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बसपा के बागियों की साइकिल बनी तारणहार, हाथी के लिए चुनौती बना कुनबा व जनाधार

लखनऊः उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गये हैं। इस बीच बसपा से निष्कासित और बागियों ने अपना नया ठिकाना समाजवादी पार्टी को बनाया है। राजनीतिज्ञों का मनाना है बसपा के बागियों के साइकिल में सवार होने से हाथी के लिए चुनौती जरूर बढ़ेगी। कभी सोशल इंजीनियरिंग के दम पर सत्ता पर काबिज हुई मायावती के पास सतीश चन्द्र मिश्रा के अलावा कोई भी ऐसा चेहरा नहीं जिसको समाज में सभी लोग पहचानते हों। फिर भी पार्टी अपने पुराने दिग्गजों को रोक नहीं पा रही है। बसपा के संस्थापक सदस्य और तीन बार के सांसद वीर सिंह जो कि महाराष्ट्र के प्रभारी भी रह चुके हैं। उनका बसपा से जाना किसी बड़े झटके से कम नहीं है। हालांकि पिछले दिनों बहुजन समाज पार्टी की स्थापना के दौरान ही पार्टी से जुडने वाले लालजी वर्मा तथा रामअचल राजभर को भी पार्टी से निष्कासित किया जा चुका है। दोनों ने सपा मुखिया अखिलेश यादव से मुलाकात की है। वह जल्द साइकिल पर सवार होने की तैयारी में भी हैं।

2007 में जो बसपा सरकार में मंत्री रहे उनमें से ज्यादातर चेहरे किसी दूसरे दलों की शान बढ़ा रहे हैं। स्वामी प्रसाद मौर्या, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, दद्दू प्रसाद, इन्द्रजीत सरोज, फागू चौहान, ब्रजेश पाठक, दारा सिंह चौहान, जुगुल किशोर, लक्ष्मी नारायण चौधरी, धर्म सिंह सैनी, राम प्रसाद चौधरी, सुखदेव राजभर सरीखे नेताओं के पास महत्वपूर्ण पद भी था। अब वह पार्टी में नहीं है। इन लोगों के जातिगत समीकरण के कारण पार्टी को चुनाव में काफी लाभ होता था। बसपा के एक नेता ने बताया कि बसपा 2017 में 19 सीटें जीती थीं। जिनमें से अलग-अलग समय में कई विधायकों को बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है। बसपा में कुल 18 विधायकों में से नौ को पार्टी ने निलंबित और दो को निष्कासित कर दिया गया है। राम अचल राजभर और लालजी वर्मा के निष्कासन के बाद पार्टी में महज सात विधायक ही बचे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि जिन विधायकों की साख उस क्षेत्र में बनी है। अब इतनी जल्दी पार्टी में नेता कैसे स्थापित किया जाएगा।

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रामअचल राजभर और लालजी वर्मा बसपा के संस्थापक सदस्यों में से थे और कांशीराम के समय से ही पार्टी में जुड़े हुए थे। इन दोनों का कद पार्टी में काफी बड़ा था। रामअचल राजभर बसपा सरकार में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे। वह लम्बे समय तक पार्टी के प्रदेश अयक्ष और राष्ट्रीय महासचिव भी रहे। लालजी वर्मा भी बसपा की सरकारों में अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालते रहे। बसपा विधायक दल के नेता थे। कुर्मी समुदाय से आने वाले लालजी वर्मा का अपना सियासी कद है। ऐसे में इनके बसपा छोड़कर सपा में जाने से अखिलेश यादव को मजबूती जरूर मिलेगी। इस बारे में बसपा मुखिया मायावती ने कहा कि दूसरी पार्टियों के स्वार्थी, टिकटार्थी व निष्कासित लोगों को समाजवादी पार्टी में शामिल कराने से इनकी पार्टी का कुनबा व जनाधार आदि बढ़ने वाला नहीं है। यह केवल खुद को झूठी तसल्ली देने के साथ ही अपनी पार्टी से संभावित भगदड़ को रोकने की कोशिश के अलावा और कुछ नहीं है। उत्तर प्रदेश की जनता तो यह सब खूब समझती है। अगर समाजवादी पार्टी दूसरी पार्टियों के ऐसे लोगों को पार्टी में लेगी तो निश्चय ही टिकट की लाइन में खड़े इनके बहुत लोग भी दूसरी पार्टियों में जाने की राह जरूर तलाशेंगे।

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