नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली के तीनों नगर निगमों को इस बात के लिए फटकार लगाई है कि वे अपने रिटायर्ड शिक्षकों को कैशलेस मेडिकल सेवा नहीं दे रहे हैं। चीफ जस्टिस डीए पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि जब रिटायर्ड शिक्षक कैशलेश मेडिकल सेवा के लिए फीस दे रहे हैं तो उन्हें ये सुविधा क्यों नहीं दी जा रही है। कोर्ट ने तीनों नगर निगमों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने तीनों नगर निगमों से पूछा कि जब कैशलेस मेडिकल सेवा के लिए आपका किसी अस्पताल के साथ करार नहीं है तो आप इसके लिए रिटायर्ड कर्मचारियों से फीस कैसे वसूल रहे हैं। कोर्ट ने इस बात पर गौर किया कि तीनों निगमों के पास रिटायर्ड कर्मचारियों के मेडिकल बिल लंबित हैं। कोर्ट ने तीनों नगर निगमों से कहा कि आप पिछले काफी समय से रिटायर्ड कर्मचारियों को उनका पेंशन समय पर नहीं दे रहे हैं। कोर्ट ने तीनों नगर निगमों को इस संबंध में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि वे इस मामले में उचित पक्षकार नहीं हैं। तब कोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा कि वे इस मामले में पक्षकार के रूप में रहें। हालांकि कोर्ट ने दिल्ली सरकार को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश नहीं दिया। सुनवाई के दौरान निगमों की ओर से पेश वकीलों ने कहा कि वे रिटायर्ड कर्मचारियों के मेडिकल बिलों का भुगतान कर रहे हैं।
याचिका अखिल दिल्ली प्राथमिक शिक्षक संघ ने दायर किया है। याचिकाकर्ता की ओर से वकील रंजीत शर्मा ने कहा कि रिटायर्ड शिक्षकों के मेडिकल बिलों का तुरंत भुगतान किया जाए। याचिका में कहा गया है कि दिल्ली नगर निगम को तीन हिस्सों में बांटा गया। तीनों नगर निगमों के लिए एक ही स्वास्थ्य विभाग है। इन रिटायर्ड शिक्षकों के कैशलेस मेडिकल सेवा को जारी रखने के लिए निगम इनसे सब्सक्रिप्शन लेती है। रिटायर्ड शिक्षक इस सेवा के लिए अपनी किश्त भरते हैं लेकिन निगम उनकी कैशलेश मेडिकल सेवा को बढ़ा नहीं रही है।
कैशलेश मेडिकल सेवा के लिए निगम के कर्मचारियों को पहले स्वास्थ्य विभाग को रिपोर्ट करनी होती है। उसके बाद स्वास्थ्य विभाग चिकित्सा के लिए उन्हें स्वीकृत अस्पतालों में रेफर करती है। अगर स्वीकृत अस्पताल सर्जरी की सलाह देती है तो संबंधित रिटायर्ड शिक्षक को वापस स्वास्थ्य विभाग में जाकर स्वीकृति लेनी होती है। उसके बाद ही इलाज की शुरुआत होती है। याचिका में कहा गया है कि स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थिति में ये प्रक्रिया काफी बोझिल है।
याचिका में कहा गया है कि अस्पताल कैशलेस इलाज नहीं करते हैं। रिटायर्ड शिक्षकों को पहले अस्पताल में पैसे जमा करने पड़ते हैं उसके बाद नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग से उसके भुगतान के लिए चक्कर लगाने पड़ते हैं। इसमें काफी समय लगता है। याचिका में कहा गया है कि नगर निगम की ये प्रक्रिया गलत और गैरकानूनी है। याचिका में कहा गया है कि रिटायर्ड कर्मचारियों को समय से पेंशन नहीं मिलती, जिसकी वजह से अपने इलाज के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। एक रिटायर्ड शिक्षक गिरिराज शर्मा को अपनी पत्नी का बीएल कपूर अस्पताल में इलाज करने के लिए 8 सितंबर, 2020 को एक लाख 39 हजार रुपये का इंतजाम करना पड़ा। वे 2010 में रिटायर हुए थे और 39 हजार रुपये कैशलेस मेडिकल सेवा के लिए 39 हजार रुपये जमा किए थे। जिसके बाद उन्हें कैशलेश मेडिकल सेवा के लिए पहचान पत्र भी जारी किया गया था लेकिन उनकी पत्नी के इलाज का पैसा उन्हें आज तक नहीं मिला।