सेना प्रमुख ने रक्षा खरीद प्रक्रिया की खामियों के खिलाफ उठाई आवाज, किया नौकरशाही मामलों में क्रांति का आह्वान

नई दिल्ली: सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने रक्षा खरीद प्रक्रिया में प्रक्रियागत खामियों के खिलाफ आवाज उठाते हुए इसे ”जीरो एरर सिंड्रोम” कहा। उन्होंने ”नौकरशाही मामलों में क्रांति” का आह्वान करते हुए कहा कि सेना ने उप सेना प्रमुख (क्षमता विकास और जीविका) के तहत खरीद के राजस्व और पूंजी दोनों मार्गों को अपनाकर सुधार के बड़े बदलाव किये हैं। उन्होंने कहा कि भारत अतीत से विकसित विरासत संरचनाओं के साथ अगला युद्ध लड़ने और जीतने की उम्मीद नहीं कर सकता है।

यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूशन की ओर से आयोजित एक सेमिनार में सेना प्रमुख ने एल-1 विक्रेता अवधारणा पर पूरी तरह से पुनर्विचार करने का भी आह्वान किया। इस प्रणाली के तहत सबसे कम बोली लगाकर अनुबंध हासिल करने वाले को एल-1 के नाम से जाना जाता है। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से हमारी खरीद प्रक्रिया समय की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं रही है। हमारी अधिग्रहण प्रक्रिया में कई तरह की खामियां आ गई हैं, जिससे इसे ”जीरो एरर सिंड्रोम” कहा जा सकता है। जनरल नरवणे ने ज़ीरो एरर सिंड्रोम का मतलब बताते हुए कहा कि शून्य त्रुटि सुनिश्चित करने के लिए यह एक तरह का जांच और संतुलन का नौकरशाही जाल है, जिसके परिणामस्वरूप कामकाज की धीमी गति होती है।

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आने वाले दशकों में भारतीय सेना के लिए परिवर्तन की अनिवार्यता के मुद्दे पर सेना प्रमुख ने कहा कि सूचना युग में युद्ध की जरूरतों को औद्योगिक युग की प्रक्रियाओं से बाधित नहीं किया जा सकता है। यह समय की मांग है कि यहां भी कायापलट करके एल1 विक्रेता की अवधारणा को भी पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए। वास्तविक परिवर्तन के लिए हमें नौकरशाही मामलों में एक क्रांति की आवश्यकता है। जनरल नरवणे ने कहा कि फास्ट-ट्रैकिंग आधुनिकीकरण की दोहरी आवश्यकता के साथ ही आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के लिए वास्तव में चुनौतीपूर्ण है। उन्होंने आगे कहा कि हमारे विरोधियों ने रक्षा आधुनिकीकरण की गति तेज कर रखी है जिसे देखते हुए हम पीछे नहीं रह सकते।

सेना प्रमुख ने कहा कि आज युद्धों के लिए पहले से कहीं अधिक ”संपूर्ण राष्ट्र” प्रयास की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत अतीत से विकसित विरासत संरचनाओं के साथ अगला युद्ध लड़ने और जीतने की उम्मीद नहीं कर सकता है। जनरल नरवणे ने कहा कि हमारी सेना के ढांचे को चुस्त, लचीला, मॉड्यूलर और नेटवर्कयुक्त होना चाहिए और उन्हें समकालीन युद्धक्षेत्र की वास्तविकताओं और चुनौतियों को प्रतिबिंबित करना चाहिए। सशस्त्र बलों ने अबतक जो हासिल किया है, वह औद्योगिक युग के लिए केवल जरूरत भर है। भारत को डिजिटल युग की लड़ाई के साथ-साथ अधिक अंतर-क्षमता के लिए पूर्ण पैमाने पर सेनाओं के एकीकरण करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हालांकि सेनाओं का संयुक्त होना काफी कठिन है क्योंकि इंटरऑपरेबिलिटी में कठिनाइयां कई गुना अधिक होंगी।