 7 बजकर 15 मिनट से शुरू हो जाएगा। जो शाम को 5 बजकर 44 मिनट तक रहेगा। ऐसे में मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही मनायी जाएगी। इस दिन स्नान, दान, जाप कर सकते हैं। वहीं, स्थिर लग्न यानि महापुण्य काल मुहूर्त की बता करें तो यह मुहूर्त 9 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। शुक्रवार 14 जनवरी को मकर संक्रांति है। सूर्य के उत्तरायण का दिन, शुभ कार्यों की शुरुआत इस दिन नदियों में स्नान और दान का बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन से देश में दिन बड़े और रातें छोटी हो जाती हैं एवं शीत ऋतु का प्रभाव कम होने लगता है।
भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है यह त्योहार
मकर संक्रांति भारतवर्ष का एक बड़ा ही प्रसिद्ध त्योहार है। जो अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना और मनाया जाता है। इस त्यौहार का मुख्य उद्देश्य जरूरतमंद लोगों को भिन्न-भिन्न वस्तुओं का दान करना। सूर्य की उपासना करना होता है। जब सूर्य देव अपने गोचर भ्रमण के दौरान मकर राशि में प्रवेश करते हैं। उस दिन मकर संक्रांति के त्योहार के रूप में जाना और मनाया जाता है। सामान्यतय यह दिन 14 जनवरी को ही आता है। संक्रांति का वाहन बाघ है। उपवन घोड़ा है। इस वर्ष संक्रांति ने पीला वस्त्र परिधान किया है। केसर का तिलक लगाया है। खीर भक्षण कर रही है। हाथ में शस्त्र गदा है। संक्रांति उत्तर से आकर दक्षिण जा रही है। पौष मास के शुक्ल पक्ष में संक्रांति आने से समाज में उत्साह का वातावरण रहेगा। मांगलिक कार्य बहुत होंगे, दान में नए बर्तन पीतल, स्टील इत्यादि, गर्म कपड़े भी, हल्दी, कुंकू, नारियल, चीनी, चावल, शक्कर का दान करते हैं। इससे आपके समस्त पापों का ह्रास होता है एवं अनेक पुण्यफलों की प्राप्ति होती है। कष्टों से मुक्ति मिलती है।
इसलिए होता है मकर संक्रांति पर दान का महत्व
मकर संक्रांति पर विशेषतौर पर दान क्यों दिया जाता है? इसके पीछे कारण यह है कि मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं। जो सूर्य को अपना शत्रु मानते हैं। जबकि सूर्य देव शनि को अपना शत्रु नहीं मानते हैं। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश होने से शनि प्रभावित होते हैं। जिसका सीधा-उल्टा असर जनजीवन पर अवश्य ही पड़ता है। लोगों की कुंडली में शनिदेव की स्थिति अच्छी होती है। उनको इसका असर कम देखने को मिलता है लेकिन इसके विपरीत जिन लोगों की कुंडली में शनि कमजोर या दुर्बल स्थिती में होते हैं। उनको इसके दुष्परिणाम घातक दिखाई देते हैं। गरीब एवं मजदूर वर्ग को शनि का कारक माना जाता है। जिस वजह से सूर्य एवं शनि से संबंधित वस्तुएं जैसे गुड़, रेवड़ी, खिचड़ी, बाजरा, मूंगफली, कपड़े, कंबल आदि वस्तुओं का दान करना बेहद शुभ और फलदायी होता है।
मकर संक्रांति पर इन वस्तुओं का दान करने से सूर्य एवं शनि के शुभ परिणाम प्राप्त किए जा सके लेकिन इस दिन के दान में खिचड़ी का विशेष महत्व माना जाता है क्योंकि खिचड़ी बाजरा, मूंग, उड़द एवं चावल की बनाई जाती है। उड़द- शनि का कारक होते हैं। मूंग-बुध का कारक होते हैं। बाजरा- राहु-केतु के कारक होते हैं। चावल- शुक्र एवं चंद्रमा के कारक होते हैं। उड़द एवं बाजरे के दान से शनि-राहु के दुष्परिणामों को कम किया जा सकता है। राहु सदैव शनि के इशारों पर कार्य करता है, कुंडली में शनि का कमजोर होना सीधे राहु को प्रभावित करता है और कमजोर राहु सदैव चकमा देकर दुर्घटना कर देता है इसलिए खिचड़ी में बाजरा व उड़द का होना शनि-राहु के दुष्परिणामों से बचाने में मदद करता है। साथ ही यदि शनि के मित्र ग्रह बुध एवं शुक्र को बलवान किया जाए तो इसका सीधा-सीधा असर शनि के शुभ परिणामों में मिलता है। इसलिए खिचड़ी में मूंग व चावल भी मिलाया जाता है ताकि शनि के मित्र ग्रहों को बलवान बनाकर शनि को शुभ बनाया जा सकता है। इस वर्ष मकर संक्रांति पर शनि देव पहले से ही मकर राशि में गोचर कर रहे हैं। साथ ही 14 जनवरी को सूर्य देव का मकर राशि में गोचर से सूर्य-शनि की युति बन रही है जिससे आगे आने वाला समय अधिक संघर्षशील हो सकता है।
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इन वस्तुओं का अवश्य करें दान
इस बार मकर संक्रांति पर सूर्य-शनि से संबंधित वस्तुओं जैसे- गुड, मूंगफली, रेवड़ी, खिचड़ी, कंबल आदि गरीब एवं मजदूर वर्ग के लोगों में जरूर दान करें ताकि सूर्य शनि की युक्ति के दुष्परिणामों से बचा जा सके। मकर सक्रांति के दिन, सूर्य एवं शनि के बीज मंन्त्र, आदित्य ह्रदयं स्त्रोत, राम रक्षा स्त्रोत, हनुमान चालीसा, गायत्री मंन्त्र आदि का पाठ करना शुभ फलदायी रहेगा। इस बार सूर्य और शनि महाराज साथ मे है तो इस सक्रांति को दीप दान का विशेष महत्व रहेगा। जिन लोगों को नॉकरी या बिजनेस में दिक्कतें आ रही है। वह लोग पीपल के पेड़ के नीचे सरसो के तेल का दिया अवश्य लगाएं। साथ साथ जिन लोगो की कुंडली मे शनि ग्रह निर्बल या अस्त हो या शनि की छोटी पनौती या साढ़े साती हो वो लोग अवश्य इस उपाय को करे और पित्रों का तर्पण भी इस दिन करना विशेष महत्व रखेगा।
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