Doctor rape murder case: आर.जी. कर अस्पताल मामले में पोस्टमार्टम के दौरान डोम को शव के पास नहीं जाने दिया गया, जिससे जांचकर्ताओं के सामने नए सवाल खड़े हो गए हैं। सीबीआई जांच में यह तथ्य सामने आया है कि अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष के ‘विश्वस्त’ डॉक्टरों का मेडिकल छात्रा के पोस्टमार्टम की प्रक्रिया पर पूरा नियंत्रण था। अब एक डोम के बयान के आधार पर इस मामले में और जानकारी सामने आई है, जो जांच की दिशा बदल सकती है।
डोम को नहीं करने दिया गया उसका काम
जांच से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक शवगृह में ड्यूटी पर तैनात डोम को पोस्टमार्टम के दौरान शव के पास नहीं जाने दिया गया। उसे एक कोने में कुर्सी पर बैठा दिया गया। डोम का काम पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर को शव पर लगे जख्मों और चोटों के बारे में बताना और अंत में शव पर टांके लगाना होता है। लेकिन उस दिन डोम को इन कामों से पूरी तरह दूर रखा गया, जिससे लगता है कि कुछ चोटों को छिपाने की कोशिश की गई। पोस्टमार्टम करने वाले मुख्य डॉक्टर अपूर्व विश्वास और डोम को आमने-सामने बैठाकर पूछताछ की गई, जिसमें यह जानकारी सामने आई।
डोम से अलग-अलग की गई पूछताछ
जांचकर्ताओं का कहना है कि उस दिन सूर्यास्त से पहले किए गए सात शवों के पोस्टमार्टम में डोम मौजूद था, लेकिन मेडिकल छात्र के पोस्टमार्टम में यह प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। पोस्टमार्टम के दौरान शरीर के हर अंग की स्थिति का विस्तृत विवरण लिखा जाता है। डॉक्टर अंगों के नाम से निर्देश देते हैं और डोम उन्हें उस अंग के घाव और चोटों के बारे में जानकारी देता है। यह जानकारी एक विशेष प्रारूप में दर्ज की जाती है। इसके बाद डॉक्टर घाव और चोटों का निरीक्षण करता है और मौत का समय और कारण निर्धारित करता है। जांचकर्ताओं के अनुसार, पिछले दिनों पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों और शवगृह के डोम से अलग-अलग पूछताछ की गई, जिसमें यह बात सामने आई कि उस दिन पोस्टमार्टम के दौरान डोम शव के पास मौजूद नहीं था।
किसी भी नियम को नहीं किया गया फॉलो
अपूर्वा बिस्वास ने बताया कि पोस्टमार्टम के बाद शव को शवगृह से स्थानांतरित करने के लिए उस समय कोई कर्मचारी उपलब्ध नहीं था, इसलिए डोम को एक तरफ बैठा दिया गया। हालांकि, सवाल यह है कि पोस्टमार्टम के दौरान डोम को काम क्यों नहीं करने दिया गया? इस सवाल का जवाब अपूर्वा स्पष्ट रूप से नहीं दे पाईं। सीबीआई के एक अधिकारी के मुताबिक इतने महत्वपूर्ण पोस्टमार्टम में सभी मानकों का पालन नहीं किया गया। विशेष मामलों में पोस्टमार्टम के दौरान न्यायिक मजिस्ट्रेट भी मौजूद रहते हैं, लेकिन इस मामले में उन्हें भी इजाजत नहीं दी गई।
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अब मजिस्ट्रेट को दोबारा बुलाया जाएगा। जांचकर्ताओं का यह भी दावा है कि संदीप के करीबी वकील, पुलिस अधिकारी और डॉक्टर घटनास्थल पर मौजूद थे। वे यह सुनिश्चित कर रहे थे कि दोबारा पोस्टमार्टम की इजाजत न मिले, क्योंकि पहली रिपोर्ट से जांच में दिक्कत आ सकती थी। इसीलिए शव का तुरंत अंतिम संस्कार कर दिया गया।
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