फसलों के ‘रक्षक’ बने देसी सेहुंड, आवारा पशुओं से किसानों को मिली राहत

लखनऊः पशुओं से खेतों को बचाना काफी मुश्किल हो रहा है, इसलिए अब काफी पुराने तरीके अपनाए जा रहे हैं। खास बात यह है कि ये तरीके कारगर साबित हो रहे हैं। अब कटीले तारों से ज्यादा कांटे और खर-पतवार को मेड़ पर लगाकर फसल की सुरक्षा की जा रही है। ऐसा अजीटनखेड़ा के किसान पिछले 2 सालों से कर रहे हैं।

यहां के किसान अपने खेत की मेड़ पर खर-पतवार लगा रहे हैं। सेहुंड का नाम सुनने से आपको अजीब तो लगेगा, लेकिन इस कांटेदार झाड़ी को अजीटनखेड़ा के लोग काफी महत्व दे रहे हैं। इसे यहां के किसान थूहर कहते हैं। इसे बाग-बगीचों में बाड़ की तरह इस्तेमाल किया जाता है। किसान मानते हैं कि इससे कई फायदे हैं। तारों की तरह महंगाई का बोझ इनके इस्तेमाल में नहीं है। इसके साथ ही पशुओं के घायल होने का भी डर नहीं है। किसानों के लिए एक और फायदा यह है कि किसान के खेत में क्या बोया गया है, वह बाहर से नहीं दिखता है।

इसका कारण है कि इन कांटेदार पौधों के बीच में लंबी और ऊंचाई तक पहुंचने वाली बेल भी उगती है। इसके अलावा अनेक औषधीय गुण भी इस सेहुंड में है। इसके तने व शाखाएं कांटों से परिपूर्ण होती हैं। थूहर की कई किस्म होती हैं। इनकी शाखाएं पतली, पोली और मुलायम होती हैं। गांव के किसानों ने दो साल से इसे लगाना शुरू किया है। किसानों का कहना है कि पशुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। यहां सैकड़ों की संख्या में ये घूमते रहते हैं।

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फसलों का बड़ा हिस्सा आवारा पशु खा जाते हैं। गांव में करीब 24 किसानों के खेतों में इस कांटेदार पौधे को लगाया गया है। जिन्होंने इसे लगाया है, वह काफी खुश है। इन पौधों के लगने के बाद उन्हें आवारा पशुओं के आतंक से छुटकारा मिल गया है।