Chhattisgarh: यहां अग्नि नहीं, पानी को साक्षी मानकर विवाह बंधन में बंधते हैं युगल

रायपुरः बस्तर अपनी अनूठी आदिम परंपरा के निर्वहन के साथ ही कला, संस्कृति, वेशभूषा, प्राकृतिक सौंदर्य, लोकगीतों को अपने आप में समेंटे हुए है। बस्तर संभाग के ग्रामीण प्रकृति के पूजक हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए कांकेर नाला से पानी लाकर बस्तर के धुरवा समाज (dhurwa samaj) के 17 नवदम्पतियों ने परंपरानुसार पानी को साक्षी मानकर अपने समाज के लोगों की मौजूदगी में शुक्रवार को विवाह संस्कार संपन्न करवाया।

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बस्तर के मूल निवासी धुरवा समाज शताब्दियों से अपनी परंपरा का निर्वहन करते हुए अग्रि को नहीं पानी को अपनी माता मानते हुए पानी को साक्षी मानकर विवाह संस्कार एवं सभी शुभकार्यों में पानी को महत्व देते हैं। इसी कड़ी में जिला मुख्यालय से महज 35 किलोमीटर दूर दरभा ब्लॉक मुख्यालय में धुरवा समाज (dhurwa samaj) के लोगों ने आज 17 जोड़ों का सामूहिक विवाह पानी को साक्षी मानकर सम्पन्न कराया है। समाज के प्रमखों ने बताया कि प्रतिवर्ष धुरवा समाज मई माह में स्थापना दिवस भव्य रूप से मनाता है। इस वर्ष भी यह स्थापना दिवस संभागीय स्तर पर भव्य रूप से मनाया। जिसके बाद 17 जोड़ों का विवाह दूसरे दिन सम्पन्न कराया गया।

संभागीय अध्यक्ष पप्पूराम नाग एवं महासचिव गंगाराम कश्यप ने बताया कि धुरवा समाज की पुरानी पीढ़ी कांकेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के समीप निवास करती थी। लगातार कांकेर नाला के पानी को साक्षी मानकर शुभ कार्य करती थी। आज भी कांकेर नाला से पानी लाया गया था। इस पवित्र पानी को सभी दंपतियों के ऊपर पानी छिड़ककर रस्म को पूरा किया गया। उन्होंने बताया कि इससे पूर्व भी समाज के लोगों ने दो दंपति का विवाह दरभा ब्लॉक के छिंदवाड़ा में सम्पन्न कराया था। आने वाले दिनों में भी परम्पराओं को मानते हुए ही पानी को साक्षी मानकर लगभग बस्तर संभाग से 100 जोड़ों का सामूहिक विवाह कराया जायेगा। इससे बस्तर के अधिकतर ग्रामीण जो वनोपज पर आश्रित रहते हैं। उन्हें फिजूल खर्चे से निजात मिलेगा।

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