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युद्ध से किसे हो रहा फायदा

युद्ध सदैव विनाश लाते हैं। इससे सदैव मानवता का विनाश हुआ है। हर युद्ध अपने पीछे भयानक घाव छोड़ता है। भारत की नीति भी “वसुधैव कुटुंबकम” रही है, लेकिन अमेरिका और यूरोपीय संघ की रणनीति रही है कि दुनिया में युद्ध होते रहें। शायद यही वजह है कि रूस-यूक्रेन युद्ध दो साल से भी ज्यादा समय से चल रहा है। हमास और इजराइल के बीच युद्ध छिड़े करीब पांच महीने बीत चुके हैं, लेकिन इसका कोई अंत नजर नहीं आ रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध और हमास-इज़राइल युद्ध मानवता के लिए तबाही का कारण हैं, जबकि ये अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और कई यूरोपीय देशों के लिए आय का स्रोत बन गए हैं। यदि पूरी दुनिया में युद्ध जारी रहे तो यह अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए फायदेमंद है। तीन साल बाद भी रूस-यूक्रेन युद्ध कम नहीं हुआ है। हमास के लड़ाकों ने 7 अक्टूबर 2023 को इजराइल पर हमला कर दिया था। उसके बाद इजराइल ने गाजा पट्टी, जहां हमास स्थित है, पर ताबड़तोड़ हमले किए और उसके एक हिस्से को कब्रिस्तान में बदल दिया।

गौरतलब है कि यूक्रेन-रूस युद्ध को दो साल से ज्यादा समय हो गया है। लेकिन इस युद्ध को रोकने के लिए न तो अमेरिका गंभीर है और न ही रूस। अहम सवाल ये है कि आख़िर वो कौन सी वजह है जिसके चलते ये देश युद्ध ख़त्म नहीं करना चाहते? वे इन युद्धों को लम्बा क्यों खींचना चाहते हैं? क्या उन्हें इन युद्धों में मारे गए लोगों और उनसे होने वाले नुकसान की चिंता नहीं है? इसके पीछे उनकी मंशा क्या है? यह सर्वविदित है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में हजारों लोगों की जान गई और भारी विनाश हुआ, फिर भी युद्ध का कोई अंत नहीं दिख रहा है। यह भी उल्लेखनीय है कि इस युद्ध से रूसी सेना की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा पर भी असर पड़ा है। दो साल के लंबे संघर्ष के बावजूद रूस अब तक यूक्रेन के सिर्फ 17 फीसदी हिस्से पर ही कब्जा कर पाया है।

वैसे देखा जाए तो हमास और इजराइल के बीच चल रही जंग भी अंतहीन नजर आ रही है, क्योंकि एक तरफ अमेरिका और नाटो देश इजराइल के साथ खड़े हैं। दूसरी ओर, कई अरब देश हमास के समर्थन में हैं। ऐसे में दोनों पक्षों के बीच जमकर हथियारों का इस्तेमाल और प्रदर्शन होता है। दरअसल, हमले के एक साल बाद अमेरिका और रूस ने अपने सैन्य हथियारों का परीक्षण और प्रदर्शन करने के लिए युद्ध के मैदान का इस्तेमाल किया। ऐसा लगता है मानो दोनों पक्ष अपने हथियार बेचना और प्रदर्शित करना चाहते हों। गौरतलब है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जनरल आइजनहावर ने माना था कि अमेरिका एक ‘सैन्य औद्योगिक प्रतिष्ठान’ है। यूक्रेन युद्ध और गाजा पट्टी पर इजराइल का हमला इसके ताजा उदाहरण हैं। उन्होंने यह भी कहा कि युद्धविराम के माध्यम से कोई समाधान निकाला जा सकता था, लेकिन अमेरिका और यूरोपीय संघ के निहितार्थों ने ऐसा होने से रोक दिया।

2023 में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और ब्रिटिश विदेश सचिव डेविड कैमरन ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘अगर आप रूसी आक्रामकता से निपटने के लिए यूक्रेन की रक्षा में हमारे द्वारा किए गए निवेश को देखें, तो हमने जो सुरक्षा सहायता प्रदान की है। , उसका 90 प्रतिशत वास्तव में अमेरिका में विनिर्माण और उत्पादन पर खर्च किया गया है।

यदि हम अमेरिका की विदेश नीति पर नजर डालें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि हथियारों का हस्तांतरण और रक्षा व्यापार अमेरिकी विदेश नीति के महत्वपूर्ण अंग रहे हैं। अमेरिकी विदेश विभाग के अनुसार, अमेरिकी सरकार ने 80 अरब डॉलर से अधिक मूल्य की सैन्य सामग्री की बिक्री पर सीधे बातचीत की। यह डील साल 2022 के मुकाबले 56 फीसदी ज्यादा है। यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो इवानोविच कुलेबा ने हालिया बयान में कहा कि युद्ध की दैनिक लागत 136 मिलियन डॉलर है। पिछले साल विदेशों में अमेरिकी हथियारों की बिक्री बढ़कर रिकॉर्ड 238 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई, क्योंकि रूस के यूक्रेन पर आक्रमण से हथियारों की मांग बढ़ गई। यूक्रेन पर रूसी आक्रमण शुरू होने के बाद से अमेरिका ने यूक्रेन को 113 अरब डॉलर और यूरोपीय संघ ने 91 अरब डॉलर की सैन्य और वित्तीय सहायता प्रदान की है।

अमेरिका की प्रमुख समाचार एजेंसी पोलिटिको ने दावा किया है कि ‘व्हाइट हाउस’ चुपचाप दोनों पार्टियों – डेमोक्रेट और रिपब्लिकन – के सांसदों से घरेलू आर्थिक समृद्धि की खातिर दूसरे देशों में युद्ध को बढ़ावा देने का आग्रह करता है। दोनों दलों के नेताओं ने रूस का विरोध करने के लिए यूक्रेन को सहायता देने का समर्थन किया है ताकि यह प्रदर्शित किया जा सके कि ऐसा करना संयुक्त राज्य अमेरिका में रोजगार सृजन के लिए अच्छा है। यहां तक कि कुछ मीडिया हाउस भी ये काम करते हैं।

हकीकत तो यह है कि अमेरिकी सैन्य औद्योगिक प्रतिष्ठान के समर्थक पूरी सरकारी और अर्धसरकारी व्यवस्था में घुस गये हैं। लॉबिस्ट सावधानी से राजनेताओं के साथ मिलीभगत करते हैं। बड़ी रक्षा कंपनियाँ थिंक टैंक और अन्य संबंधित संस्थानों के संरक्षक के रूप में कार्य करती हैं। ये वो लोग हैं जो हथियार विक्रेताओं के लिए एजेंडा सेटिंग का काम करते हैं।

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अमेरिका यूक्रेन युद्ध में रूसी रक्षा उद्योग को पूरी तरह से विफल होते देखना चाहता है। वह रूसी हथियार निर्माताओं को दुनिया में कमतर साबित करना चाहता है और उन्हें निर्यात से मिलने वाले पैसे से वंचित करना चाहता है। लेकिन, यह कितनी अजीब बात है कि युद्ध लगातार मानवता को नष्ट कर रहे हैं। विभिन्न देशों के बुनियादी ढांचे को नष्ट करना। हजारों लोग अपनी जान गंवा रहे हैं लेकिन अमेरिका और यूरोपीय संघ के देश तबाही की कीमत पर भी अपने देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में लगे हुए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि विश्व शांति के लिए बना संयुक्त राष्ट्र आखिर क्या कर रहा है? क्या विनाश इसी तरह जारी रहेगा और संयुक्त राष्ट्र चुप रहेगा?

डॉ. अनिल कुमार निगम

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