Home उत्तर प्रदेश लॉ की पढ़ाई करने वाला Bablu Shrivastava ऐसे बन गया ‘किडनैपिंग किंग’

लॉ की पढ़ाई करने वाला Bablu Shrivastava ऐसे बन गया ‘किडनैपिंग किंग’

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लखनऊः यूपी के छोटे से शहर गाजीपुर में जन्मे बबलू श्रीवास्तव (Bablu Shrivastava) का सपना था आईएएस अफसर बनकर समाज में अपनी पहचान बनाने का। वह चाहता था कि उसके पास पॉवर हो और लोग उसे सम्मान की नजर से देखें। उसकी आकांक्षाएं और विचार उसी समय बदल गए, जब उसके बड़े भाई विकास श्रीवास्तव, भारतीय सेना में कर्नल बने। सेना की वर्दी और उससे मिलने वाला सम्मान बबलू को भी आकर्षित करने लगा लेकिन जब उसका परिवार शिक्षा के महत्व को समझता था, बबलू का दिल तो कहीं और ही था। पिता एक शिक्षक थे और घर का माहौल हमेशा अध्ययन और ज्ञान से भरा हुआ था, मगर बबलू की दुनिया कुछ और ही थी।

गाजीपुर से लखनऊ पहुंचने के बाद बबलू ने कानून की पढ़ाई शुरू की। वह कड़ी मेहनत से अपना सपना पूरा करना चाहता था लेकिन 1982 में लखनऊ के लॉ कॉलेज में एक घटना ने उसकी जिंदगी का रुख बदल दिया। कॉलेज में छात्रसंघ चुनाव के दौरान हुआ झगड़ा और एक छात्र को चाकू लगना, बबलू की जिंदगी के सबसे बड़े मोड़ का कारण बना। इस झगड़े में बबलू को दोषी ठहराया गया और उसे झूठे आरोप में जेल भेज दिया गया। जेल से बाहर आते ही उसे एक और झूठे केस में फंसा दिया गया और फिर से वह सलाखों के पीछे था। इस बार, उसे एहसास हुआ कि नफरत और बदले की भावना उसके भीतर कितनी गहरी हैं। अन्ना के खिलाफ उसने अपना बदला लेने का फैसला किया। जेल से बाहर आते ही बबलू ने अन्ना के दुश्मन, माफिया डॉन रामगोपाल मिश्र से संपर्क किया और उसके लिए काम करना शुरू कर दिया। अन्ना और रामगोपाल के बीच खूनी रंजिश थी, लेकिन बाद में दोनों के बीच सुलह हो गई। बबलू को अब नए रास्ते की तलाश थी और उसने खुद का गैंग बनाना शुरू कर दिया।

अपने गैंग के साथ, बबलू ने उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में अपनी पकड़ बनानी शुरू की। उसने किडनैपिंग के धंधे में कदम रखा, लोगों का अपहरण किया और उनसे भारी-भरकम फिरौती वसूल की। उसकी किडनैपिंग की गिनती इतनी बड़ी हो गई कि जरायम की दुनिया में उसे ‘किडनैपिंग किंग‘ के रूप में जाना जाने लगा। उसने छोटे-छोटे गैंग बना रखे थे, जो हर जगह उसके लिए अपहरण करते थे और वह खुद मामलों का सौदा करता था। यूपी पुलिस से बचने के लिए वह नेपाल भाग गया। धीरे-धीरे उसकी दुनिया पूरी तरह बदल चुकी थी और उसका नाम अंतर्राष्ट्रीय अपराधी सूची में शामिल हो गया था। नेपाल में रहते हुए बबलू श्रीवास्तव ने माफिया डॉन मिर्जा दिलशाद बेग से संपर्क किया, जिसने उसे दुबई भेजा, जहां वह दाऊद इब्राहिम से मिला। दाऊद के साथ जुड़ने के बाद, बबलू का काले धंधे में दबदबा और भी बढ़ गया। उसने हथियार और ड्रग्स की तस्करी में दाऊद का हाथ बंटाया और भारत के खिलाफ जासूसी भी की लेकिन 1993 में मुंबई में हुए सीरियल ब्लास्ट ने बबलू को भीतर से तोड़ दिया। उसे यह अहसास हुआ कि वह सही रास्ते पर नहीं है। मुंबई ब्लास्ट के बाद बबलू ने दाऊद से अपने संबंध तोड़ दिए।

पाकिस्तान में भी भारत के मोस्ट वॉन्टेड की गूंज

2021 में एक और सनसनीखेज घटना हुई। पाकिस्तान के गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह ने बबलू श्रीवास्तव का नाम लिया। उन्होंने उसे रॉ का फ्रंट मैन बताया और कहा कि वह टेरर फाइनेंसिंग और फैसिलेटिंग नेटवर्क चला रहा था। कुछ रिपोट्र्स के अनुसार, बबलू ने दाऊद और छोटा राजन से दुश्मनी के बाद भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के लिए काम करना शुरू कर दिया था। उसकी मदद से माफिया डॉन मिर्जा दिलशाद बेग को पाकिस्तान में मारा गया था। 1995 में बबलू श्रीवास्तव को सिंगापुर से गिरफ्तार किया गया और वह बरेली जेल में बंद है। उसके खिलाफ अपहरण, हत्या और अन्य गंभीर अपराधों के कई केस दर्ज थे। समय-समय पर इन मामलों की सुनवाई होती रही और बबलू को जेल से बाहर आकर पेशी के लिए हाजिर होना पड़ता है। आज बबलू श्रीवास्तव एक ऐसे व्यक्ति की मिसाल बन गया है, जो सत्ता और ताकत के पीछे भागते हुए अपराध की दुनिया में अपनी पहचान बना बैठा।

सुप्रीम कोर्ट ने दिया Bablu Shrivastava की रिहाई पर विचार का आदेश

बबलू श्रीवास्तव, जो कभी माफिया सरगना दाऊद इब्राहिम का सहयोगी था और बाद में उसका दुश्मन बन गया, वर्तमान में बरेली केंद्रीय कारागार में बंद है। उसने अदालत में अपील की है कि उसे लंबी कैद और अच्छे आचरण के आधार पर रिहा किया जाए। श्रीवास्तव को 1993 में इलाहाबाद में सीमाशुल्क अधिकारी एलडी अरोड़ा की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था। उसे कानपुर की एक विशेष टाडा अदालत ने 30 सितंबर 2008 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके बाद मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा की गई। श्रीवास्तव को 1995 में सिंगापुर से गिरफ्तार कर भारत प्रत्यर्पित किया गया था, जहां वह हत्या और अपहरण सहित 42 मामलों में वांछित था।

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श्रीवास्तव ने अपनी याचिका में कहा कि वह 26 साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं और उनके आचरण में सुधार हुआ है। उसका तर्क है कि जेल में अच्छे आचरण के आधार पर वह राज्य की नीति के अनुसार समय-पूर्व रिहाई का हकदार है। शुरुआत में, श्रीवास्तव को नैनी केंद्रीय कारागार में रखा गया था और बाद में 11 जून 1999 को बरेली केंद्रीय कारागार में स्थानांतरित कर दिया गया था। बीते सोमवार 13 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से श्रीवास्तव की रिहाई पर विचार करने के लिए निर्देश जारी किए हैं। अदालत ने सरकार से भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 के तहत श्रीवास्तव की रिहाई की याचिका पर त्वरित निर्णय लेने का आदेश दिया।

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