धनतेरसः स्वास्थ्य चेतना जागृति का पर्व

दीपावली से दो दिन पूर्व ‘धनतेरस’ त्योहार मनाया जाता है। हालांकि इस वर्ष यह पर्व दिवाली से एकदिन पहले ही मनाया जा रहा है। सही मायनों में दिवाली के पंच पर्व की शुरुआत ही स्वास्थ्य चेतना जागृति के इसी पर्व से होती है। ‘धनवंतरि जयंती’ आरोग्य के देवता धन्वंतरि का अवतरण दिवस है। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में 12वां अवतार धन्वंतरि का माना गया है।
धनतेरस के प्रचलन का इतिहास बहुत पुराना माना जाता है। यह त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। धनतेरस को अब भारत में ‘राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है। धन्वंतरि को आयुर्वेद का देवता और देवताओं का चिकित्सक माना गया है, इसलिए धनतेरस को चिकित्सकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। धन्वंतरि को आयुर्वेद का जन्मदाता माना जाता है, जिन्होंने विश्वभर की वनस्पतियों पर अध्ययन कर उनके अच्छे और बुरे प्रभावों व गुणों को प्रकट किया। इस दिन आरोग्य के देवता भगवान धन्वन्तरि तथा धन एवं समृद्धि की देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय इसी दिन धन्वंतरि आयुर्वेद और अमृत लेकर प्रकट हुए थे। दिवाली महापर्व का पहला दीप जलाकर शुरू हुए महोत्सव का एक अंग नए बर्तन खरीदना भी है, ताकि भगवान के लिए भोग-प्रसाद नए पात्र में तैयार किया जा सके। दरअसल धन्वंतरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था और चूंकि भगवान धन्वंतरि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसीलिए इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है।

धनतेरस मनाए जाने के संबंध में जो प्रचलित कथा है, उसके अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं और असुरों द्वारा मिलकर किए जा रहे समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से निकले नवरत्नों में से एक धन्वंतरि ऋषि भी थे, जो जनकल्याण की भावना से अमृत कलश सहित अवतरित हुए थे। समुद्र मंथन की इस कथा का उल्लेख श्रीमद्भागवत पुराण, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, महाभारत इत्यादि विभिन्न पुराणों में मिलता है। समुद्र मंथन के दौरान कई प्रकार की औषधियां उत्पन्न हुई और उसके बाद अमृत निकला। इसी अमृत कलश के लिए देवताओं और दानवों के बीच भयानक संग्राम हुआ था। धन्वंतरि ऋषि ने समुद्र से निकलकर देवताओं को अमृतपान कराया और उन्हें अमर कर दिया। यही वजह है कि धन्वंतरि को ‘आरोग्य का देवता’ माना जाता है और आरोग्य तथा दीर्घायु प्राप्त करने के लिए ही लोग इस दिन उनकी पूजा करते हैं। इस पर्व के संबंध में एक मान्यता यह भी है कि भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिए योग निरोध के लिए चले गए थे और तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुए दिवाली के दिन ही निर्वाण को प्राप्त हुए थे। एक मान्यता है कि तभी से यह दिन धनतेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

इस दिन मृत्यु के देवता यमराज के पूजन का भी विधान है और उनके लिए भी एक दीपक जलाया जाता है, जो ‘यम दीपक’ कहलाता है। स्कंद पुराण के अनुसार प्रति वर्ष कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को प्रदोषकाल में घर के दरवाजे पर दीप जलाने से अकाल मृत्य का भय नहीं रहता। कहा गया है कि दीप जलाते हुए इस मंत्र का जाप करते रहना चाहिए:- मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति।। इसका अर्थ है, त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनंदन यम प्रसन्न हों। धनतेरस के दिन यमराज के पूजन के संबंध में एक कथा प्रचलित है। धार्मिक ग्रथों में इस कथा का वर्णन इस प्रकार किया गया है-

एकबार यमराज ने अपने दूतों से प्रश्न किया कि क्या प्राणियों के प्राण हरते समय तुम्हें कभी किसी प्राणी पर दया भी आई? यह प्रश्न सुनकर सभी यमदूतों ने कहा, ‘‘महाराज, हमसब तो आपके सेवक हैं और आपकी आज्ञा का पालन करना ही हमारा धर्म है। अतः दया और मोह-माया से हमारा कुछ लेना-देना नहीं है।’’

यमराज ने उनसे जब निर्भय होकर सच-सच बताने को कहा, तब यमदूतों ने बताया कि उनके साथ एकबार वास्तव में ऐसी एक घटना घट चुकी है। यमराज ने विस्तार से उस घटना के बारे में बताने को कहा तो यमदूतों ने बताया कि एकदिन हंस नाम का एक राजा शिकार के लिए निकला और घने जंगलों में अपने साथियों से बिछुड़कर दूसरे राज्य की सीमा में पहुंच गया। उस राज्य के राजा हेमा ने राजा हंस का राजकीय सत्कार किया और उसी दिन हेमा की पत्नी ने एक अति सुन्दर पुत्र को जन्म दिया लेकिन ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि विवाह के मात्र चार दिन बाद ही इस बालक की मृत्यु हो जाएगी। यह दुःखद रहस्य जानकर हेमा ने अपने नवजात पुत्र को यमुना के तट पर एक गुफा में भिजवा दिया और वहीं उसके लालन-पालन की शाही व्यवस्था कर दी गई और बालक पर किसी युवती की छाया भी नहीं पड़ने दी लेकिन विधि का विधान तो अडिग था।

एकदिन राजा हंस की पुत्री घूमते-घूमते यमुना तट पर निकल आई और राजकुमार की उसपर नजर पड़ गई। उसे देखते ही राजकुमार उसपर मोहित हो गया। राजकुमारी की भी यही दशा थी। अतः दोनों ने उसी समय गंधर्व विवाह कर लिया लेकिन विधि के विधान के अनुसार 4 दिन बाद राजकुमार की मृत्यु हो गई। यमदूतों ने यमराज को बताया कि उन्होंने ऐसी सुन्दर जोड़ी अपने जीवन में इससे पहले कभी नहीं देखी थी। वे दोनों कामदेव और रति के समान सुन्दर थे। इसीलिए राजकुमार के प्राण हरने के बाद नवविवाहिता राजकुमारी का करुण विलाप सुनकर उनका कलेजा कांप उठा। घटना का पूर्ण वृतांत सुनने के बाद यमराज ने यमदूतों से कहा कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन धन्वन्तरि ऋषि का पूजन करने तथा यमराज के लिए दीप दान करने से इस प्रकार की अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है।

ऐसी मान्यता है कि उसके बाद से ही इस दिन धन्वन्तरि ऋषि और यमराज का पूजन किए जाने की प्रथा आरंभ हुई। धनतेरस के दिन घर के टूटे-फूटे बर्तनों के बदले तांबे, पीतल अथवा चांदी के नए बर्तन तथा आभूषण खरीदना शुभ माना जाता है। कुछ लोग इस दिन नई झाड़ू खरीदकर उसका पूजन करना भी शुभ मानते हैं।
योगेश कुमार गोयल