प्रयागराज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आज राज्य सरकार की ओर से अदालत में मौजूद महाधिवक्ता, अपर महाधिवक्ता और मुख्य स्थायी अधिवक्ता से कहा कि वे एक बार फिर से निर्बाध दर्शन के लिए कॉरिडोर बनाने के मामले में याचिकाकर्ताओं और अन्य दावेदारों से सहमत होंगे। मथुरा में बांके बिहारी मंदिर के श्रद्धालु मिल-बैठकर मध्यस्थता के जरिए इस विवाद को सुलझाएं।
मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने इस मामले पर सुनवाई के लिए 26 सितंबर की तारीख तय की है। उस दिन कोर्ट सुबह 9 बजे से मामले की सुनवाई शुरू करेगी।
राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि कॉरिडोर के लिए एक व्यापक परियोजना तैयार की गई है और इस पर खर्च होने वाले पैसे की व्यवस्था भी की जा रही है। बताया गया कि इस पर 500 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होने का अनुमान है। सरकार ने कहा कि इसमें किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ है और सरकार की योजना है कि मंदिर में आने वाले चढ़ावे का इस्तेमाल भूमि अधिग्रहण आदि के खर्चों को पूरा करने के लिए किया जाएगा। भगवान का नाम और सरकार के नाम पर कुछ नहीं होगा।
इस बात का है विरोध
दूसरी ओर, सरकार की इस योजना का यह कहते हुए विरोध किया गया कि मंदिर के पुजारियों और गोस्वामी लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कॉरिडोर बनाने और उचित व्यवस्था करने से उन्हें कोई विरोध नहीं है। जहां कहा गया है कि एकमात्र विरोध यह है कि सरकार भगवान की पूजा और मंदिर के अंदर की जाने वाली व्यवस्था और प्रसाद में हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रही है, जो गलत होगा और इस संबंध में सिविल कोर्ट द्वारा पारित डिक्री के खिलाफ है।
यह भी कहा गया कि भगवान बांके बिहारी बाल रूप में हैं, इसलिए उनके दर्शन का समय उनके बाल स्वरूप को देखते हुए तय किया गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि बांके बिहारी मंदिर उनका है और इसलिए सरकार उनके किसी निजी मामले में दखल नहीं दे सकती। अगर सरकार कॉरिडोर बनाना चाहती है तो बनाए लेकिन इसके लिए उसे अपने संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहिए।
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हालांकि, कोर्ट ने दोनों पक्षों को एक बार फिर बैठकर आपसी सहमति से इस समस्या का हल निकालने को कहा है और याचिका पर सुनवाई के लिए 26 सितंबर की तारीख तय की है। कोर्ट ने यह आदेश अनंत शर्मा, मधु मंगल दास और कई अन्य की ओर से दायर याचिकाओं पर दिया।
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