Saturday, November 30, 2024
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आध्यात्म और प्राकृतिक नजारों से भरपूर है मीरजापुर

मीरजापुर (Mirzapur) उत्तर प्रदेश राज्य का एक महत्वपूर्ण शहर है। यह मीरजापुर जिला का मुख्यालय है। पर्यटन और घूमने के लिए मीरजापुर काफी महत्वपूर्ण जिला माना जाता है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक वातावरण बरबस लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। मीरजापुर स्थित विंध्याचल धाम भारत के प्रमुख हिंदू तीर्थ स्थलों में से एक है। विंध्य पर्वत से घिरे मीरजापुर जिले में पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं। कई ऐसे स्थल हैं, जिनका विकसित कर प्रमुख पर्यटक स्थल के रूप में स्थापित किया जा सकता है। यह जिला कई प्राकृतिक स्थानों और झरनों को भी संजोए है। मां विंध्यवासिनी मंदिर, अष्टभुजा और काली खोह के पवित्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यहां देवरहवा बाबा आश्रम भी है। ब्रिटिश शासन काल में मध्य और पश्चिमी भारत के मध्य व्यापार केंद्र की जरूरतों को पूरा करने का प्रमुख केंद्र था। यहां बड़े पैमाने पर कपास और रेशम का व्यापार होता था। यह जिला उत्तर में संत रविदास नगर भदोही और वाराणसी, पूर्व में चंदौली, दक्षिण में सोनभद्र और पश्चिम में प्रयागराज से घिरा हुआ है। मीरजापुर जिला गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। विंध्यवासिनी मंदिर के पास कई घाट हैं, जहां ऐतिहासिक मूर्तियां अभी भी मौजूद हैं। गंगा उत्सव के दौरान इन घाटों को रोशनी और दीयों से सजाया जाता है। मीरजापुर के घाट वाराणसी और इलाहाबाद के गंगा घाटों की तुलना में अपेक्षाकृत शांत हैं। वहां की अपेक्षा यहां विकास कम हुआ है। मीरजापुर शहर कालीन बनाने, मिट्टी के बर्तनों, खिलौनों और पीतल के बर्तनों को बनाने के लिए प्रसिद्ध है।

शक्तिपीठ विंध्यवासिनी देवी मंदिर में शीश नवाते हैं श्रद्धालु

यह भारत के सबसे प्रतिष्ठित शक्तिपीठों में से एक है। विंध्यवासिनी देवी को काजल देवी के नाम से भी जाना जाता है। चैत्र और आश्विन के हिंदू महीनों में नवरात्रि के दौरान यहां लाखों की संख्या में मां के भक्त उमड़ते हैं। यहां नवविवाहित जोड़े भी काफी संख्या में मां के दर्शन के लिए आते हैं। मां विंध्यवासिनी विंध्याचल की विशेषता है और मंदिर के उपासकों के लिए महत्वपूर्ण आध्यात्मिक महत्व और आस्था है। लोग पवित्र गंगा नदी में स्नान करते हैं और फिर मंदिर में दर्शन करते हैं, यह विश्वास करते हुए कि ऐसा करने से उनके पाप धुल जाएंगे और माता विंध्यवासिनी उनकी मनोकामना पूरी करेंगी। यह मंदिर मीरजापुर में घूमने के लिए सबसे प्रचलित मंदिरो में से एक है। योगी सरकार द्वारा विंध्य कॉरिडोर के जरिए इस शक्तिपीठ को विकसित किया जा रहा है, जिससे इस धाम की अनुपम छटा पूरी दुनिया के भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करेगी। इस साल के अंत तक इसे कॉरिडोर के पूरा होने की प्रबल संभावना है। मां विंध्यवासिनी देवी के मंदिर से तीन किमी की दूरी पर अष्टभुजी देवी का मंदिर है। विंध्य पर्वत पर 300 फीट की ऊंचाई पर स्थित देवी के मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको पत्थर की 160 सीढ़ियां चढ़नी होंगी। नवरात्रि के आठवें दिन श्रद्धालु मां के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा करने के लिए विंध्याचल धाम आते हैं और इस दौरान मंदिर में काफी भीड़ होती है। देवी अष्टभुजी को ज्ञान की देवी कहा जाता है और देवी मां के दर्शन मात्र से सारे पाप कट जाते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। मीरजापुर में घूमने की यह जगह अपने शांत और सुंदर दृश्यों के कारण श्रद्धालुओं के साथ-साथ पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करती है। इन सबके अलावा मीरजापुर शहर के काली खोह मंदिर के दर्शन भी कर सकते हैं। यह मंदिर मां काली को समर्पित है, जो कि विंध्य की पहाड़ियों पर स्थित है। यहां रोज श्रद्धालुओं की अच्छी-खासी भीड़ होती हैं और यह स्थान प्राकृतिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण है।

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सीता कुंड मीरजापुर में प्रतिष्ठित स्थलों में से एक है, जो रामायण की पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है। किवदंती के अनुसार, जब देवी सीता को लंका से लौटते समय प्यास लगी, तब लक्ष्मण ने इस स्थल पर जल के लिए पृथ्वी पर एक तीर चलाया। जिसके फलस्वरूप पानी एक बारहमासी वसंत निकला। पानी के समग्र महत्व के कारण, श्रद्धालुओं द्वारा सीता कुंड के रूप में जाना जाने लगा। श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां आते हैं। लोककथाओं की मान्यता के अनुसार, यह पानी आगंतुकों को दुख से राहत देने के अलावा प्यास बुझाता है। आधार से 48 सीढ़ियों की चढ़ाई के बाद सीता कुंड तक पहुंचा जा सकता है। पवित्र स्थल के साथ पहाड़ी पर एक दुर्गा देवी मंदिर भी है। काल भैरव मंदिर, एक प्राचीन मंदिर, विंध्याचल शहर के दक्षिण पश्चिम में स्थित है। यह मंदिर श्री काल भैरव को समर्पित है, जिन्हें क्षेत्रपाल के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के बगल में स्थित तालाब, भैरव कुंड, पूजनीय है। प्राकृतिक उपचार पसंद करने वाले पर्यटक तेजी से पानी की तलाश करतेे हैं क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि इसमें औषधीय गुण भी हैं। संकट मोचन हनुमान मंदिर विंध्याचल के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है और यदि आप विंध्याचल धाम यात्रा पर हैं तो यहां शीश अवश्य नवाएं। जैसा कि नाम से पता चलता है यह प्राचीन मंदिर हनुमान जी को समर्पित है, जिनकी भक्त बंधवा हनुमान के रूप में पूजा करते हैं जिसका अर्थ है उनका बाल रूप। इस मंदिर की स्थापना की वास्तविक तिथि एक रहस्य बनी हुई है, लेकिन इसकी पूजा प्राचीनकाल से की जाती रही है। यह मूर्ति एक दिलचस्प विशेषता को प्रदर्शित करती है, जहां यह बताया गया है कि समय के साथ यह अपने आप विकसित हो जाती है। शनि दोष से पीड़ित लोग इसके बुरे परिणामों से बचने के लिए इस पवित्र स्थान पर आते हैं। सीता समाहित स्थल, जो धर्मनिष्ठ हिंदुओं के जीवन में महत्व रखता है, भारत में रामायण से संबंधित सबसे प्रासंगिक मंदिरों में से एक है। यह वह स्थान है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह वही स्थान है जहां माता सीता महर्षि वाल्मिकी के साथ रहने के बाद अपनी इच्छा के अनुसार धरती में समा गईं थीं। सीतामढ़ी की हरी-भरी हरियाली के बीच स्थित यह सफेद मंदिर दूर-दूर से बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह विंध्याचल धाम तीर्थ यात्रा का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे टाला नहीं जाना चाहिए।

विंध्याचल के दो सबसे प्रमुख मंदिरों विंध्यवासिनी और अष्टभुजा मंदिर के बीच स्थित रामेश्वर महादेव मंदिर यहां के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। मीरजापुर के मुख्य शहर से केवल 08 किमी की दूरी पर स्थित, इस मंदिर में शिवजी के इष्टदेव हैं, जिनका प्रतिनिधित्व गर्भगृह के केंद्र में स्थित एक बड़े शिवलिंग द्वारा किया जाता है। यह विंध्याचल के त्रिकोण मंदिर तीर्थ का तीसरा स्तंभ भी है। मंदिर का नाम उस श्राद्ध पूजा अनुष्ठान से लिया गया है, जो यहां राम जी द्वारा अपने पूर्वजों की शांति के लिए शिवजी पर किया गया था। शिवपुरी गंगा घाट के निकट स्थित राम गया घाट अत्यधिक पौराणिक महत्व रखता है। पवित्र हिंदू स्रोतों के अनुसार यह वह स्थान है, जहां रामजी ने अपने पिता के निधन के बाद प्रार्थना की थी और विभिन्न अनुष्ठान किए थे। इस घाट के आस-पास एक प्रेत शिला भी मौजूद है, जहां लोग अपने दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म करने आते हैं। यहीं पर रामेश्वर महादेव मंदिर स्थित है, जो इस स्थान की भक्ति और आध्यात्मिकता को बढ़ाता है। लोग यहां पवित्र स्नान करते हैं और यह उत्तर प्रदेश के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। श्री परमहंस आश्रम उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले में स्थित है। चुनार बस स्टैंड से राजगढ़ मार्ग पर चुनार से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह आश्रम बहुत बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। गुरु पूर्णिमा के दिन 10 लाख से ज्यादा श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। यह भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। परमहंस के भक्त विदेशों में भी हैं, जो खास मौके पर यहां पर आते हैं। पक्का घाट गंगा नदी के किनारे बना हुआ हैं। पक्का घाट के पास में ही एक स्मारक बना है, जिसका निर्माण बलुआ पत्थर द्वारा किया गया हैं। इस जगह के किनारे कई सारे मंदिर बने हुए हैं तथा इनकी कारीगरी बहुत ही बेहतरीन तरीके से की गई हैं। चरणाट धाम मीरजापुर का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यहां पर महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्य जी की बैठक तथा प्राचीन भारतीय संस्कृति के उन्नायक श्रीमतप्रभु चरण गोसाई श्री विट्ठलनाथजी का प्राकट्य स्थल है। यह स्थल गंगा नदी के तट के किनारे चुनार में स्थित है। प्राकृतिक छटा एवं हरियाली से घिरे हुए इस जगह पर एक सरोवर के मध्य में भव्य मंदिर देखने के लिए मिलता है। यहां पर महाप्रभु श्री वल्लभाचार्य जी की गोद में गुसाई श्री विट्ठलनाथजी के विराजमान होने से इस प्राकट्य स्थल की महत्ता बड़ी है। यह एक अंतर्राष्ट्रीय तीर्थ धाम बन गया है।

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चुनार का किला

चुनार का किला मीरजापुर का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह एक ऐतिहासिक किला है। यह किला गंगा नदी के किनारे मीरजापुर के चुनार में स्थित है। यह किला धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह किला गंगा नदी के किनारे एक ऊंचे टीले पर बना हुआ है। इस किले से गंगा नदी का बहुत ही सुंदर दृश्य देखने के लिए मिलता है। किले के खुलने का समय सुबह 07 बजे से शाम 05 बजे तक है। इस किले का कुछ भाग ही लोगों के लिए खोला गया है, जहां पर आप घूम सकते हैं। मान्यता है कि लगभग 2,000 वर्ष से भी पहले उज्जैन के विख्यात सम्राट विक्रमादित्य के अनुज भरतरी नाथ जी ने संन्यास लेकर इसी स्थान को अपनी तपस्थली बनाया। इसकी सूचना पाकर विक्रमादित्य यहां आए और भरतरी नाथ के लिए एक महल तथा यहां दुर्ग भी बनवाया। दुर्ग के अंदर स्थित भरतरी नाथ मंदिर की स्थानीय जनों में बड़ी मान्यता है। चुनार का किला कुछ समय के लिए गुप्त और मौखरी राजाओं के अधिकार में भी रहा। यहां पर 1,300 वर्ष पुराने प्राचीन अभिलेख और मूर्तियां मिली है। यहां पर 1,000 वर्ष पुराने एक ही प्रस्तर प्रखंड पर निरूपित सुंदर शिल्पाकृतियां देखने के लिए मिली है। इस किले पर दिल्ली पति राय पिथौरा का अधिकार भी होने की मान्यता है। यह भी कहा जाता है, कि रानी सोनवा के रहने के लिए दुर्ग में सोने का एक महल बनवाया गया था, जो आज सोनवा मंडप कहलाता है। इस दुर्ग में मुगल शासक ने भी राज किया है। इस किले में शेरशाह सूरी, मुगल बादशाह हुमायूं, अकबर, अवध के नवाब इन सभी का शासन रहा है। उसके बाद यहां पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया और इसका उपयोग कारागार के रूप में किया। यह किला बहुत ही सुंदर है। इस किले मे आपको सोनवा मंडप, महाराज भरथरी का मंदिर, कारागार, जहां पर कैदी लोगों को फांसी दी जाती थी, देखने के लिए मिलता है। किले के ऊपर से गंगा नदी का बहुत ही सुंदर दृश्य देखने के लिए मिलता है। आप अगर मीरजापुर घूमने के लिए जाते हैं, तो आपको इस किले मे जरूर जाना चाहिए। मीरजापुर इस जगह से करीब 45 किलोमीटर दूर है। यह मीरजापुर में घूमने लायक जगह है। इफ्तिखार खां का मकबरा मीरजापुर का एक प्रमुख ऐतिहासिक स्थल है। यह मकबरा मीरजापुर के चुनार में स्थित है। इफ्तिखार खान मुगल सम्राट जहांगीर का एक पदाधिकारी था। इस मकबरे का निर्माण लगभग 1613 ईसवी में चुनार के बलुआ पत्थर द्वारा किया गया है। मकबरे के प्रवेश द्वार पर स्थित कुएं से प्राप्त अभिलेख के आधार पर इस मकबरे को किसी अज्ञात सिकंदर के द्वारा 1613 ईसवी में निर्मित माना जाता है।

जलप्रपात मोह लेंगे आपका मन

लखनिया दरी मीरजापुर का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। यहां पर आपको जंगल, पहाड़, नदी और झरने देखने के लिए मिलते हैं। लखनिया दरी लतीफपुर में स्थित है। यहां पर आप बहुत आसानी से पहुंच सकते हैं। यहां पर सोनभद्र-वाराणसी हाईवे सड़क गुजरती है। हाईवे सड़क से थोड़ा अंदर जाकर ही लखनिया दरी देखने के लिए मिलती है। यहां पर आपको प्राकृतिक दृश्य देखने के लिए मिलता है। आप यहां पर आकर पिकनिक मना सकते हैं। यहां पर बरसात के दौरान दृश्य काफी मनोरम होता है। चारों तरफ हरियाली रहती है। यह एक प्राकृतिक जगह है और चारों तरफ बहुत ही सुंदर दृश्य देखने के लिए मिलते हैं। यहां पर बहुत सारे बंदर भी हैं। मीरजापुर कई खूबसूरत स्थानों का घर है। विंडहैम फॉल्स, जो मीरजापुर से लगभग 15 किलोमीटर दूर है और सबसे सुरम्य अवकाश स्थलों में से एक के रूप में प्रसिद्ध है। मीरजापुर से लगभग 15 किलोमीटर दूर विंडहैम झरना है, जो अक्सर आगंतुकों से भरा रहता है। चट्टानी सतह पर गिरने वाला झरना काफी नीचे की ओर बहता है। ब्रिटिश शिकारियों के सम्मान में विंडहैम ने इसे विंडहैम फॉल्स नाम दिया था। पास में एक दृश्य बिंदु है, जहां से आप पूरी घाटी का शानदार दृश्य देख सकते हैं। इसके अलावा विंडहैम झरने के बगल में एक छोटा लेकिन आकर्षक चिड़ियाघर है। इसमें एक पिकनिक क्षेत्र भी है, जिसका उपयोग अक्सर आस-पास और दूर-दराज के लोगों की बड़ी भीड़ द्वारा किया जाता है। पिकनिक स्थल के रूप में इसकी लोकप्रियता के कारण, यह घूमने के लिए एक शानदार जगह है।

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मीरजापुर शहर से 09 किलोमीटर की दूरी पर स्थित टंडा जलप्रपात मानसून के समय में घूमने के लिए शानदार पिकनिक स्पॉट है। यहां तक पहुंचने का रास्ता आपको थोड़ा परेशान कर सकता है लेकिन जब आप इसके करीब पहुंचेंगे और इसे सादगी भरे भाव से देखेंगे तो आपके मन को यह प्रफुल्लित कर देगा और आपकी यात्रा में एक नया रोमांच ला देगा। यहां घूमने का सबसे अच्छा समय जुलाई से सितंबर के बीच का होता है क्योंकि उस समय पानी पर्याप्त मात्रा में झरने में बहता रहता है, जिसके कारण नजारा बेहद लुभावना होता है। चूनादरी झरना मीरजापुर का एक सुंदर झरना है। यह झरना लखनिया दरी के पास स्थित है। आपको लखनिया दरी से करीब एक से डेढ़ किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। तब आपको यह झरना देखने के लिए मिल जाता है, मगर यह रास्ता बहुत कठिन है। पूरा पहाड़ी मार्ग है, लेकिन जब आप इस झरने पर पहुंचते हैं तो आपको यहां पर बहुत ही सुंदर एक साथ दो झरने देखने के लिए मिलते हैं। आप इस झरने मे चाहे, तो ऊपर की तरफ से ट्रैकिंग करके झरने के ऊपरी भाग में भी पहुंच सकते हैं और अगर आप चाहें तो नीचे घाटी से ट्रैकिंग करके जा सकते हैं। मीरजापुर शहर कालीन बनाने, मिट्टी के बर्तनों, खिलौनों और पीतल के बर्तनों को बनाने के लिए प्रसिद्ध है। मीरजापुर आएं तो यहां के लाल पेड़े और बाटी चोखा जरूर खाएं। इसके अलावा यहां की चाट और पूरी सब्जी भी बहुत प्रसिद्ध है।

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मीरजापुर घूमने का सबसे अच्छा समय

मीरजापुर घूमने के लिए आप वर्ष भर में कभी भी आ सकते हैं। यदि आप विंध्यवासिनी मंदिर घूमने के लिए मीरजापुर जा रहे हैं, तो आप नवरात्रि के समय में मीरजापुर घूमने के लिए आएं। इस वक्त यहां का माहौल बेहद खास रहता है। यहां अनेक तरह के मेलों का आयोजन होता है, साथ ही साथ यहां अनेक रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है। विंध्याचल रेलवे स्टेशन के पास बहुत सारे होटल, लॉज एवं धर्मशाला की सुविधा उपलब्ध हैै।

कैसे पहुंचें

हवाई मार्ग से
हवाई मार्ग से पहुंच के मामले में वाराणसी हवाई अड्डा मीरजापुर के सबसे नजदीक है और दोनों के बीच केवल 60 किलोमीटर की दूरी है।
रेल द्वारा
मीरजापुर रेलवे स्टेशन से कई ट्रेनें चलती हैं, जो परिवहन का एक सुविधाजनक साधन है।
सड़क मार्ग से
वाराणसी, सारनाथ और लखनऊ सहित उत्तर प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों से मीरजापुर के लिए बस सेवा हमेशा उपलब्ध रहती है।

ज्योतिप्रकाश खरे

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