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सुल्तानपुर की इस विधानसभा सीट पर कमल खिलाना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती

लखनऊः उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर जिले की एक ऐसी विधानसभा सीट है, जहाँ भाजपा का कभी भी खाता नहीं खुला है। चार बार सपा के कब्जे वाली इस सीट पर भाजपा को कमल खिलाना, एक बड़ी चुनौती है। आखिर मोदी-योगी की लहर में कौन खिलायेगा कमल? भाजपा किसको मैदान में उतारेगी यह तो आगे समय बताएगा। अयोध्या से लगभग 65 किमी की दूरी पर बसा कुश की नगरी कुशभवनपुर जिसे सुलतानपुर के नाम से जाना जाता है। इस जिले में पांच विधानसभा सीट है। 2017 के विधानसभा चुनाव में चार पर भाजपा ने अपना कब्जा जमा लिया।

विधानसभा इसौली ऐसी एक सीट है, जिसमें भाजपा का कभी भी खाता तक नहीं खुला है। 2017 के चुनाव में सपा के अबरार अहमद ने भाजपा के उम्मीदवार ओम प्रकाश पांडेय को कड़ी टक्कर के बाद मात्र 4241 वोट से चुनाव हरा दिया। उस समय भी देश भर में मोदी लहर चल रही थी, तब भी इसौली विधानसभा सीट सपा के खाते में चली गयी। इसौली का सिंहासन पिछले लम्बे समय से सपा के पाले में है। यहां सबसे ज्यादा चार बार सपा का कब्जा रहा। इसकी एक बड़ी वजह यहां के मुस्लिम वोटर माने जाते हैं। 2012 में भी अबरार अहमद ने सपा के सिंबल पर पीईसीपी के यशभद्र सिंह को 13941 वोट से शिकस्त दी थी। इस चुनाव में भाजपा तीसरे स्थान पर रही। विधानसभा इसौली के इतिहास में आजादी के बाद से अब तक भाजपा का कोई नेता प्रतिनिधित्व नहीं कर सका।

सीट का इतिहास
सन् 1952 में हुए पहले चुनाव में मतदाताओं ने नाजिम अली को विधायक चुना। 1957 में मतदाताओं ने कांग्रेस की इस सीट पर जनसंघ के गयाबक्स सिंह को विधायक बना दिया। 1962 में रामबली मिश्र विधायक बने और यह सीट फिर कांग्रेस की झोली में डाल दी। यहां की जनता ने 1967 के चुनाव में रामबली मिश्र को फिर विधायक बनाकर विधानसभा भेजा। 1969 में फिर चुनाव हुआ तो इस बार भारतीय क्रान्ति दल के बैनरतले रामजियावन दूबे ने यह सीट कांग्रेस से छीन ली। सन् 1974 में अम्बिका सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर इस सीट पर कब्जा कर लिया। 1975 में फिर चुनाव हुआ तो जनता पार्टी से रामबरन वर्मा ने चुनाव लड़ा और विधायक बने।

1980 में यहाँ के विधायक बने मुख्यमंत्री
1980 के चुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्रीपति मिश्र यहां से विधायक बने। चुनाव जीतने के बाद श्रीपति मिश्र सत्ता में रहते हुए वर्ष 1982 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। वहीं 1985 के चुनाव में इस बार भी कांग्रेस ने बाजी मारी और जय नारायन तिवारी विधायक चुने गए। 1989 में इन्द्रभद्र सिंह ने जनता दल के निशान पर विजय हासिल की। 1993 के चुनाव में श्री सिंह ने निर्दल चुनाव लड़कर विधानसभा का सफर तय किया।

2012 से सपा के अबरार अहमद का कब्जा
1996 में जय नारायन तिवारी कांग्रेस से बागी हो गये और हाथी पर सवार हो गए और इन्द्रभद्र सिंह को हरा दिया। 2002 के विधानसभा चुनाव में स्व. इन्द्रभद्र सिंह के पुत्र चन्द्रभद्र सिंह सोनू ने अपने पिता की खोई हुई विरासत को पाने के लिए सपा के बैनरतले चुनाव लड़ा और विजय हासिल की। 2007 के चुनाव में चन्द्रभद्र सिंह ने बसपा से टिकट पाकर अपने इस स्थानीय सीट पर कब्जा बरकरार रखा। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा के अबरार अहमद ने इस सीट पर कब्जा किया और 2017 में भी अपनी जीत बरकरार रखी।

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कितने हैं मतदाता
इसौली विधानसभा क्षेत्र मे कुल 233 मतदान केंद्र है। मतदान स्थल की संख्या 412 है। 1,83,973 पुरुष, 1,70,017 महिला एवं तृतीय लिंग के 29 मतदाता है। कुल 3,54,019 है। 2022 के चुनाव मे ऊँट किस करवट बैठेगा। आने वाला समय ही बता पायेगा।

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