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स्वराज का नारा बुलंद करने वाले बाल गंगाधर तिलक ने जलाई आजादी की अलख

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नई दिल्ली: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी सेनानी में से एक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की आज 101वीं पुण्यतिथि है। बाल गंगाधर तिलक पहले नेता थे जिन्होंने स्वराज की मांग करते हुए ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा’ का नारा दिया था जो आज भी लोगों की जुंबा पर रहता है, जब भी भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास को याद किया जाता है। बाल गंगाधर तिलक एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, वकील, गणितज्ञ समाज सुधारक,  स्वतन्त्रता सेनानी, ओजस्वी व्यक्तित्व के नेता थे, जिनके कार्यों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए नींव की तरह काम किया था। आज के युवाओं को बाल गंगाधर तिलक के जीवन से जरूर प्रेरणा लेनी चाहिए।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र के रत्नागिरि के चिखनीन गांव के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। तिलक बचपन से ही पढ़ाई में मेधावी रहे और उन्होंने सन्‌ 1879 में बी.ए. तथा कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की। लेकिन उन्होंने वकालत को पेशे के तौर पर नहीं चुना बल्कि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने का रास्ता चुना। तिलक शुरू से ही एक ओजस्वी वक्ता रहे। पहले गणित के शिक्षक के रूप में उन्होंने अपने संस्कृति को सम्मान देने पर बहुत जोर दिया और अंग्रेजी शिक्षा के शुरू से आलोचक रहे। उन्होंने देश में शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए दक्कन शिक्षा समिति की स्थापना की। तिलक ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ अपने दैनिक समाचारों मराठा दर्पण और केसरी में लिखना शुरू किया।

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सार्वजनिक तौर पर गणेश उत्सव की शुरूआत

लोकमान्य तिलक ने बंबई में अकाल और पुणे में प्लेग की बीमारी के दौरान सामाजिक कार्य किया। राष्ट्रवाद की भावना विकसित करने के लिए लोगों को एकत्रित करने के उद्देश्य से 1893 में उन्होंने महाराष्ट्र में सार्वजनिक तौर पर गणेश उत्सव मनाने की शुरूआत की। इसमें गणेश चतुर्थी के दिन लोग नई गणेश मूर्ति घर में 10 दिन तक रखकर उत्सव मनाते थे। तिलक के दिमाग में विचार आया कि क्यों न गणेशोत्सव को घरों से निकाल कर सार्वजनिक स्थल पर मनाया जाए, ताकि इसमें हर जाति के लोग शिरकत कर सकें।

 लोकमान्य तिलक ने की क्रांतिकारियों की पैरवी

जब साल 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गई। तब तिलक गरम दल के प्रमुख नेता बने जिनके साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पाल आ गए थे। इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाता है। 1908 में तिलक ने क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) में जेल भेज दिया गया। जेल से छूटने बाद वो फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए।

आल इंडिया होम रूल लीग की स्थापना

बाल गंगाधर तिलक ने एनी बेसेंट और मोहम्मद अली जिन्ना की मदद से 1916 में होम रूल लीग की स्थापना की। इस आंदोलन का स्वरूप सत्याग्रह आन्दोलन से अलग था। इसमें चार से पांच लोगों का समूह बनाया जाता था, जिसका उद्देशय पूरे भारत की जनता के बीच जाकर लोगों को होम रूल लीग का मतलब समझाना होता था।

समाज में सुधार लाने का प्रयत्न

उन्होंने भारतीय समाज में कई सुधार लाने के प्रयत्न किए। वे बाल-विवाह के विरुद्ध थे। उन्होंने हिन्दी को सम्पूर्ण भारत की भाषा बनाने पर ज़ोर दिया। भारतीय संस्कृति, परम्परा और इतिहास पर लिखे उनके लेखों से भारत के लोगों में स्वाभिमान की भावना जागृत हुई।

बाल गंगाधर तिलक को भारतीय राष्ट्रवाद के पिता के रूप में जाना जाता है। 1 अगस्त 1920 को उनकी बम्बई में मृत्यु हो गयी। महात्मा गांधी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता और जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय क्रान्ति का जनक बताया था। उनके दाह-संस्कार में लगभग 2 लाख लोगों ने हिस्सा लिया था।