लंदनः ब्रिटेन में रहने वाले अधिकांश भारतीय मूल के नागरिक भारतीय किसानों के लिए उचित सौदा सुनिश्चित करने के लिए भारत और ब्रिटेन के बीच एक व्यापारिक समझौते के पक्ष में हैं। एक नए शोध में यह बात सामने आई है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा समर्थित ब्रिटेन आधारित थिंक टैंक द 1928 इंस्टीट्यूट की ओर से किए गए शोध से पता चला कि 47 प्रतिशत ब्रिटिश-भारतीय ब्रिटेन-भारत व्यापार सौदे के पक्ष में हैं। इसके अलावा शोध में शामिल 43 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि किसानों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए उनसे सीधे उपज खरीदनी होगी।
संस्थान ने 510 उत्तरदाताओं के बीच यह सर्वेक्षण किया, जिनकी आयु 16 से 85 वर्ष के बीच थी और जिनमें 50 प्रतिशत महिलाएं शामिल थीं। इस शोध में ग्रेटर लंदन, वेस्ट मिडलैंड्स, ईस्ट मिडलैंड्स, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड के ब्रिटिश-भारतीयों ने हिस्सा लिया। सर्वेक्षण में शामिल कई लोगों ने कहा कि ब्रिटिश मुख्यधारा की मीडिया भारतीय कृषि सुधारों के बारे में उतनी जानकारीपूर्ण नहीं है।
भारत और इसके किसानों के साथ उनके संबंधों के महत्व को दर्शाते हुए 32 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि कृषि सुधार बिल्कुल अनुचित हैं, जबकि 31 प्रतिशत ने कहा कि यह नए कानून बिल्कुल उपयुक्त हैं। अध्ययन में पाया गया कि 41 प्रतिशत ब्रिटिश भारतीयों ने ब्रिटेन के विरोध का समर्थन नहीं किया, क्योंकि ये राजनीति से प्रेरित हैं।
चल रही कोविड महामारी के साथ 30 प्रतिशत उत्तरदाताओं को लगता है कि विरोध प्रदर्शन उनकी चिंता का पर्याप्त स्तर प्रदर्शित करता है, जबकि 18 प्रतिशत लोग कोविड-19 के कारण उपस्थित नहीं हो पाए। वहीं 13 प्रतिशत लोगों को लगता है कि महामारी के विरोध में प्रदर्शन नहीं होना चाहिए।
द 1928 इंस्टीट्यूट की सह-संस्थापक किरण कौर मनपु ने आईएएनएस से कहा, “यह महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री की आगामी भारत यात्रा (जो कि रद्द कर दी गई है) का परिणाम निष्पक्ष व्यापार के माध्यम से किसानों के लिए समर्थन में हुआ है। हमारे आंकड़ों से पता चलता है कि ब्रिटिश भारतीय, भारतीय कृषि सुधारों के प्रति अपने व्यक्तिगत विचारों की परवाह किए बिना अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कर चुके हैं। उन्होंने इस स्थायी परिणाम को आगे बढ़ाने की इच्छा व्यक्त की है।”
बता दें कि भारत के सुप्रीम कोर्ट ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी है और कानूनों की विस्तार से जांच करने के लिए चार सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। इसका मतलब है कि भारत सरकार फिलहाल कानूनों को लागू करने का निर्णय नहीं ले सकती है।