पिछड़ी सरसों की फसल, किसानों को होगा नुकसान, वैज्ञानिकों ने दिए कई अहम सुझाव

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लखनऊः यूपी के किसान अन्य कई प्रांतों से सरसों के उत्पादन में पीछे हो गए हैं। कुछ राज्यों में सरसों पक चुका है, इसकी कटाई भी होने लगी है लेकिन यूपी के लखनऊ मण्डल से ऐसी खबर नहीं आई है। यहां की जलवायु में लगातार बदलाव हो रहा है। इससे किसानों को बड़ा नुकसान होने लगा है। अधिक उत्पादन का सपना पालने वाले किसानों को बदलाव करने की जरूरत है। फिलहाल किसान वैज्ञानिकों का ऐसा ही मानना है।

किसानों को इस साल सरसों का काफी अच्छा उत्पादन मिलने वाला था। इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य में बीते सालों बढ़ोत्तरी भी की गई थी। इससे किसानों को उम्मीद थी कि रबी सीजन में सरसों की पैदावार बढ़ेगी तो आमदनी भी बढ़ जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अभी खेतों में सरसों की बढ़वार और उनमें फूल देखे जा रहे हैं। यह होली के आस-पास ही पकने वाले हैं जबकि हरियाणा और पंजाब में कई स्थानों पर सरसों की फसल पक चुकी है। यह बात चिंतित करने वाली भी है। आखिर यूपी में सरसों क्यों नहीं पकी? किसान वैज्ञानिक सत्येंद्र का कहना है कि किसान अभी ज्यादा परेशान नहीं हैं। वह केवल बीज छिड़कने के लिए उतावले रहते हैं जबकि कुछ राज्यों की फसल पक चुकी है। हमारे यहां की सरसों की फसल भी पीछे हो गई। यदि यह फसल समय पकती, तो किसानों की आय में बढ़ोत्तरी होती। अभी तक खेत खाली नहीं हो सके, यदि खेत खाली हो जाते तो इनमें दूसरी फसल भी बोई जा सकती थी। जो फसल देर से पकती है, उसमें सिंचाई की भी जरूरत होती है।

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यदि किसानों ने खाली होने वाले खेतों में कोई फसल बो भी दी, तो गर्मी अपने चरम पर होगी और इसमें पानी की ज्यादा जरूरत भी पड़ेगी। किसानों के लिए यही पानी महंगा साबित होता है। यह बात चिंतित करने वाली है कि किसान जलवायु के बारे में सोच भी नहीं रहे हैं। हमारे यहां बारिश देर से होने लगी है। देर से हुई बारिश के कारण फसल भी देर से ही बोई गई है। जरूरत इस बात की है कि बारिश का इंतजार आगे नहीं करें। अपने अन्य विकल्प बनाने होंगे। डाॅ. सत्येंद्र ने बताया कि जो अपने पुराने संसाधन थे, उनका समय से इस्तेमाल करें। जब कभी समय पर बारिश न हो, तो किसान खेतों में पानी पहुंचाने का अन्य विकल्प इस्तेमाल करें। इससे उनकी फसल पिछडेगी नहीं। यदि ऐसा किया गया होता, तो आज सरसों वाले खेतों में गेहूं लहलहा रहा होता।

कैसी होनी चाहिए जलवायु –

सरसों की खेती शरद ऋतु में की जाती है। अच्छे उत्पादन के लिए 15 से 25 सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। वर्तमान समय वसंत ऋतु का है। सरसों के लिए भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसके लिए खरीफ की कटाई के बाद एक गहरी जुताई करनी चाहिए। सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मीकल्चर में मिलाकर खेतों की जुताई करने के बाद ही आगे से समय पर बुवाई ही किसानों की आय में बढ़ोत्तरी करेगा। उस दौरान तापमान 25 से 26 डिग्री सेल्सियस तक रहता है।

  • शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट

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