नई दिल्ली: ईडब्ल्यूएस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी डीएमके ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। डीएमके की ओर से दाखिल पुनर्विचार याचिका में कहा गया है कि मामले की सुनवाई ओपन कोर्ट में की जाए।
डीएमके ने कहा है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण देना और उस कोटे में से एससी, एसटी और ओबीसी को बाहर रखना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। डीएमके ने पुनर्विचार याचिका में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते समय इंदिरा साहनी फैसले के जरिये बनाए गए कानून पर विचार नहीं किया। डीएमके की याचिका में कहा गया है कि 2019 में किए गए 103वें संविधान संशोधन की आड़ में उच्च जातियों के लोगों को विशेष आरक्षण दे दिया गया। आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग जैसा शब्द गलत है, क्योंकि उच्च जातियों ने कभी भी सामाजिक तौर से भेदभाव का सामना नहीं किया है।
याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात पर विचार नहीं किया कि कैसे अगड़ी जातियां एक संविधान संशोधन के बाद कमजोर आंकी जा सकती हैं। इसके पहले मध्य प्रदेश कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने भी पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने 7 नवंबर को 3-2 के बहुमत से ईडब्ल्यूएस आरक्षण को वैध करार दिया था। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को वैध करार दिया था जबकि चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस रविंद्र भट्ट ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण से असहमति जताई थी।
तीनों जजों ने कहा था कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण संविधान की मूल भावना का उल्लंघन नहीं करता है। इन जजों ने संविधान के 103वें संशोधन को वैध करार दिया है। बेंच के सदस्य जस्टिस पारदीवाला ने कहा था कि आरक्षण अनिश्चित काल के लिए नहीं बरकरार रखा जा सकता है। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा था कि आरक्षण की नीति की दोबारा पड़ताल करने की जरूरत है। जस्टिस एस रविंद्र भट्ट ने बहुमत के फैसले से असहमति जताते हुए कहा था कि ईडब्ल्यूएस कोटे से एससी,एसटी और ओबीसी को बाहर करना ठीक नहीं है।
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