मीरजापुर: किसानों की आर्थिक समृद्धि के लिए केले की खेती में अपार संभावनाएं हैं। 2017-18 से 25 हेक्टेयर में आरम्भ केले की खेती अब एक हजार हेक्टेयर तक पहुंच गई है। परंपरागत खेती से अलग केले की खेती रोजगार का जरिया बन गई है। वहीं किसानों की आमदनी भी दोगुनी हो रही है। जनपद के विकास खंड सिटी, सीखड़, राजगढ़, नरायनपुर, मझवां और छानबे में किसान केले की खेती कर रहे हैं। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत सरकार केला की नर्सरी लगाने पर अनुदान तक दे रही है।
जिला उद्यान अधिकारी मेवाराम ने बताया कि केले की एक बार रोपाई करने के बाद दो बार केले का उत्पादन होता है। एक हेक्टेयर खेत में 3086 पौधे लगाए जाते हैं। खेती में पहले वर्ष दो लाख और दूसरे वर्ष 50 हजार की लागत आती है। सरकार प्रति हेक्टेअर पहले वर्ष 30738 रुपये और दूसरे वर्ष 10250 रुपये का अनुदान देती है। एक हेक्टेयर में पांच से छह लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा होता है। वर्तमान में जिले भर में लगभग 250 किसान केले की खेती कर रहे हैं। सरकार ने बीमा में मिर्च और टमाटर की खेती को शामिल किया था, पहली बार मीरजापुर के केले का भी बीमा आरंभ हो गया है।
कम पानी में केले की खेती से हो रहा जल संरक्षण –
किसान कम पानी में भी केले की खेती कर सकते हैं, जिससे आय दोगुनी होने के साथ ही जल संरक्षण में भी मदद मिलती है। केले की ड्रिप विधि से सिंचाई करने पर पानी की काफी बचत होती है और कम पानी में भी अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। किसानों को ड्रिप सिंचाई मशीन स्प्रिंकलर की खरीद पर भी सरकार 90 प्रतिशत का अनुदान दे रही है।
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क्या कहते हैं किसान –
सीखड़ विकास खंड के पूरनपट्टी निवासी किसान मनोज सिंह ने बताया कि 2020 में छह बीघे में केला की खेती की शुरुआत की थी। इस वर्ष 20 बीघा केला लगाया है। पैदावार अच्छा होने पर प्रति बीघे केला की खेती से दो लाख तक की बचत होती है। मवैया निवासी नीरज सिंह बताते हैं कि सीखड़ में कुछ वर्षों पहले केला के खेती की शुरुआत हुई थी, तभी 5 बीघा केला की खेती कराकर शुरुआत की। आज 40 बीघे में खेती कर रहा हूं। एक बीघा खेती पर 60 हजार की लागत आती है और लगभग दो लाख की बचत होती है। पारंपरिक खेती से हटकर केला की खेती करने से अच्छा मुनाफा प्राप्त हो रहा है।
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