रायपुरः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार के मामले में छह जिलों के कलेक्टर को बुधवार को नोटिस जारी किया है। रायपुर, जांजगीर चांपा, कांकेर, बलोदा बलौदा, रायगढ़, धमतरी कलेक्टर को नोटिस जारी हुआ है। साथ ही राज्य विधिक सेवा के सचिव, गृह सचिव, डीजीपी और संबंधित जिलों के एसपी को भी नोटिस जारी कर कोर्ट ने 6 सप्ताह में जवाब देने का आदेश दिया है।
दरअसल, प्रदेश में कार्य कर रही संस्था गुरु घासीदास सेवादार समिति ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि प्रदेश के विभिन्न थानों में सामाजिक प्रताड़ना और बहिष्कार के मामले दर्ज हो रहे हैं। छत्तीसगढ़ में सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध कानून नहीं है। इसका फायदा उठाया जा रहा है। यह कानून महाराष्ट्र में लागू है।
याचिका में कहा गया है कि अंतरजातीय विवाह, धार्मिक और व्यक्तिगत मामलों में भी सामाजिक बहिष्कार और प्रताड़ना के मामले अक्सर सामने आ रहे हैं। मृत्युभोज नहीं कराने पर भी समाज से अलग कर दिया जाता है। रोजी रोटी छीनने के साथ ही दंड भी दिया जा रहा लेकिन पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही है।
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जनवरी में वायरल हुआ था वीडियो –
राज्य में पिछले कुछ दिनों से अलग -अलग हिस्सों से प्रेम विवाह, जाति तथा कई प्रकार की सामजिक रूढ़ियों और परम्पराओं को लेकर सामाजिक बहिष्कार और प्रताड़ना के मामले बढ़ते नजर आ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि जनवरी माह के प्रथम सप्ताह में छत्तीसगढ़ के सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में कई ग्रामीण एक स्थान पर सरगुजा जिले में एक समुदाय का सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार करने की शपथ लेते दिखाई दिए थे। सरगुजा के पुलिस अधीक्षक ने कहा कि पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है। वीडियो में नजर आ रहे लोगों की पहचान होने के बाद केस दर्ज किया जाएगा। कहा जा रहा है कि सरगुजा जिले में मारपीट की घटना के बाद ग्रामीणों ने कथित तौर पर एक समुदाय के लोगों का बहिष्कार करने की शपथ ली थी।
अंतरजातीय विवाह पर ग्रामीण देते दंड –
इसी तरह प्रदेश के अलग -अलग हिस्सों से अंतरजातीय विवाह को लेकर विभिन्न जाति समूहों में सामजिक बहिष्कार और बिरादरी से भी बाहर किये जाने और कठोर आर्थिक दंड की व्यवस्था है, जिसकी वजह से कई आपराधिक और दुखद घटनाएं भी हुई हैं। 27 जून 2022 में एक मामले में हाई कोर्ट ने एक स्कूल प्रिंसिपल के परिवार के कथित सामाजिक बहिष्कार को चुनौती देने वाली याचिका पर महाकुल समुदाय के नेताओं को नोटिस जारी किया था। इस मामले में प्रिंसिपल के परिवार का बहिष्कार इस वजह से किया गया है क्योंकि उनके बेटे ने दूसरी जाति की लड़की से शादी की थी। याचिका में कहा गया है कि समुदाय के नेताओं ने जशपुर जिले के पत्थलगांव में अंतरजातीय विवाह में शामिल होने वाले उनके प्रत्येक रिश्तेदारों पर पांच हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था। याचिकाकर्ता के वकील अब्दुल वहाब खान ने कोर्ट में कहा कि आधुनिकता के इस युग में इस तरह का बहिष्कार एक सामाजिक बुराई और कानून के अनुसार अपराध है। इस तरह की कार्रवाई व्यक्तिगत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।
सामाजिक बहिष्कार प्रतिबंध विधेयक का विरोध –
उल्लेखनीय है कि इसी वर्ष के जनवरी माह के अंत में छत्तीसगढ़ शासन के सामाजिक बहिष्कार प्रतिबंध विधेयक का सर्व आदिवासी समाज ने विरोध करने का निर्णय लिया है। इस अधिनियम के निर्धारित समयावधि के अंदर समाज द्वारा अपना दावा-आपत्ति पुलिस महानिदेशक के साथ राष्ट्रपति, राज्यपाल, राष्ट्रीय जनजाति आयोग एवं छत्तीसगढ़ जनजाति आयोग को समाज ने अपना पक्ष भेजा है।
सर्व आदिवासी समाज ने रखा पक्ष –
सर्व आदिवासी समाज के जिला अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर ने जारी विज्ञप्ति में बताया कि छत्तीसगढ़ अनुसूचित क्षेत्र है, जहां की सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक व धार्मिक व्यवस्था समाज की रूढ़ी प्रथा के अनुसार संचालित व नियंत्रित होती है। इसके बाद भी सरकार पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र में इस अधिनियम को जबरन थोपती है तो इस अधिनियम को लेकर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भारत के संविधान के अनुच्छेद के प्रावधानों के अनुसार याचिका लगाया जाएगा। ज्ञात हो कि अनुसूचित क्षेत्रों में भारत का संविधान जनजातिय समुदाय को विधि का बल अनुच्छेद 13 (क) के तहत प्राप्त है जिसके तहत वह कार्यपालिका, न्यायपालिका व विधायिका का बल रखता है। छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ किरणमयी नायक ने भी आयोग के समक्ष प्रस्तुत ऐसे कई मामलों की सुनवाई करते हुए कहा है कि वर्तमान समय में सामाजिक बहिष्कार एक बड़े चुनौती के रूप में उभरकर सामने आ रहा है।
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