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महालक्ष्मी का आराधन पर्व दीपोत्सव

Women lights diyas (earthen lamp) on the occasion of Diwali Festival at Lord Ramchandra Ji Temple

पुराणों के अनुसार कार्तिक मास में पड़ने वाला दीपोत्सव पर्व दीपदान द्वारा विशेष फलदायी होता है। दीपोत्सव भारतवर्ष का सबसे गरिमामयी पर्व है। दीपोत्सव पर्व सतत पाँच दिन तक मनाया जाने वाला श्री लक्ष्मी पर्व है। इसका प्रारम्भ कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी से होता है तथा कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया तक इस पर्व को विशेष रूप से मनाया जाता है। कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष त्रयोदशी अर्थात धनतेरस से दीपोत्सव या दीपदान का प्रारम्भ होता है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वन्तरी की पूजा की जाती है। पूरा वैद्य समाज इस दिन औषधीयों के देवता की पूजा कर धनतेरस का उत्सव मनाता है। सांयकाल में दक्षिण दिशा की तरफ मृत्यु के देवता यमराज के निमित्त दीपदान करने से मृत्युभय का नाश होता है तथा असामधिक या अकाल मृत्यु नहीं होती है। धनतेरस के दिन चांदी का बर्तन या कोई वस्तु खरीदना लक्ष्मी की वृद्धि करने वाला होता है। धनतेरस के दिन यदि यमुनाजी में स्नान किया जाय तो लक्ष्मी, आरोग्य एवं दीर्घायु का लाभ प्राप्त होता है।

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी अर्थात नरक चतुर्दशी को भी यमराज देवता के निमित्त दीपदान करना चाहिए। इस दिन सांय काल में सभी देवी-देवताओं का पूजन करके मंदिरों, रसोईघर, स्नानघर, देववृक्ष यथा पीपल, बरगद, तुलसी, केला, शमी के वृक्ष के नीचे, सभाभवन, नदियों के किनारे, बगीचे, गृह की चहारदीवारी, गोशाला आदि प्रत्येक स्थान में दीपदान करना चाहिए। यमराज देवता के निमित्त धनतेरस से अमावस्या (दीपावली) तक दीपदान करने से नरक की यातना नहीं मिलती है एवं गृह में लक्ष्मी का आगमन अवश्य होता है। धनधान्य की समृद्धि बढ़ती है।

कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को हनुमान जयंती का विशेष पर्व मनाया जाता है। इस दिन मंगलवार को श्री हनुमानजी का प्राकट्य हुआ था। इस दिन मंदिरों में हनुमान जी का दर्शन पूजन, नैवेद्य, भोग अर्पण करने से तथा उनके निमित्त दीपदान करने से श्री हनुमानजी की कृपा प्राप्त होती है एवं शत्रु बाधा, रोग बाधा व दरिद्रता से मुक्ति मिलती है। गृह में लक्ष्मी का निवास बढ़ता है एवं धनधान्य से सम्पन्नता बढ़ती है।


दीपोत्सव का तीसरा दिन दीपावली के नाम से जाना जाता है। भारत में मनाये जाने वाले सभी पर्वों में इस पर्व का अपना विशेष स्थान है। इस दिन विशेष मूहुर्त में श्री गणेश, कलश, षोडशमातृका एवं नवग्रह पूजन सहित भगवती श्रीलक्ष्मी का पूजन किया जाता है। इसके अनन्तर भगवती महाकाली का दवात स्याही के रूप में, भगवती सरस्वती का कलम के रूप में, व्यापारियों के बहीखाता, तिजोरी, तुला का कुबेर के रूप में पूजन किया जाता है। इसी समय सायंकाल में दीप पूजन करके यमराज तथा पितृगणों के निमित्त दीपदान किया जाता है। तत्पश्चात घर-द्वार, व्यापारिक स्थल, मंदिर, बाग-बगीचे, चौराहे आदि स्थानों पर एवं नदियों पर तैलपूर्ण प्रज्वलित दीपदान करना चाहिए। पावन-पूज्य स्थल यथा तुलसी, मंदिर आदि में घी के दीपक या तिल के तेल के दीपक प्रज्ज्वलित करने चाहिए। श्रद्धा तथा शक्ति सामर्थ्य के अनुसार पराम्बा लक्ष्मी जी की पूजा करनी चाहिए।

जनमानस में यह विश्वास है कि दीपावली की रात्रि में विष्णुप्रिया लक्ष्मी जी सद्गृहस्थों के घरों में विचरण कर यह देखती हैं कि हमारे निवास योग्य घर कौन सा है और जहां कहीं उन्हें अपने निवास की अनुकूलता दिखायी पड़ती है वहीं रम जाती हैं। अतएव मानव को सदैव लक्ष्मी के निवास योग्य वस्तु का संचय एवं लक्ष्मी की प्रसन्नता वाले कर्म करने चाहिए। भगवती श्री लक्ष्मी को कौन-कौन सी वस्तुएं प्रिय हैं अथवा अप्रिय हैं तथा लक्ष्मी जी की मनोनुकूलता वाला निवास स्थल एवं लक्ष्मी जी के लिए वर्जनीय या लक्ष्मीप्रिय व्यक्ति के लिए क्या-क्या वर्जनीय है, इसका विवेचन अतीव कुशलतापूर्वक शास्त्र-पुराणादि में किया गया है। सौभाग्यलक्ष्मी तन्त्र के अनुसार भगवान विष्णु एवं भगवती लक्ष्मी के इस सम्बन्ध संवाद का वर्णन मिलता है। जिसके अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने भगवती लक्ष्मी देवी से पूछा- हे देवी! तुम किस उपाय से मनुष्यों के निकट स्थिर रह सकती हो। लक्ष्मी देवी कहती हैं, हे कृष्ण! जहां सफेद रंग के कबूतर रहते हों, जहां गृहिणी रूपवती तथा कलह रहित रहती है, मैं वहीं रहती हूं। हे कृष्ण! जहां सोने के रंग का गेंहू या धान, चाँदी के समान चावल तथा भूसी से रहित अन्न विद्यमान है, मैं वहां निवास करती हूं। हे कृष्ण! जो सत्पात्र को अन्नादि दान करता है, प्रिय वाक्य बोलता है, ज्ञानीजनों की सेवा करता है, देखने में सुन्दर, अल्पभाषी तथा अल्प समय वाले कार्य में अधिक समय न लगाने वाले पुरुष के पास मैं सर्वदा वास करती हूं।


त्याग, सत्य और पवित्रता, ये महागुण हैं। जो इन तीन गुणों को प्राप्त है, ऐसा श्रद्धावान मुझे प्रिय है। सभी लक्षणों में त्याग अर्थात दान श्रेष्ठ है। मैं श्वेतपद्म, नीले कमल पुष्प, शंख, चन्द्रमा एवं नारायण में, पृथ्वी पर तथा जिस मंदिर में नित्य उत्सव होता हो, वहां निवास करती हूं। जो स्त्री शास्त्र उपदेशानुसार गुरु में भक्ति करती है, विवाहित होने पर पति की बातें मानती है, पति के भोजन के उपरान्त भोजन करती है, उसके शरीर में मैं लक्ष्मी निवास करती हूं।
लक्ष्मी देवी अपने निवास के वर्जनीय स्थान बताती हैं।

जो स्त्री पापिनी, हत्यारिन, दुष्टस्वभाव, पति को अधीन रखकर तिरस्कृत करने वाली, क्रोधवती एवं असच्चारित्रा है, ऐसी प्रेतसदृश्य स्त्री का मैं लक्ष्मी त्याग करती हूं। बासी-सड़ा फूल, फटा आसन, टूटा आसन तथा असच्चरित्रा स्त्री को लक्ष्मी त्याग देती है। चिता का अंगार, अस्थि, अग्नि भस्म, ब्राह्मण, गाय, कपास के बीज, गुरु को अपने पैर से स्पर्श करने वाले को लक्ष्मी त्याग देती हैं। नख या केश पड़ा जल, सन्ध्याकाल में मैथुन, सम्पूर्ण नग्न होकर शयन करने और अकेले ही मिठाई खान वाले को लक्ष्मी त्याग देती है। मस्तक पर पुष्प रखने से, चरणों को स्वच्छ रखने से, अल्प भोजन करने से, कपड़ा पहन कर शयन करने से तथा सन्ध्याकाल में मैथुन न करने से नष्ट हो गयी लक्ष्मी को पुनः प्राप्त करा देती हूं। झाड़ू की धूल, झाड़ू की हवा लगने सेवा तथा रात्रि को बेल के फल का सेवन, साग का सेवन एवं दही के सेवन करने से लक्ष्मी उसको त्याग देती हैं। अपने शरीर अथवा आसन या कुर्सी को बजाना, खराब, फटा, जला वस्त्र धारण करना तथा सूखा अर्थात घी, तेल रहित भोजन करने से लक्ष्मी त्याग देती है। स्वयं गले में पहली या पहनायी पुष्पमाला निकालने से लक्ष्मी त्याग देती है। शुक्रवार को तेल का स्पर्श, अमावस्या को गन्ध लेप का स्पर्श एवं अपने बायें हाथ से अपने मस्तक का स्पर्श नहीं करना चाहिए, अन्यथा लक्ष्मी त्याग देती है। पुरुष अशुद्ध अवस्था यथा मलमूत्र त्याग करते हुए सूर्य-चंद्र के दर्शन न करें। अस्त होते हुए सूर्य के दर्शन न करें, अन्यथा लक्ष्मी त्याग देती है।


भगवती लक्ष्मी कहती हैं, जो मेरी आकांक्षा करता है, वह अपने नख, कांटा, रक्त, मृत्तिका, कोयला तथा जल-द्वारा या पृथ्वी पर व्यर्थ नहीं लिखना चाहिए। स्वयं माला गूंथकर स्वयं माला पहनने से, स्वयं चन्दन घिसकर स्वयं लगाने से और नाई के घर जाकर बाल कटवाने से लक्ष्मी त्याग देती हैं। ज्योति की निन्दा करने से, सतस्त्रियों के साथ प्रतिकूल आचरण करने से लक्ष्मी त्याग देती है। भीगे पैर करके सोने से, रात्रि में शयन का कपड़ा प्रातः पहनने से, सूखे पैर भोजन करने से, मलिन तथा दुर्गन्धयुक्त वस्त्र शरीर पर धारण करने से लक्ष्मी त्याग देती है। सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय ही सोने वाले को लक्ष्मी त्याग देती है। भगवती लक्ष्मी की नित्यपूजा अर्चना करने वाला तथा लक्ष्मी देवी का चिन्तन करने वाला लक्ष्मी का प्रिय होता है। उपर्युक्त गुणों के विद्यमान होने पर एवं लक्ष्मी की प्रसन्नता वाले आचरण से भगवती लक्ष्मी का निवास उनके गृह में स्थायी होने लगता है।

इस पर्व का चौथा दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को मनाया जाने वाला गोवर्धन नामक पर्व है। इस दिन पवित्र होकर प्रातः काल गोवर्धन तथा गोपेश भगवान श्रीकृष्ण का पूजन किया जाता है एवं संध्याकाल में उनके निमित्त दीपदान किया जाता है। इस समय तक शरत्कालीन उपज परिपक्व होकर घरों में आजाती है। अतः निश्चिन्त होकर लोग नमी उपज के अनाजों से विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थ बनाकर श्री नारायण भगवान को समर्पित करते हैं।

दीपोत्सव पर्व का समापन दिवस कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया, जिसे भैयादूज कहा जाता है तथा चित्रगुप्त की पूजा-अर्चना भी की जाती है। भैयादूज अथवा यम द्वितीया को मृत्यु के देवता यमराज का पूजन किया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई को घर पर निमंत्रित करती हैं एवं भोजनादि से सत्कार करती हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने आते हैं। उन्हीं का अनुकरण करते हुए भारतीय भ्रातृ परम्परा अपनी बहनों से मिलती हैं और उनका यथेष्ट सम्मान पूजनादि कर उनसे आशीर्वाद रूप में तिलक प्राप्त कर अनुगृहीत होती हैं। शास्त्रानुसार ऐसा बहनों द्वारा अपने भाई का सत्कार करने से एवं यमराज का पूजन करने से भाई को यमराज के भय से मुक्ति प्रदान करती हैं।

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इस प्रकार समग्र रूप से दीपोत्सव रूपी दीपावली महोत्सव, स्वास्थ्य सम्पन्न, धन सम्पन्न, शक्ति सम्पन्न तथा उल्लास और आनन्द को परिवर्धित करने वाला पर्वराज महोत्सव है।