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इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला, फर्जी दस्तावेजों पर नियुक्ति पाने वाले को गंवानी ही पड़ेगी नौकरी

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प्रयागराजः इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि छलपूर्वक नौकरी प्राप्त करने वाले व्यक्ति को इस आधार पर राहत नहीं प्रदान की जा सकती है कि वह सेवा में काफी लंबा समय बिता चुका है। कोर्ट ने कहा कि जैसे ही यह साबित होता है कि नौकरी फर्जी दस्तावेजों के आधार पर या किसी प्रकार का छल करके प्राप्त की गई है तो ऐसा करने वाले को नौकरी गंवानी ही पड़ेगी। कोर्ट ने प्रथमदृष्टया छल पूर्वक नौकरी प्राप्त करने वाले सहायक अध्यापकों को किसी प्रकार की राहत देने से इंकार करते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी है।

सहायक अध्यापिका रीता पांडेय व सात अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति आलोक माथुर ने दिया है। याचीगण देवरिया के मां रेशमा कुमारी बालिका इंटर कॉलेज में सहायक अध्यापक हैं। उन्होंने सहायक निदेशक बेसिक गोरखपुर द्वारा बीएसए देवरिया को याचीगण के विरुद्ध फर्जी तरीके से नियुक्ति प्राप्त करने की शिकायत की नियमित जांच करने के आदेश को चुनौती दी थी। सहायक निदेशक ने याचीगण के विरुद्ध प्राप्त शिकायत पर स्वयं प्रारम्भिक जांच की थी और पाया कि याचीगण के विरुद्ध फर्जी दस्तावेजों पर नौकरी प्राप्त करने के आरोप प्रथमदृष्टया सही हैं। इस आधार पर बीएसए को नियमित जांच का आदेश दिया था। याचिका में दलील दी गई कि इन्हीं शिकायतों की जांच डीएम के आदेश से बीएसए ने करवाई थी और याचीगण के विरुद्ध आरोप सही नहीं पाए गए। जांच रिपोर्ट डीएम को भेजी जा चुकी है। इसलिए दुबारा नियमित जांच का औचित्य नहीं है।

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कोर्ट ने कहा कि सहायक निदेशक की जांच में याचीगण की नियुक्ति में गम्भीर अनियमितता पाई गई है। कुछ के दस्तावेज सही नहीं है तो कुछ प्रबंधक के रिश्तेदार हैं। कुछ निर्धारित योग्यता और बिना विज्ञापित पदों के नियुक्त हुए हैं। याचीगण की दलील थी कि चूंकि वह दस वर्ष सेवा में बिता चुका है, इसलिए इतने लंबे समय बाद किसी शिकायत की जांच करना उत्पीड़न है। कोर्ट ने इस दलील को अस्वीकार करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि फर्जी दस्तावेजों पर नौकरी प्राप्त करने वाले को नौकरी गंवानी पड़ेगी। सहायक निदेशक की जांच में कोई खामी नहीं है और प्रथमदृष्टया आरोप गम्भीर हैं। इसलिए नियमित जांच से राहत नहीं दी जा सकती है।

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