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कुनबा बढ़ाने के साथ ही सबकी महत्वाकांक्षा पूरी करना सपा के लिए बड़ी चुनौती

सपा

लखनऊः उत्तर प्रदेश में 2022 की सत्ता में काबिज होने के लिए समाजवादी पार्टी लगातार अपने साथियों का कुनबा बढ़ा रही है। जातीय समीकरण और दुरूस्त करने के लिए वह लगातार गठबंधन भी कर रही है। जानकारों की मानें तो सहयोगियों का दायरा जरूर बढ़ रहा है लेकिन टिकट वितरण को लेकर चुनौती भी कम नहीं है। समाजवादी पार्टी का अभी तक तकरीबन आधा दर्जन दलों से गठबंधन हो चुका है। जिनमें पूर्वी उत्तर प्रदेश और राजभर समाज में धमक रखने वाली ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा और पश्चिमी यूपी में जाटों और अन्य कुछ जातियों में अपना प्रभाव रखने वाली पार्टी रालोद भी शामिल है। इसके अलावा महानदल, जनवादी सोशलिस्ट पार्टी और कृष्णा पटेल के अपना दल के साथ गठबंधन हो गया है। लेकिन किसको कितनी सीटें मिलनी है। अभी तक इसका खुलासा नहीं हो सका है। बताया जा रहा है राजभर के संकल्प मोर्चा में शामिल दल भी कुछ सीटें चाह रहे हैं। इसके साथ ही सपा मुखिया अखिलेश अपने चाचा शिवपाल को भी मिलाने की बात कर रहे हैं। चाचा भी अपने लोगों के लिए टिकट चाहेंगे। हाल में ही अभी चन्द्रशेखर की भी सपा से तालमेल करने की चर्चा तेज है।

इसके अलावा दिल्ली की सत्तारूढ़ दल आम आदमी पार्टी भी आए दिन अखिलेश से मिलकर नए गठबंधन की बातों को परवान चढ़ा रही है। उधर पूरे देश में विपक्ष के विकल्प के रूप में अपने को देख रही ममता की पार्टी ने भी अखिलेश का सहयोग करने के संकेत दिए हैं। ऐसे में सभी दल सीटों की डिमांड करेंगे। उनके मुताबिक सीटें न मिलने पर सपा के लिए मुसीबत भी बढ़ेगी। सपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि सपा के सामने अभी दो चुनौतियां हैं। एक तो अपने लोगों को मनाए रखना। दूसरी गठबंधन के लोगों की महत्वकांक्षा को ध्यान में रखना है। हालांकि अभी पार्टी की ओर से कोई भी सीट शेयरिंग का फार्मूला तय नहीं किया गया है। लेकिन अगर जल्द इसका कोई ढंग से निर्णय नहीं हुआ तो निश्चित तौर पर मुसीबत खड़ी होगी। क्योंकि अभी तक जो जानकारी मिली है उसके अनुसार गठबंधन को 50-60 सीटें देने की बातें सामने आयी थीं। लेकिन वर्तमान में दल बढ़ते जा रहे हैं। सभी अपने -अपने लिए सीटें मांगेंगे। ऐसे में जो कार्यकर्ता पहले से तैयारी कर रहे हैं। उनका क्या होगा। अगर उनकी सीट गठबंधन को चली जाएगी तो वह बागी हो जाएंगे। अगर खुलकर बागवत न की तो भीतरघात की तो आशंका बनी ही रहेगी। ऐसे कई पेंच हैं। जिन पर अभी कुछ निर्णय नहीं हो सका है। अभी कई चुनौतियों से पार्टी का गुजरना बाकी है।

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यूपी की राजनीति को कई दशकों से नजदीक से देखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जब भी कोई पार्टी बहुत ज्यादा दलों से गठबंधन करती है तो समस्या आती है। जब पार्टी गठबंधन करके अपनी जरूरत को बता देती है तो छोटी पार्टियां मुखर हो जाती हैं। वह सीट की ज्यादा डिमांड करने लगती है। सपा इस चुनाव में अपने को बड़े दावेदार के रूप में पेश कर रही है। ऐसे में इनके गठबंधन के साथी अपनी हैसियत से ज्यादा सीटों की मांग करेंगे। इससे पार्टी के लिए परेशानी बढ़ेगी।

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