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Lok Sabha Elections: इन तीन सीटों पर होगी सपा की अग्नि परीक्षा

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लखनऊः 18वीं लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में उत्तर प्रदेश की 10 सीटों पर मतदान होगा। पिछले चुनाव में बीजेपी ने 8 और एसपी ने 2 सीटें जीती थीं। ऐसे में तीसरा चरण बीजेपी और सपा दोनों के लिए बेहद अहम है। राज्य की राजनीति के सबसे बड़े राजनीतिक यादव परिवार के पांच सदस्य इस बार चुनाव मैदान में हैं। इनमें से तीन की परीक्षा तीसरे चरण में ही होगी। गौरतलब है कि 2019 के चुनाव में सपा ने मैनपुरी और संभल सीट पर जीत हासिल की थी।

मुलायम की विरासत को संजोएंगी डिंपल

मैनपुरी लोकसभा सीट पर सपा ने दस बार, कांग्रेस ने पांच बार, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय लोक दल, जनता पार्टी (सेक्युलर), जनता दल और जनता पार्टी ने एक-एक बार जीत हासिल की, लेकिन बीजेपी यहां से अपनी पहली जीत का इंतजार कर रही है। सपा के इस गढ़ से पार्टी ने मौजूदा सांसद डिंपल को मैदान में उतारा है। उन्होंने दिसंबर 2022 में अपने ससुर और सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी सीट पर हुए उपचुनाव में भारी जीत के साथ यादव परिवार की राजनीतिक विरासत संभाली। अब इस विरासत को सहेजने और संरक्षित करने की जिम्मेदारी उनकी है। अब तक अजेय साबित हुई मैनपुरी सीट पर भगवा झंडा फहराने के लिए बीजेपी ने स्थानीय विधायक और योगी सरकार में पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री ठाकुर जयवीर सिंह को मैदान में उतारा है। यादव और शाक्य समुदाय की बड़ी आबादी वाली इस सीट पर बसपा ने पूर्व विधायक शिव प्रसाद यादव को मैदान में उतारा है। अगर बसपा उम्मीदवार नहीं जीतता है तो यह निश्चित तौर पर सपा के लिए 'वोटकटवा' साबित हो सकता है।

वहीं, मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद हुए उपचुनाव में डिंपल की जीत के पीछे सहानुभूति बड़ा फैक्टर थी। इधर, बीजेपी को भरोसा है कि जैसे विधानसभा चुनाव में उसने मैनपुरी में सेंध लगाई, वैसे ही उसके प्रभाव से लोकसभा चुनाव के नतीजे भी बदलेंगे और वह यहां कमल खिलाने में कामयाब होगी।

फिरोजाबाद में अक्षय की कड़ी परीक्षा

फिरोजाबाद सीट कभी सपा का गढ़ थी। 2019 में फिरोजाबाद से बीजेपी प्रत्याशी चंद्रसेन जादौन ने सपा के अक्षय यादव को हराया। इस सीट से सपा ने तीसरी बार अक्षय यादव को मैदान में उतारा है। बीजेपी ने मौजूदा सांसद चंद्रसेन का टिकट काटकर बीएसपी से बीजेपी में शामिल हुए ठाकुर विश्वदीप पर दांव लगाया है। बसपा ने सत्येन्द्र जैन को टिकट दिया है। अक्षय यादव ने इस सीट पर जीत को अपनी साख का सवाल बना लिया है। इस चुनाव का नतीजा उनका राजनीतिक भविष्य भी तय करेगा। चाचा शिवपाल के आने से अक्षय की स्थिति पहले से काफी मजबूत मानी जा रही है। बीजेपी प्रत्याशी ठाकुर विश्वदीप सिंह एक राजनीतिक परिवार से हैं। विश्वदीप सिंह के पिता ठाकुर बृजराज सिंह संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से सांसद रह चुके हैं। बीजेपी अगड़े, अति पिछड़े समुदाय के साथ-साथ दलित मतदाताओं के बीच अपनी पैठ मजबूत करने की कोशिश कर रही है। बसपा के अकेले चुनाव मैदान में उतरने से लड़ाई दिलचस्प हो गई है।

बदायूँ में आदित्य को कड़ी चुनौती

2019 के आम चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी डॉ. संघप्रिय गौतम ने यहां कमल खिलाया था। सपा इस सीट पर जीत के साथ वापसी करना चाहती है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पहले यहां चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को टिकट दिया था। धर्मेंद्र 2009 और 2014 में सपा उम्मीदवार के रूप में बदायूं से सांसद चुने गए थे, लेकिन 2019 में चुनाव हार गए। लेकिन बाद में उन्हें आज़मगढ़ से उम्मीदवार बनाया गया और चाचा शिवपाल सिंह यादव को बदायूं से उम्मीदवार घोषित किया गया। बाद में स्थानीय इकाई की मांग पर अखिलेश ने चाचा शिवपाल की जगह उनके बेटे आदित्य यादव को उम्मीदवार घोषित कर दिया। 

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बीजेपी ने मौजूदा सांसद संघमित्रा मौर्य का टिकट काटकर ब्रज क्षेत्र अध्यक्ष दुर्विजय सिंह शाक्य को उम्मीदवार बनाया है, जबकि बीएसपी ने मुस्लिम खान पर भरोसा जताया है। सपा यादव और मुस्लिम वोटों के गठजोड़ के साथ मैदान में है। लेकिन ऊंची जाति के वोटरों को गैर-यादव जातियों से जोड़ना भी एक चुनौती है। यहां अनुसूचित जाति और मुस्लिमों का गठजोड़ एक बार फिर बसपा के लिए ताकत का आधार है, जिसे सबसे ज्यादा दो लाख वोट मिले हैं, लेकिन सर्वण मतदाता और यादव मतदाता बसपा के लिए चुनौती हैं। बसपा प्रत्याशी अपने संपर्कों के आधार पर मुस्लिम वोटों का बंटवारा कितना कर पाते हैं और बसपा अपने परंपरागत वोटरों को कितना बचा पाती है। इस पर सबकी निगाहें हैं। बीजेपी यहां अपना कब्जा बरकरार रखने की कोशिश करेगी।

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