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केंद्र सरकार, कामधेनु दीपावली अभियान और भारतीय समाज

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गाय भारतीय जीवन में परंपरागत रूप से कामधेनु के रूप में पूजित रही है। कामधेनु के अर्थ में जाएं तो कामधेनु सनातन हिन्दू धर्म में एक देवी है, जिनका स्वरूप गाय का है। कामधेनु जिसके पास होती हैं वह जो कुछ माँगता है, उसे वह मिल जाता है। (काम = इच्छा , धेनु=गाय)। इसके अन्य नामों की यहां चर्चा की जाए तब वे अन्य नाम हैं- सुरभि, जिसका अर्थ हुआ मीठी सुगंध और दिव्य गाय। सबला का अर्थ हुआ सशक्त स्वरूपा, दया, ममता, त्याग, दृद इच्छा शक्ति जैसे भाव एक साथ जिसमें समाहित हों। कपिला का तात्पर्य एक सीधी गाय, सफेद या भूरे रंग की दिव्य गाय है। कामदूह के अर्थ में कामनाओं यानी इच्छाओं की पूर्ति करने वाली। ज्योति के अर्थ में जो स्वयं से प्रकाशित या प्रकाशमान हैं और गौ माता का अर्थ तो हम सभी जानते हैं। वेद भारत के ही सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं, ऐसा नहीं है, बल्कि दुनिया के ये प्राचीनतम ग्रंथ हैं।

प्रोफेसर विंटरनिट्ज मानते हैं कि वैदिक साहित्य का रचनाकाल 2000-2500 ईसा पूर्व हुआ था। किंतु उनकी इस बात को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वानों ने वेदों के रचना काल की शुरुआत 4500 ई.पू. से मानी है। वैदिक साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान डॉ. कपिल देव द्विवेदी का मत है की दुनिया का ज्ञात इतिहास 10 हजार वर्ष से अधिक का नहीं है, इसलिए 4000 ईसा पूर्व से वेदों की रचना शुरू होकर के 1000 ईसा पूर्व तक वेदों की रचना होती रही होगी।

इसके अतिरिक्त महर्षि दयानंद द्वारा लाखों वर्ष पूर्व का सिद्धांत प्रतिपादित किया है। इस तरह से देखें तो ईसा से कितने वर्षों पहले यह लिखे जा चुके थे, इसका सही अंदाजा अब तक कोई नहीं लगा पाया है। वेदों की 28 हजार पांडुलिपियाँ भारत में पुणे के 'भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट' में रखी हुई हैं। इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया है। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है।

वेद को 'श्रुति' भी कहा जाता है। 'श्रु' धातु से 'श्रुति' शब्द बना है। 'श्रु' यानी सुनना। सनातन से मान्यता यही है कि मन्त्रों को ईश्वर (ब्रह्म) ने प्राचीन तपस्वियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था जब वे गहरी तपस्या में लीन थे। सर्वप्रथम ईश्वर ने चार ऋषियों को इसका ज्ञान दिया था, वे अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य थे। वैदिक काल की वाचिक परंपरा में पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह प्रदाय किए जा रहे हैं। विद्वानों ने संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद इन चारों के संयोग को समग्र वेद कहा है। ये चार भाग सम्मिलित रूप से श्रुति कहे जाते हैं। बाकी ग्रंथ स्मृति के अंतर्गत आते हैं। इन सभी ग्रंथों में गाय के महत्व को गहराई से बताया गया है।

"देवो वः सविता प्रार्पयतु श्रेष्ठतमाय कर्मण आप्यायध्वमन्या इन्द्राय भागं प्रजावतीरनमीवाँ अयक्ष्मा मावस्तेन ईशत माघरों सो धुवा अस्मिन्गोपतौ स्यात्॥"(शुक्ल यजुर्वेद, 111)

हे गौओं ! प्राणियों को सत्कार्यों में प्रवृत्त कराने वाले सवितादेव, आपको हरित शस्य संपन्न विस्तृत क्षेत्र कर्मों का अनुष्ठान होता है। हे गौओं ! आप इन्द्र के क्षीर मूलक भाग को बढ़ावें अर्थात् अधिक दूध देने वाली हों। आपकी कोई चोरी न कर सके, व्याघ्रादि हिंसक जीव भी आपको न मार सकें, क्योंकि आप तमोगुणी दुष्टों द्वारा मारे जाने योग्य नहीं हो। आप बहुत संतान उत्पन्न करने वाली हैं जिनसे संसार का बहुत कल्याण होता है। आप जहाँ रहती हैं वहाँ किसी भी प्रकार की व्याधि नहीं आ सकती! यहाँ तक कि यक्ष्मा (तपेदिक) आदि राजरोग भी आपके पास नहीं आ सकते, अतएव आप सर्वदा यजमान के घर में सुख पूर्वक निवास करें।

गावो भगो गाव इन्द्रो मे-अर्थात गायें ही भाग्य और गायें ही मेरा ऐश्वर्य हैं । अथर्ववेद सा. 4.21.5, इससे अगले मंत्र में में आया है भद्रम गृहं कृणुभ भद्रवाचो ब्रहद्वो वय उच्यते सभासु यानी कि मधुर बोली वाली गायें घर को कल्याणमय बना देती हैं। सभाओं में गायों की बहुत कीर्ति कही जाती है। इसीलिए यहां स्व आ दमे सुदुधा पस्य धेनु: अर्थात अपने घर में ही उत्तम दूध देने वाली गौ हो। ऋग्वेद 2.35.7 में यह कहा गया है, फिर अथर्व 9.4.20 वां मंत्र गाव सन्तु प्रजा: सन्तु अथाअस्तु तनूबलम्। अर्थात् घर में गायें हों, बच्चे हों और शरीर में बल हो, ऐसी प्रार्थना की गयी है। जबकि शतपथ ब्राह्मण में 7.5.2.34 में कहा गया है-सहस्रो वा एष शतधार उत्स यदगौ:। अर्थात भूमि पर टिकी हुई जितनी जीवन संबंधी कल्पनाएं हैं उनमें सबसे अधिक सुंदर सत्य, सरस, और उपयोगी यह गौ है।

यजुर्वेद कहा गया, ''गोस्तु मात्रा न विद्यते'' अर्थात् गाय के गुणों की कोई सीमा या मात्रा नहीं होती। गाय अनेक प्रकार से मनुष्य की कामनाओं को पूर्ण करती है। गाय का दूध अमृत के तुल्य है। गाय से प्राप्त पांच वस्तुयें (अवयव) औषधि के रूप में प्रयोग में आते हैं, जिसको पंचगव्य कहा गया है।

वस्तुत: गाय को लेकर इतनी बड़ी भूमिका बनाने एवं उसके बारे में वैदिक परंपरा के ये कुछ उदाहरण यहां रखने के पीछे का उद्देश्य इतना भर है कि सत्ता में आने के बाद से अब तक केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश सरकार से लेकर तमाम सरकारों का ध्यान गौ आधारित लघु उद्योगों और गौ कृषि पर विशेष रूप से देखने को मिल रहा है। केंद्र की मोदी सरकार इस दिशा में बहुत अच्छा कार्य भी कर रही है, किंतु व्यवहार में दिखाई दे रहा है कि समाज से जितना अधिक सहयोग इसे मिलना चाहिए था, वह अभी तक देखने में नहीं आया। ऐसे में चिंता यह है कि केंद्र सरकार ने जो ''कामधेनु दीपावली अभियान'' की शुरुआत है, वह कैसे सफल होगा ? हालांकि यह सच है कि पिछले वर्ष दीपावली पर चीन को भारत में तकरीबन 40 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। किंतु इसके साथ यह भी सच है कि भारतीय समाज की यह प्रतिक्रिया सर्वप्यापी नहीं थी, यदि होती तो यह नुकसान इस आंकड़े की तुलना में कई गुना अधिक होता।

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष डॉ. वल्लभभाई कथीरिया कह रहे हैं कि कामधेनु दीपावली, देशी गाय को दूध, दही, घी के साथ-साथ गौमूत्र तथा गोबर के माध्यम से भी आर्थिक रूप से उपयोगी बनाने का अभियान है। देश में 100 करोड़ गोमय दीये प्रज्ज्वलित करने और गोमय लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति से घर-घर में दीपावली पूजन सुनिश्चित करने के लिए यह अभियान शुरू किया गया है। इससे गौ शालाएं आत्मनिर्भर होंगी। किंतु इसके साथ ही चिंता की मुख्य वजह यह है कि देश में सस्ते के लोभ में चीन से आयातित सामान सुदूर ग्रामों तक आसानी से पहुंच रहा है और हम अपनी ही श्रेष्ठ वस्तुओं को निर्माण के बाद भी उन्हें घर-घर नहीं पहुंचा पा रहे हैं।

यहां हम चीन के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ कस्टम्स द्वारा जारी आंकड़े जरूर देखें, इसके अनुसार इस वर्ष पहली छमाही में भारत-चीन आयात में 69.6 फीसदी और निर्यात में 60.4 फीसदी की बढ़त हुई है। 2021 की जनवरी से जून तक पहली छमाही में भारत-चीन व्यापार में कुल 62.7 फीसदी की जबरदस्त बढ़त हुई और यह 57.4 अरब डॉलर (लगभग 4.28 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंच गया। जोकि 2020 की पहली छमाही में हुए 44.72 अरब डॉलर के व्यापार से भी ज्यादा है। यह तब है जब चीन सीमा पर भारत को आंख दिखाने की कोशिश कर रहा है। इन आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि चीन व्यापार के मामले में भारत से कहीं अधिक लाभ की स्थिति में है।

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वस्तुत: चिंता का कारण भी यही है कि भारतीय समाज की उसके बनाए सामान पर निर्भरता बनी हुई है, हम सस्ते के चक्कर में मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा ''कामधेनु दीपावली'' जैसे एक श्रेष्ठ अभियान को भारतीय समाज के जागृत हुए वगैर सफल बनाना संभव नहीं है, इसलिए अच्छा हो देश के सभी स्वयंसेवी संस्थान ''स्वदेशी जागरण'' के अभियान को आज अपने हाथों में लें। हर घर जाकर बताएं कि भले ही कुछ रुपए अधिक देने पड़ें तो दें, वे ऐसा कर किसी भारतीय के घर को ही प्रकाशमान करेंगे। किंतु हर हाल में चीनी सामान का बहिष्कार करें। यह अभियान सरकार का नहीं समाज का अभियान बने, इसके लिए सभी ओर से तेज प्रयास करने की आज सबसे अधिक आवश्यकता है।

डॉ. मयंक चतुर्वेदी