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महंगी होती जा रही पूंजी से स्टार्टअप की फंडिंग को लगा बड़ा झटका

Govt goes bullish on startups with ESOP holiday, tax relief.

नई दिल्लीः वैश्विक निजी इक्विटी फंड सिकोइया ने हाल ही में कहा कि जब पूंजी प्रवाह आसान था तब सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली कंपनियां अब की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली कंपनियों में तब्दील हो गई हैं। सिकोइया ने कहा कि मौद्रिक नीति के नरम होने से तरलता बढ़ी हुई थी, जिसके कारण फंड जुटाना बहुत आसान था और कंपनियों की वैल्यूएशन भी अधिक थी। फेड रिजर्व द्वारा मौद्रिक नीति के सख्त करने के साथ ही फंड को जुटाना मुश्किल होता जा रहा है और वैल्यूएशन पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। सिकोइया ने कंपनियों को आगाह किया है कि वे मौजूदा बाजार स्थिति से जल्द रिकवर होने की उम्मीन लगायें।

जैसे-जैसे ब्याज दरें बढ़ती हैं, नकदी की कमी वाली कंपनियों और स्टार्टअप्स के मूल्यांकन पर असर पड़ रहा है और वैश्विक स्तर के साथ भारत में भी फंडिंग कम होने लगी है। आईवीसीए-ईवाई की मासिक पीई/वीसी राउंडअप के अनुसार, अप्रैल 2022 में 117 सौदों के जरिये 5.5 अरब डॉलर का निवेश दर्ज किया गया, जिसमें से चार अरब डॉलर के 16 बड़े सौदे शामिल हैं। इस दौरान 13 सौदों में से 1.2 अरब डॉलर निकाले गये, जिसमें से 48.3 करोड़ डॉलर के छह ओपन मार्केट एग्जिट और 33 करोड़ डॉलर की पुनर्खरीद शामिल है।

रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल 2021 की तुलना में स्टार्टअप में निवेश में 27 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई लेकिन मार्च 2022 की तुलना में अप्रैल 2022 में निवेश 11 प्रतिशत बढ़ा है। विवेक सोनी, पार्टनर और नेशनल लीडर प्राइवेट इक्विटी सर्विसेज, ईवाई ने कहा कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 50 आधार अंकों की बढ़ोतरी के साथ मौद्रिक नीति में सख्ती शुरू कर दी है। वैश्विक स्तर पर व्यापार जोखिम प्रीमियम / छूट दरों में वृद्धि हुई है, जिसका सूचीबद्ध घाटे में चल रहे लेकिन विकासोन्मुखी स्टार्टअप के मूल्यांकन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसका असर निजी पूंजी पर भी देखा जा सकता है। आने वाले कुछ महीनों के दौरान स्टार्टअप के वैल्यूएशन और डील क्लोजर दोनों में कमी देखने को मिल सकती है।

सिकोइया ने कहा कि ब्याज दरों में जब बढ़ोतरी की संभावना नहीं थी तो उस वक्त सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले एसेट अब सबसे खराब प्रदर्शन कर रहे हैं। सीधे शब्दों में कहें, तो दुनिया इस बात का पुनर्मूल्यांकन कर रही है कि जहां पूंजी की लागत होती है, वहां बिजनेस मॉडल क्या हों और इस पर पुनर्विचार किया जा रहा है कि भविष्य में कई वर्षों तक मुनाफा कमाने के लिए कंपनियों को कितनी क्रेडिट दी जाये।

सॉफ्टवेयर, इंटरनेट और फिनटेक क्षेत्र की 61 फीसदी कंपनियां कोरोना महामारी के पूर्व यानी 2020 की कीमतों से नीचे कारोबार कर रही हैं। उन्होंने गत दो साल के दौरान शेयरों की कीमतों में आई तेजी को गंवा दिया है। शेयरों के दाम में गिरावट झेलने वाली कई कंपनियों में से अधिकतर का मुनाफा दोगुना हुआ है और उनके राजस्व में भी इतनी ही तेजी दर्ज की गई है।

एक तिहाई कंपनियां कोरोना काल के दौरान आई गिरावट से नीचे पर कारोबार कर रही हैं। इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि इनमें से लगभग एक-तिहाई कंपनियां मार्च 2020 के निचले स्तर से भी नीचे पर कारोबार कर रही हैं। कोरोना की पहली लहर ने आर्थिक जगत में तबाही मचा दी थी।

सिकोइया ने कहा कि मौद्रिक और वित्तीय नीतियों के दम पर शेयर बाजार तेजी से उभरा लेकिन अब जैसे ही नीतियों को सख्त किया जा रहा है वैसे ही बाजार में गिरावट का दौर शुरू हो गया है। सिकोइया ने कहा कि हर कीमत पर बढ़ोतरी को अब पुरस्कृत नहीं किया जा रहा है। किसी भी कीमत पर वृद्धि के लिए पुरस्कृत होने का दौर तेजी से खत्म हो रहा है। सिकोइया का कहना है कि अब मुनाफे कमाने वाली कंपनियों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। जब नैस्डेक गिरावट में है और डेट तथा इक्वि टी सहित पूंजी की लागत बढ़ रही है तो बाजार में ऐसी कंपनियों को तरजीह दी जाने लगी है जो चालू समय में लाभ अर्जित कर सकें।

एवेनर कैपिटल के संस्थापक और सीईओ शिवम बजाज ने कहा कि स्टार्टअप के लिए निजी इक्विटी और वेंचर कैपिटल निवेश में अप्रत्याशित रूप से अप्रैल 2022 में 25 से 30 प्रतिशत की गिरावट आई है। इसके अतिरिक्त, नायका, जोमैटो और पेटीएम सहित कई स्टार स्टार्टअप निवेशकों की पूंजी को तेजी से कम कर रहे हैं। ये स्टार्टअप अपनी लिस्टिंग प्राइस से 50 फीसदी से भी कम पर कारोबार कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भारतीय स्टार्टअप्स ने 2022 में 6000 से अधिक कर्मचारियों की छंटनी की है और ऐसे में निवेशक और पूंजी लगाने की योजना को फिलहाल स्थगित करने पर ही जोर देंगे। बजाज ने कहा कि लेकिन इस पूरे प्रकरण का अच्छा पहलू यह है कि लगातार राजस्व बढ़ाने की योजना के साथ छंटनी करने वाले स्टार्टअप निवेशकों को आकर्षित भी कर सकते हैं। ये स्टार्टअप निवेशकों की पूंजी को तेजी से खर्च करने के बजाय उन्हें अच्छा मार्जिन ऑफर कर रहे हैं।

बे कैपिटल के संस्थापक एवं सीआईओ सिद्धार्थ मेहता ने कहा कि वैश्विक वित्तीय संकट के बाद फेडरल रिजर्व की नरम मुद्रा नीति ने तरलता को बढ़ा दिया था, जिसका प्रभाव वित्तीय परिसंपत्तियों पर भी दिख रहा था। इसी कारण गत दो साल के दौरान क्रिप्टो करेंसी और एनएफटी को भी बढ़ावा मिला। मेहता ने कहा कि भारत ने भी बढ़ी हुई तरलता का लाभ उठाया है और अब जब फेड मुद्रास्फीति की चिंताओं को दूर करने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहा है तो निश्चित रूप से इसका असर कंपनियों की फंडिंग के प्रयासों पर भी पड़ेगा।

साइरिल अमरचंद मंगलदास के पार्टनर और प्राइवेट इक्विटी प्रमुख रवींद्र बंधखवी कहते हैं, वैश्विक आर्थिक स्थितियां निश्चित रूप से स्टार्टअप्स के लिए फंडिंग के माहौल को प्रभावित कर रही हैं। उचित परिश्रम और अधिक मजबूत कॉपोर्रेट गवर्नेंस ढांचे पर बहुत अधिक जोर दिया जा रहा है। निवेशक भी बेहतर डील करने में सक्षम हैं क्योंकि कंपनियां और स्टार्टअप इस समय अधिक निवेश करने वाले निवेशकों को आकर्षित करने के प्रति उत्सुक हैं। निवेशक अब पहले की तुलना में लाभप्रदता पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। कुल मिलाकर अधिक सफल स्टार्टअप अभी भी धन जुटाने में सक्षम होंगे जबकि अन्य को नुकसान होगा जिसके कारण संभावित रूप से इस वर्ष भी इस क्षेत्र में अधिक से अधिक विलय एवं अधिग्रहण के अवसर पैदा होंगे।

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