Defense Ministry: भारत के लड़ाकू विमान सुखोई 30-एमकेआई (Sukhoi jets) को लेकर गुरुवार को एक अहम समझौता हुआ। करीब 13,500 करोड़ रुपये के इस समझौते के तहत 12 ‘सुखोई-30एमकेआई’ (Sukhoi Su-30MKI ) लड़ाकू विमानों की खरीद और अन्य प्रावधानों के लिए एचएएल के साथ यह अनुबंध किया गया है।
Defense Ministry: ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल कदम
सरकार की ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल को बढ़ावा देते हुए रक्षा मंत्रालय और मेसर्स हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के बीच गुरुवार को 12 सुखोई 30-एमकेआई (Sukhoi Su-30MKI ) विमानों और संबंधित उपकरणों की खरीद के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए हैं। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक सभी करों सहित इस सौदे की लागत करीब 13,500 करोड़ रुपये है। भारत के इन लड़ाकू विमानों में 62.6 प्रतिशत तक स्वदेशी सामग्री होगी।
Defense Ministry: भारतीय वायुसेना की रक्षा तैयारियां होगी मजबूत
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, इन विमानों (Sukhoi Su-30MKI ) में इतनी बड़ी संख्या में स्वदेशी सामग्रियों का उपयोग भारतीय रक्षा उद्योग द्वारा निर्माण और स्वदेशीकरण के कारण संभव हो पाया है। भारत के इन लड़ाकू विमानों का निर्माण एचएएल के नासिक डिवीजन में किया जाएगा। इन विमानों की आपूर्ति से भारतीय वायुसेना की परिचालन क्षमता में वृद्धि होगी और देश की रक्षा तैयारियां मजबूत होंगी।
इससे पहले रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए रक्षा मंत्रालय ने 26,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से सुखोई-30 एमकेआई विमानों के लिए 240 एएल-31एफपी एयरो इंजन खरीदने के लिए HAL के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे। इस साल सितंबर में तत्कालीन रक्षा सचिव गिरिधर अरामने और वायुसेना प्रमुख की मौजूदगी में इस अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए थे।
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Defense Ministry: अगले 8 वर्षों होगी 240 इंजनों की आपूर्ति
रक्षा मंत्रालय का कहना है कि इन एयरो इंजनों का निर्माण HALके कोरापुट डिवीजन में किया जाएगा और देश की रक्षा तैयारियों के लिए सुखोई-30 (Sukhoi Su-30MKI ) बेड़े की परिचालन क्षमता को बनाए रखने के लिए भारतीय वायुसेना की जरूरतों को पूरा करने की उम्मीद है। एचएएल अनुबंधित डिलीवरी शेड्यूल के अनुसार प्रति वर्ष 30 एयरो इंजन की आपूर्ति करेगा। सभी 240 इंजनों की आपूर्ति अगले आठ वर्षों की अवधि में पूरी की जाएगी।
एचएएल डिलीवरी शेड्यूल के अंत तक स्वदेशीकरण सामग्री को 63 प्रतिशत तक बढ़ा देगा, जिससे इसका औसत 54 प्रतिशत से अधिक हो जाएगा। इससे एयरो इंजन मरम्मत कार्यों में स्वदेशीकरण सामग्री को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।