जम्मूः डुग्गर संस्कृति में विशेष महत्व रखने वाला श्री गणेश संकष्ट चतुर्थी (Bhugga fast) व्रत इस वर्ष 2025 में 17 जनवरी दिन शुक्रवार को है। इस संबंध में श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के प्रमुख ज्योतिषाचार्य महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि माताएं अपनी संतान की रक्षा, लंबी आयु, मंगलकामना और ग्रहों की शांति तथा भगवान श्री गणेश की कृपा पाने के लिए यह व्रत रखती हैं। यह व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है, इस व्रत को सकट चौथ, गणेश चतुर्थी, तिलकुट चतुर्थी, संकटा चौथ, तिलकुट चौथ के नाम से जाना जाता है।
Bhugga fast: क्या है नियम
भुग्गा व्रत के दौरान महिलाएं स्नान कर सबसे पहले श्री गणेश की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराती हैं और फिर फल, लाल फूल, अक्षत, रोली, मौली, दूर्वा चढ़ाती हैं और फिर तिल से बनी चीजों या तिल और गुड़ से बने भुग्गे का प्रसाद चढ़ाती हैं। जम्मू में चंद्रोदय रात 09:20 बजे होगा। इसके बाद व्रती महिलाएं रात में चंद्रमा को जल अर्पित करती हैं और श्रद्धापूर्वक अपने बच्चों के नाम से भुग्गा अलग रख देती हैं। इसके साथ मूली और गन्ना भी रखा जाता है, जिसे बाद में कुल पुरोहित और कन्याओं में बांट दिया जाता है। इसके बाद महिलाएं व्रत खोलेंगी।
सकट चौथ के दिन गणेश मंत्र – ‘ॐ श्री गणेशाय नमः’ का 108 बार जाप और व्रत पूरे दिन निराहार रहकर किया जाता है। व्रत के दौरान पानी भी नहीं पिया जाता है, इसलिए यह व्रत काफी कठिन माना जाता है। हालांकि, पूरा दिन पूजा की तैयारियों में ही निकल जाता है। तिल और गुड़ को पीसकर भुग्गा का विशेष प्रसाद तैयार किया जाएगा। हालांकि भुग्गा मिठाई की दुकानों पर भी मिलता है। मिठाई बनाने वाले इसे खोए में सफेद तिल मिलाकर बनाते हैं, लेकिन भुग्गा को पीसकर घर पर बनाना शुभ माना जाता है।
भुग्गा व्रत: व्रतियों की बढ़ी है सुख-समृद्धि
इस व्रत को करने से व्रती के सभी प्रकार के दुख दूर होंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। मनुष्य की सुख-समृद्धि हर तरफ से बढ़ेगी। पुत्र, पौत्र, धन और समृद्धि की कोई कमी नहीं होगी। विघ्नहर्ता गणेश जी इस व्रत को करने वाली माताओं की संतानों के सभी कष्ट हर लेते हैं और उन्हें सफलता की नई ऊंचाइयों पर ले जाते हैं। महाभारत काल में श्री कृष्ण की सलाह पर पांडु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर ने सबसे पहले सकट चौथ का व्रत रखा था। तब से सभी महिलाएं अपने पुत्र की सफलता के लिए सकट चौथ का व्रत रखती हैं।
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भुग्गा व्रत: प्रचलित हैं कई कथाएं
इस व्रत को लेकर कई अन्य कथाएं भी प्रचलित हैं। डुग्गर संस्कृति में विशेष महत्व रखने वाला भुग्गे व्रत मौसम के बदलाव से जुड़ा है। डुग्गर समाज में मान्यता है कि भुग्गे व्रत से ठंड कम होने लगती है। प्रत्येक चंद्र मास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद वाली चतुर्थी को संकष्टी और अमावस्या के बाद वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। इस प्रकार एक वर्ष में 12 संकष्टी चतुर्थी होती हैं, जिनमें से माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी विशेष फलदायी होती है। भुग्गा व्रत (संकष्ट चतुर्थी) का उद्यापन (मोक्ष) भी किया जा सकता है।
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