Home फीचर्ड सत्ता का योग-वियोग

सत्ता का योग-वियोग

पश्चिमी बंगाल राजनैतिक दृष्टि से भारत का एक बड़ा ही संवेदनशील क्षेत्र है। यहाँ की विस्तृत और कालजयी मेधा और रचनाशीलता पर पूरे भारत को गर्व है। साहित्य, शिक्षा, कला, धर्म, संगीत, सिनेमा, नाटक, ज्ञान-विज्ञान और अध्यात्म आदि सांस्कृतिक जीवन के सभी क्षेत्रों में यहाँ की मनीषा और प्रतिभाओं ने लगातार क्रांति की मशाल जलाए रखी है और अनेक तरह के प्रयोग किए हैं। यहाँ मौलिकता और प्रतिभा ने सदैव नवाचार को दिशा दी है और देश को सशक्त बनाया है। साथ ही यह भी उल्लेखनीय है कि यहाँ के जन-समुदाय की प्रतिरोध क्षमता भी अद्भुत है। ज़मीन से जुड़े रहकर सांस्कृतिक परम्परा को अक्षुण्ण बनाए रखने की आंतरिक जीवनी शक्ति का प्रमाण सतत मिलता रहता है। यहाँ के जीवन में विचारों में विविधता, विवाद, विमर्श और संवाद की प्रखरता आसानी से लक्षित की जा सकती है।

यह इस क्षेत्र के इतिहास से प्रमाणित है कि देश काल की बदलती परिस्थितियों में यहाँ राजनैतिक गतिविधियाँ सदैव केंद्र में रही हैं। यहीं राष्ट्रीय कांग्रेस और जनसंघ (वर्तमान भारतीय जनता पार्टी का पूर्व रूप) का जन्म हुआ और स्वतंत्र भारत में यह प्रदेश शासन तंत्र में विलक्षण बदलाव का साक्षी बना। जब कांग्रेस के शासन से सत्ता ज्योति बाबू के नेतृत्व में वामपंथी साम्यवादी दल के हाथ पहुँची और चौथाई सदी की लम्बी अवधि तक उन्हीं के दल के हाथों बनी रही। व्यापक जन समर्थन मिला परंतु विकास और प्रगति के मोर्चे पर मिली चुनौती के ज़लज़ले में सत्ता से हाथ धोना पड़ा। चुनौती मिली ताजा-ताजा जन्मी तृणमूल कांग्रेस से जिसका नेतृत्व सुश्री ममता बनर्जी ने किया और एक दशक तक मुख्यमंत्री के पद पर सुशोभित रहीं। उनका आक्रामक तेवर तो लोकप्रिय हुआ पर नीतियों के कार्यान्वयन के स्तर पर अनेक विसंगतियाँ उभरती ही गईं।

सत्ता, प्रभुता, शक्ति के साथ बहुत सारे प्रकट-अप्रकट ऐसे बदलाव भी आने शुरू हो जाते हैं जो नैतिक बल को कमजोर करते हैं। यही बंगाल में भी हुआ और मोहभंग का सिलसिला शुरू हुआ जिसके परिणाम पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की अप्रत्याशित सफलता में दिखे। उस आधार पर जो राजनैतिक परिवेश बना उसे तृणमूल कांग्रेस की नीति, कार्यक्रम और जन आकांक्षाओं के बीच घटते तालमेल ने हवा दी। भाजपा ने पूरी शक्ति से चुनौती दी और एक प्रभावी चुनाव अभियान शुरू किया। राजनैतिक प्रचार में दूसरे पक्ष का विरोध और अपने पक्ष में प्रचार करने की भी लिखित और अलिखित आचार संहिता है जिसका पालन सभी को करना चाहिए।

यह भी पढ़ेंः-न्यायिक व्यवस्था में मिसाल बनेंगे न्यायमूर्ति रमना !

दुर्भाग्य से सत्ता खोने का भय और पाने का आकर्षण विवेक को लीलता जाता है। पिछले दिनों टीवी और अन्य मीडिया पर जो कुछ प्रचारित-प्रसारित हो रहा है वह बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है। अनर्गल आरोप और अभद्र भाषा के साथ हिंसा जुड़ती जा रही है। इसकी परिणति मतदान स्थल पर अवांछित ही नहीं आपराधिक कृत्य को जन्म दे रही है। यह अत्यंत दुखद है कि परिस्थिति पर काबू पाने के लिए एक पोलिंग बूथ पर गोली चलानी पड़ी और टीवी की रिपोर्ट के मुताबिक़ पाँच लोगों की मृत्यु हो गई। इस चुनावी हिंसा की जितनी भर्त्सना की जाय कम है पर राजनैतिक दलों को अनुशासन सीखना होगा। सत्ता के योग और वियोग दोनों के साथ संयोग के लिए तैयार रहना चाहिए। राजनैतिक जीवन भी नैतिक जीवन की परिधि में ही जीवित और सुरक्षित रह सकेगा। किसी भी तरह सत्ता पर क़ब्जा करना श्रेयस्कर नहीं है। माध्यम और लक्ष्य बड़े नज़दीकी हैं और हिंसा से अर्जित सत्ता भी हिंसक ही होगी और यह देश के लिए घातक है।

-गिरीश्वर मिश्र

Exit mobile version