Home आस्था नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री के मंत्र का करें जाप, जानें...

नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री के मंत्र का करें जाप, जानें कौन हैं यह देवी

maa-shailputri

लखनऊः शनिवार से वासंतिक नवरात्र प्रारम्भ हो रहा है। प्रथम दिन देवी दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा होगी। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा था। वृषभ-स्थिता माताजी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। ये ही नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं।

पूर्वजन्म में प्रजापति दक्ष की पुत्र थी मां शैलपुत्री
अपने पूर्वजन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं। तब इनका नाम ‘सती’ था। इनका विवाह भगवान् शंकर जी से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सभी देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिये निमन्त्रित किया, किन्तु शंकर जी को उन्होंने इस यज्ञ में नहीं बुलाया। सती को जब जानकारी मिली कि हमारे पिता एक अत्यन्त विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहाँ जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकर जी को बतायी। शंकर जी ने काफी विचार मंथन के बाद उनसे कहा, ‘‘प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किये हैं, किन्तु हमको जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।’’ भगवान शंकर के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, वहाँ जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। अंततः उनका प्रबल आग्रह देख शंकर जी ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दी।

पिता के घर पहुँचकर सती ने अनुभव किया कि वहां कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बात तक नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे। परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत दुख पहुँचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान् शंकर के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से सन्तप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान् शंकर की बात न मान, यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है। वह अपने पति भगवान् शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकर जी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया। सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वह ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुईं। पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद की एक कथा के अनुसार इन्हीं हैमवती स्वरूप से मां ने देवताओं का गर्व-भंजन किया था। ‘शैलपुत्री’ देवी का विवाह भी शंकर जी से ही हुआ। पूर्वजन्म की भाँति इस जन्म में भी वह शिवजी की अर्धांगिनी बनीं। नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनन्त हैं। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस दिन की उपासना में योगी अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्रमें स्थिर करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारम्भ होता है।

ये भी पढ़ें..IPL 2022: दिल्ली कैपिटल्स के लिये ये दो खिलाड़ी बनेंगे मैच…

देवी का मंत्र-
‘‘वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनींम।।’’

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर  पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें…)

Exit mobile version