नई दिल्लीः गुरू गोविंद सिंह का जन्म पौष मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को 1966 में पटना साहिब में हुआ था। सिख समुदाय के लोग इस दिन को प्रकाशपर्व के रुप में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इस साल सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह की जयंती 20 जनवरी (बुधवार) को है। इस दिन गुरुद्वारों में अरदास, भजन, कीर्तन के साथ लंगर का भी आयोजन किया जाता है। आज के दिन प्रातः काल के समय प्रभात फेरी भी निकाली जाती है।
गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। उन्होंने प्रत्येक सिख को कृपाण या श्रीसाहिब धारण करने को कहा। उन्होंने ही खालसा वाणी ‘वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह’ दी थी। गुरू गोविंद सिंह ने ही सिखों के लिए पांच ककार केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा अनिवार्य किया। गुरू गोविंद सिंह का बचपन पटना में ही बीता। उनकी माता का नाम गुजरी और पिता का नाम गुरु तेग बहादुर था। गुरु तेग बहादुर सिंह सिखों के 9वें गुरु थे। गुरू गोविंद सिंह अपनी बाल्यावस्था से ही बहुत बहादुर थे। वह काफी छोटी अवस्था में ही युद्ध करने और तीन-कमान चलाने जैसे खेल बच्चों के साथ खेला करते थे। इसी कारण उन्हें लोग सरदार मानने लगे थे।
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गुरू गोविंद सिंह को हिंदी, संस्कृत, फारसी, बृज आदि भाषाओं का भी ज्ञान था। पिता गुरू तेग बहादुर सिंह की मृत्यु के बाद नौ वर्ष की छोटी आयु में ही गोविंद सिंह ने गद्दी संभाल ली थी। उनकी बहादुरी के बारे में लिखा गया है “सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ।” धर्म की रक्षा के लिए गुरु गोविंद सिंह ने अपने पूरे परिवार का बलिदान कर दिया। उनके दो बेटों को जिंदा दीवारों में चुनवा दिया गया था। गुरू गोविंद सिंह का निधन अक्टूबर 1708 को हुआ था। उनके निधन के बाद गुरु ग्रंथ साहिब सिखों के स्थाई गुरु हो गए थे।